– रम्भा रानी (रूबी), फीजी

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दीपों का पर्व

दीपों का पर्व आने वाला है,
हम सबको भी दीप जलाना है।

मन के अंदर जो बसा हुआ,
सारे अंधकार मिटाना है,
हम दीप जला तो लेते हैं,
बाहर उजाला कर लेते हैं,
मन के अंदर सूना रहता,
बस रस्म-रिवाज कर लेते हैं,

इन रस्म-रिवाजों से हटकर,
कुछ और भी रस्में निभाना है।
दीपों का पर्व आने वाला है।
हमको भी दीप जलाना है।।

घर को साफ कर लेते हैं,
रोशनी की लड़ियाँ सजा लेते हैं,
मन की मलिनता दूर कर
हृदय को स्वच्छ बनाना है,
दीपों का पर्व आने वाला है,
हमको भी दीप जलाना है।।

मुँह को मीठा कर लेते हैं,
मन की कड़वाहट रह जाती है,
मिठाई तो बाँट आते हैं
मन में द्वेष रह जाती है,
इन सब द्वेषों को भूलाकर मन से,
स्नेहमयी दीवाली मनाना है।
दीपों का पर्व आने वाला है।
हम सबको भी दीप जलाना है।।

दीपावली की पूजन तो कर लेते हैं,
पर बड़े-बुजुर्गों को भूल जाते हैं,
सबका सम्मान करके मन से,
आशीर्वाद और स्नेह को पाना है,
दीपों का पर्व आने वाला है।
हमको भी दीप जलाना है।।

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