भगवद् गीता और नाट्यशास्त्र यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल

प्रस्तुति- डॉ. विजय नगरकर

भारत से भगवद् गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया गया है। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो विश्व के लिए सार्वभौमिक मूल्य की दस्तावेजी विरासत को संरक्षित करने और संवर्धित करने का कार्य करता है। इस समावेश के साथ, भारत की सांस्कृतिक और दार्शनिक विरासत को वैश्विक मान्यता मिली है।

 भगवद गीता:

भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता का आधार है।

भगवद् गीता भारतीय महाकाव्य महाभारत के भीष्मपर्व (अध्याय 23-40) का हिस्सा है। इसमें 18 अध्यायों में कुल 700 श्लोक शामिल हैं। यह ग्रंथ भगवान कृष्ण और योद्धा अर्जुन के बीच संवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में होता है।

गीता में मुख्य रूप से निम्नलिखित विषयों पर प्रकाश डाला गया है:

– निष्काम कर्म: निस्वार्थ भाव से कर्म करने की शिक्षा।

– धर्म: कर्तव्य के प्रति अटूट निष्ठा।

– ज्ञान और भक्ति: आत्म-ज्ञान और ईश्वर के प्रति समर्पण का महत्व।

 इसकी दार्शनिक गहराई और व्यापकता के कारण इसे विश्व भर में पढ़ा और अनुवादित किया गया है। यह ग्रंथ भारतीय आध्यात्मिकता का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है और मानवता के लिए प्रेरणा का कार्य करता है।

 नाट्यशास्त्र:

भारतीय प्रदर्शन कला का मूल ग्रंथ

नाट्यशास्त्र की रचना भरत मुनि ने की थी और इसे लगभग 2वीं शताब्दी ईसा पूर्व में संहिताबद्ध किया गया था। यह ग्रंथ भारतीय प्रदर्शन कला का आधार है और इसमें 36,000 श्लोक शामिल हैं। इसे गांधर्ववेद या नाट्यवेद के नाम से भी जाना जाता है।

नाट्यशास्त्र में निम्नलिखित पहलुओं को परिभाषित किया गया है:

– नाट्य: नाटक और रंगमंच के सिद्धांत।

– अभिनय: प्रदर्शन की कला।

– रस: सौंदर्य अनुभव और भावनात्मक प्रभाव।

– भाव: भावनाओं का चित्रण।

– संगीत और नृत्य: संगीत और नृत्य के नियम और तकनीक।

नाट्यशास्त्र का एक प्रसिद्ध कथन है, “बिना रस के कोई अर्थ नहीं उभर सकता”, जो इसकी सौंदर्यशास्त्रीय गहराई को दर्शाता है। यह ग्रंथ भारतीय रंगमंच, नृत्य, संगीत और काव्यशास्त्र को प्रेरित करता रहा है और विश्व साहित्य पर इसका गहरा प्रभाव है।

 यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में समावेश :

यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर 1992 में स्थापित की गई थी, जो विश्व के महत्वपूर्ण दस्तावेजों को संरक्षित करने और उनकी पहचान करने का कार्य करती है। भगवद गीता और नाट्यशास्त्र के इस सूची में शामिल होने से भारत की प्रविष्टियों की संख्या 14 हो गई है। यह समावेश निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण है:

– वैश्विक मान्यता: इन ग्रंथों के विश्वव्यापी महत्व को स्वीकार किया गया है।

– संरक्षण: प्राकृतिक आपदाओं, संघर्ष और तकनीकी अप्रचलन से इन ग्रंथों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।

– सुलभता: भविष्य की पीढ़ियों के लिए ये ग्रंथ उपलब्ध रहेंगे।

 भारत के लिए गर्व का क्षण

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस उपलब्धि को “हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण” बताया। उन्होंने कहा, “भगवद् गीता और नाट्यशास्त्र का यूनेस्को की सूची में शामिल होना हमारी कालातीत बुद्धिमत्ता और समृद्ध संस्कृति की वैश्विक मान्यता है। ये ग्रंथ सदियों से सभ्यता और चेतना को पोषित करते आए हैं और उनकी अंतर्दृष्टि विश्व को प्रेरित करती रहती है।”

भगवद गीता और नाट्यशास्त्र का यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में समावेश भारत की सांस्कृतिक और दार्शनिक विरासत के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह न केवल इन ग्रंथों के वैश्विक महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि उनके संरक्षण और प्रसार को भी सुनिश्चित करता है। ये ग्रंथ भारत की समृद्ध परंपरा और ज्ञान के प्रतीक हैं, जो अब विश्व के लिए और अधिक सुलभ और संरक्षित होंगे।

 यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर 2025: विश्व की दस्तावेजी विरासत का संरक्षण और संवर्धन

यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कार्यक्रम एक अंतरराष्ट्रीय पहल है, जिसका उद्देश्य विश्व के लिए सार्वभौमिक मूल्य की दस्तावेजी विरासत को संरक्षित करना और उसका संवर्धन करना है। इसकी स्थापना 1992 में हुई थी, और यह दुनिया भर के अमूल्य अभिलेखागारों, पुस्तकालय संग्रहों और अन्य दस्तावेजी सामग्रियों को सुरक्षित रखने का प्रयास करता है। यह कार्यक्रम न केवल इन सामग्रियों के संरक्षण को सुनिश्चित करता है, बल्कि उन्हें भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुलभ बनाता है, ताकि मानवता का साझा इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर जीवित रहे। इस पहल का मुख्य केंद्रबिंदु मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड अंतरराष्ट्रीय रजिस्टर है, जिसमें विश्व महत्व और उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य वाली दस्तावेजी विरासत को सूचीबद्ध किया जाता है। मई 2023 तक इस रजिस्टर में 494 प्रविष्टियां शामिल हैं, जो 1997 में पहली बार प्रविष्टियों के साथ शुरू हुआ था।

 अंतरराष्ट्रीय रजिस्टर

मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड अंतरराष्ट्रीय रजिस्टर यूनेस्को के इस कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह रजिस्टर उन दस्तावेजी धरोहरों को मान्यता देता है जो मानव इतिहास, संस्कृति और विज्ञान के लिए वैश्विक महत्व रखती हैं। इसमें शामिल सामग्रियों की विविधता प्रभावशाली है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

– पांडुलिपियां: प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथ और सचित्र दस्तावेज।

– मौखिक परंपराएं: लोक कथाएं और परंपरागत ज्ञान की रिकॉर्डिंग।

– ऑडियो-विजुअल सामग्री: ऐतिहासिक फिल्में, संगीत और भाषाई अभिलेख।

– अभिलेखीय होल्डिंग्स: सरकारी दस्तावेज, पत्र और अन्य संग्रह।

1997 में शुरू होने के बाद से यह रजिस्टर लगातार बढ़ता गया है। उदाहरण के लिए, 2023 में 64 नई प्रविष्टियां जोड़ी गईं, जिससे कुल संख्या 494 तक पहुंच गई। यह रजिस्टर न केवल इन सामग्रियों के महत्व को प्रमाणित करता है, बल्कि उनके संरक्षण, डिजिटलीकरण और व्यापक प्रसार के लिए जागरूकता बढ़ाने में भी मदद करता है। इससे अनुसंधान, शिक्षा और सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा मिलता है।

 नामांकन और प्रविष्टि प्रक्रिया

मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में किसी दस्तावेजी धरोहर को शामिल करने की प्रक्रिया सावधानीपूर्वक और पारदर्शी है। यह प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में पूरी होती है:

1. नामांकन प्रस्तुति: कोई भी व्यक्ति या संगठन अपनी दस्तावेजी धरोहर को नामांकित कर सकता है। यह नामांकन यूनेस्को के राष्ट्रीय आयोग या संबंधित सरकारी निकाय के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।

2. मूल्यांकन: यूनेस्को के महानिदेशक द्वारा नियुक्त अंतरराष्ट्रीय सलाहकार समिति (IAC), जिसमें 14 विशेषज्ञ सदस्य शामिल हैं, नामांकनों की समीक्षा करती है। यह समिति निम्नलिखित मानदंडों पर विचार करती है:

   – दस्तावेज का विवरण और उत्पत्ति।

   – इसका विश्व महत्व।

   – संरक्षण की वर्तमान स्थिति।

3. सिफारिश और अनुमोदन: IAC अपनी सिफारिशों को यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करती है, जो अंतिम निर्णय लेता है।

यह कठोर प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि केवल वास्तव में असाधारण और वैश्विक महत्व की धरोहर ही रजिस्टर में शामिल हो।

 उल्लेखनीय प्रविष्टियां

मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल दस्तावेजी धरोहरें मानव सभ्यता की समृद्धि और विविधता को दर्शाती हैं। कुछ उल्लेखनीय उदाहरण निम्नलिखित हैं:

– बुल्जो जिक्जी सिम्चे योजेओल: यह दुनिया की सबसे पुरानी चल धातु प्रिंट की पुस्तक है, जो 1377 में कोरिया में प्रकाशित हुई थी। इसे यूनेस्को/जिक्जी मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड पुरस्कार का नाम भी दिया गया है।

– सचित्र और रोशन फारसी पांडुलिपियां: ये मध्ययुगीन कला और साहित्य के उत्कृष्ट नमूने हैं।

– ऑस्कर नीमेयर के वास्तुशिल्प अभिलेख: प्रसिद्ध ब्राजीलियाई वास्तुकार के डिजाइन और योजनाएं, जो आधुनिक वास्तुकला के इतिहास को दर्शाते हैं।

– पंजी कथा पांडुलिपियां: दक्षिण पूर्व एशिया की प्राचीन कहानियों का संग्रह।

– लोक संगीत और प्राचीन भाषाओं की रिकॉर्डिंग: ये मानव सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित करती हैं।

ये प्रविष्टियां न केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मील के पत्थर हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक विकास को समझने में भी योगदान देती हैं।

 राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समितियां

अंतरराष्ट्रीय रजिस्टर के अलावा, यूनेस्को ने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड समितियों की स्थापना को प्रोत्साहित किया है। ये समितियां स्थानीय और क्षेत्रीय महत्व की दस्तावेजी धरोहरों पर ध्यान केंद्रित करती हैं। उदाहरण के लिए:

– MOWCAP (मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कमेटी फॉर एशिया एंड द पैसिफिक): यह समिति एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए एक अलग रजिस्टर संचालित करती है। हाल ही में, भारत की तीन साहित्यिक कृतियों—रामचरितमानस, पंचतंत्र, और सहरदयालोक-लोचन—को इस रजिस्टर में शामिल किया गया। ये रचनाएं भारतीय साहित्य और दर्शन की समृद्ध परंपरा को प्रदर्शित करती हैं।

ये समितियां स्थानीय स्तर पर जागरूकता बढ़ाने, संरक्षण के प्रयासों को समन्वयित करने और क्षेत्रीय पहचान को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

 निष्कर्ष

यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कार्यक्रम मानवता के साझा इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में एक अनिवार्य भूमिका निभाता है। यह उन दस्तावेजी धरोहरों की रक्षा करता है जो हमारे अतीत को समझने और भविष्य को आकार देने के लिए आवश्यक हैं। रजिस्टर में शामिल प्रविष्टियां न केवल उनके वैश्विक महत्व को प्रमाणित करती हैं, बल्कि संघर्ष, प्राकृतिक आपदाओं और तकनीकी अप्रचलन जैसी चुनौतियों के सामने संरक्षण के महत्व को भी रेखांकित करती हैं। इस कार्यक्रम के माध्यम से, यूनेस्को यह सुनिश्चित करता है कि हमारी सामूहिक स्मृति आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवित और सुलभ रहे, ताकि वे अपने इतिहास से प्रेरणा ले सकें और इसे आगे बढ़ा सकें।

यह लेख यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर 2025 के संदर्भ में कार्यक्रम के उद्देश्य, प्रक्रिया, और महत्व को विस्तार से प्रस्तुत करता है। इसमें अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर इसके प्रभाव को शामिल किया गया है, जो इसे एक व्यापक और जानकारीपूर्ण लेख बनाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »