डॉ. मंजु गुप्ता

जल ही जीवन

बहता पानी नदिया है
झरता पानी झरना
बरसता है तो बारिश
आँखों में डबडबाए तो आँसू
फूल पंखुरी पर लरजती ओस की बूँद
जमकर हिमशिला, फ्रीजर में रख दो तो बर्फ
आकाश में उमड़ता-घुमड़ता पानी बादल, मेघ, जलधर है
सूर्य ताप से यही वाष्प बन उड़ जाता
तट को छूकर लहर-लहर लहराता सागर
तटों को लाँघ उफनाता, गरजता भयावह ज्वार
बहुत गहरे उतर कर कुआँ बन, बुझाता है मरुथल में प्यास
धरती के गर्भ से खुद-ब-खुद रिसता पानी सोता है
तटबंधों में बंधकर नहर
भगवत् कृपा बन यही तो हो जाता है संजीवन
प्यासों की प्यास बुझा कहलाता है जीवन
कलश में भर दो तो भक्ति का पावन अर्घ्य बन, प्रभु चरणों में चढ़ जाता
डॉक्टर की सुईं में इंजेक्शन बन प्राण बचाता
पानी का न कोई रंग है, न रूप, न आकार
पंच तत्वों में मात्र यही तो भर देता है प्राण
इसीलिए पानी मात्र पानी नहीं, जीवन कहलाता है
जल ही जीवन है…

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