डॉ० अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

पतझड़-सा है जीवन मेरा

(सार छंद आधारित गीत)

खुशियाँ सारी झुलस रही हैं,
जीवन में निर्झर दो।
पतझड़-सा है जीवन मेरा,
उसको सावन कर दो॥

दुख के झंझावातों ने नित,
मन बगिया को कुचला।
अंगारों पर चाहत सारे,
जीवन अब तो फिसला॥
रिमझिम बूँदों की बारिश कर,
शीतलता अब भर दो।
पतझड़-सा है जीवन मेरा,
उसको सावन कर दो॥

सुख के सब पत्ते नित झड़ते,
जीवन बगिया सूनी।
नागफनी नित चुभते पग में,
दर्द हुए अब दूनी॥
शीतलता जीवन में भर दो,
सब मनभावन कर दो।
पतझड़-सा है जीवन मेरा,
उसको सावन कर दो॥

काँटें उगते नित जीवन में,
है हरओर निराशा।
बाधा-विपदा के मंजर में,
पीड़ा हुई बिपाशा॥
आशाओं की बारिश कर दो,
सुख-संपद घर भर दो।
पतझड़-सा है जीवन मेरा,
उसको सावन कर दो॥

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One thought on “पतझड़-सा है जीवन मेरा – (कविता)”
  1. बहुत ख़ूब सुख सम्पदा घर भर दो वाह वाह वाह वाह

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