– रम्भा रानी (रूबी ), फिजी

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जमा – पूँजी

जमा- पूँजी
क्या इसका अर्थ
बस धन – सम्पत्ति ही होता है।
नहीं,
जमा-पूँजी का अर्थ है –
मान, सम्मान, अपमान, अनुभव,
जिसे हम सँभाल कर रखना चाहते हैं।

कुछ जन्म से मिले रिश्ते,
कुछ खुद के बनाये रिश्ते,
वक्त और हालात में गुम कुछ भूलें रिश्ते।
कुछ अधुरे ख्वाब और अधूरी यादें,
फुर्सत और एकांत के पल में आहट,
चेहरे पर मुस्कराहट,
यही तो है जमा-पूँजी।
इसे इकठ्ठा करने में गुजर जाती है
जिंदगी सारी,
कभी न छूटती
इन अनमोल जमा-पूँजी की खुमारी।

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