डॉ. लता सुमंत : एक बहुआयामी साहित्यकार

डॉ.विजय नगरकर

परिचय

डॉ. लता सुमंत का नाम हिंदी, मराठी और गुजराती साहित्य जगत में एक प्रतिष्ठित और सशक्त रचनाकार के रूप में लिया जाता है। उनका जन्म 13 जुलाई 1960 को राजस्थान के गंगापुर में हुआ। साहित्य के प्रति उनकी गहरी रुचि और निष्ठा ने उन्हें एक सशक्त लेखिका, अनुवादक, समीक्षक और कवयित्री के रूप में स्थापित किया है।

शिक्षा और साहित्यिक यात्रा

डॉ. सुमंत ने एम.ए. और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उनका शोध विषय “साठोत्तरी हिंदी और गुजराती कहानियों में नारी जीवन” था, जो 1987 में पूर्ण हुआ। इस शोध के माध्यम से उन्होंने साठोत्तरी काल की कहानियों में नारी के संघर्ष, संवेदनाओं और समाज में उसकी स्थिति का गहन अध्ययन किया। उनकी शिक्षा और शोध का प्रभाव उनके लेखन में स्पष्ट रूप से झलकता है, जहां वे नारी मनोविज्ञान, उसकी पीड़ा, आकांक्षाओं और सशक्तिकरण को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती हैं।

व्यावसायिक जीवन

डॉ. सुमंत ने महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा में प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दीं। अपनी शिक्षकीय अवधि में उन्होंने साहित्यिक लेखन और आलोचनात्मक समीक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। विश्वविद्यालय से निवृत्त होने के बाद भी वे साहित्य सृजन और अनुवाद कार्य में सक्रिय हैं।

साहित्यिक योगदान

डॉ. लता सुमंत का साहित्यिक योगदान बहुआयामी है। उन्होंने हिंदी, मराठी और गुजराती भाषाओं में लेखन किया है। उनके लेख, कहानियां, लघुकथाएं और कविताएं देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। इनमें प्रमुख पत्रिकाएं हैं:

अक्षरपर्व, प्रेरणा, अक्षरा (भोपाल), वीणा (इंदौर), ताप्तीलोक (सूरत), गुर्जर राष्ट्रवीणा, भाषासेतु (अहमदाबाद), साहित्य परिक्रमा (मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी), प्रतिश्रुति (राजस्थान), नारी अस्मिता (बड़ौदा), समकालीन भारतीय साहित्य (दिल्ली), वसंत (मुंबई) तथा भालचंद्र (नाशिक) आदि।

हाइकु लेखन

हाइकु लेखन में भी डॉ. सुमंत ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। उनके हाइकु प्रतिष्ठित संकलनों जैसे “हाइकु व्योम” (संपादक: उषा अग्रवाल) में प्रकाशित हुए हैं। इसके अलावा, वे हाइकु लैब और हाइकु मंजुषा जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी सक्रिय हैं।

अनुवाद कार्य

डॉ. लता सुमंत का अनुवाद कार्य भी उल्लेखनीय है। उन्होंने गुजराती और मराठी साहित्य को हिंदी में अनूदित कर भाषाई सेतु का कार्य किया है:

ग. दि. माडगुळकर की कहानी “बाजारा ची वाट” का गुजराती अनुवाद।

रामदरश मिश्र की कहानी “ती स्त्री” का मराठी अनुवाद, जो भालचंद्र (नाशिक) में प्रकाशित हुआ।

मावली कविता का मराठी से हिंदी में अनुवाद, जो समाज पत्रिका (महाराष्ट्र समाज, अहमदाबाद) में प्रकाशित हुई।

रत्नप्रभा शहाणे की मराठी कहानियों का हिंदी अनुवाद।

प्रकाशित कृतियां

डॉ. लता सुमंत की प्रकाशित कृतियां उनके गहरे सामाजिक सरोकार और भाषा पर मजबूत पकड़ को दर्शाती हैं:

1. साठोत्तरी हिंदी और गुजराती कहानियों में नारी जीवन (1988) – उनका शोध ग्रंथ, जिसमें उन्होंने नारी जीवन की विविध स्थितियों का विश्लेषण किया है।

2. गुजराती और मराठी की श्रेष्ठ कहानियां (2016) – विभिन्न भाषाओं की श्रेष्ठ कहानियों का संकलन।

3. सुरम्या (2014) – अनूदित कहानियों का संग्रह।

4. रिश्तों का मांझा (2016) – उनका स्वयं का कहानी संग्रह, जिसमें मानवीय संवेदनाओं का चित्रण है।

5. घायल – पुरुषोत्तम भास्कर भावे की मराठी कहानियों का हिंदी अनुवाद (प्रकाशनाधीन)।

समीक्षा और आलोचना

डॉ. सुमंत ने साहित्यिक समीक्षा के क्षेत्र में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। उन्होंने कई साहित्यिक कृतियों का आलोचनात्मक अवलोकन किया है, जिनमें शामिल हैं:

जो आग है – कहानी संग्रह।

प्रेक्षागृह – लघुकथा संग्रह।

दीर्घा – कविता संग्रह।

मराठी कविता संग्रहों की समीक्षा।

प्रेरणा पत्रिका में साहित्यिक लेख प्रकाशित।

मल्टीमीडिया उपस्थिति

डॉ. सुमंत की रचनाएं केवल प्रिंट माध्यम तक ही सीमित नहीं हैं। उन्होंने ई-मैगजीन में भी अपनी रचनाओं का प्रकाशन किया है। साथ ही, वे टीवी के लोकल चैनलों पर गुजराती, मराठी और हिंदी साहित्यिक पुस्तकों की चर्चा में भी भाग लेती हैं।

साहित्यिक पहचान और योगदान

डॉ. लता सुमंत की रचनाएं भाषा, भाव और विचारों की त्रिवेणी हैं। वे अपनी कहानियों और अनुवादों के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों, विशेष रूप से नारी जीवन, के संघर्ष और संवेदनाओं को अभिव्यक्त करती हैं। उनकी बहुभाषिक क्षमता ने उन्हें साहित्यिक समृद्धि प्रदान की है।

उपसंहार

डॉ. लता सुमंत न केवल एक प्रतिभाशाली लेखिका हैं, बल्कि वे तीन भाषाओं – हिंदी, मराठी और गुजराती – के बीच साहित्यिक संवाद की महत्वपूर्ण कड़ी भी हैं। उनके लेखन में समाज की संवेदनशीलता, नारी विमर्श और मानवीय भावनाओं का सहज और सशक्त चित्रण देखने को मिलता है। उनका साहित्यिक योगदान साहित्य जगत में सदैव प्रेरणादायक रहेगा।

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