डॉ० अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

फागुन आ धमका

(दुर्मिल सवैया छंद आधारित गीत)

अधरों पर गीत सजे जबहीं,
समझो तब फागुन आ धमका।
मन के अँगना करताल बजे,
तब ताल तरंगित हो चमका॥

अब धूम मची सगरी नगरी,
सखियाँ विहँसें अब रंग लगा।
चहुँओर धमाल मचा ब्रज में,
लगते सबलोग सजीव सगा॥
जब चाल चली मधु प्राणप्रिया,
घुँघरू तब पायल का छमका।
अधरों पर गीत सजे जबहीं,
समझो तब फागुन आ धमका॥

इस रंग भरी फगुनाहट में,
सब लोग दिखे मदमस्त जगा।
फगुआ चढ़ के सर बोल रहा,
सब मस्त लगे रस रंग पगा॥
मनभावन के घर चंग बजा,
रसिया मुख रंगत है दमका।
अधरों पर गीत सजे जबहीं,
समझो तब फागुन आ धमका॥

मन के अँगना इसराज सजे,
हृद तार तरन्नुम में बजते।
गलबाँह डले सजना-सजनी,
मधुराधर में सुर से सजते॥
चितचोर सुहावन है लगता,
खुशबू हर अंग तभी गमका।
अधरों पर गीत सजे जबहीं,
समझो तब फागुन आ धमका॥

अब प्रीति प्रतीति बसा पुर में ,
सब बैर मिटा कड़वा तजते।
सुविचार सदा फलते जग में,
हरि नाम सदा उर में भजते॥
मृदु तान सुनावत कोयलिया,
मधु राग सुहावन है झमका।
अधरों पर गीत सजे जबहीं,
समझो तब फागुन आ धमका॥

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