– रम्भा रानी (रूबी), फीजी

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बचपन की क़ुछ खट्टी -मीठी यादें

आज भी मुझे बचपन की वो सब यादें जो याद आती हैं,
मन खुशियों से भर जाती है लेकिन आँखें नम हो जाती हैं,
मन कल्पनाओं में उड़ता हुआ, उस गाँव में चला जाता है,
बस एक धुंधली सी याद मेरे इस मन में रह जाती है,
आज भी मुझे बचपन की वो सब यादें जो याद आती हैं।

वो हँसी ठिठोलियाँ जब भी सहेलियों की याद आती हैं,
ह्रदय झूम उठता है, पल भर के लिए ख़ुशी तो मिल जाती है,
वो रूठना-मनाना जब भी याद आती है
मन पँख लगाकर अतीत में उड़ जाता है,
फिर बचपन की उन यादों को आँखों में समेट लेती हूँ,
आज भी मुझे बचपन की वो सब यादें जो याद आती हैं।

जब भी मेरे मन में खेतों की वो सोंधी सी सुगंध आती है,
आज भी आँखों के सामने खेतों की हरियाली छा जाती है,
बस उन्हीं यादों को संजोकर आगे बढ़ी जाती हूँ,
यहीं सोचकर कि छोड़ आए हम अब वो गलियाँ,
आज भी मुझे बचपन की वो सब यादें जो याद आती हैं।।

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