
– डॉ० अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’, प्रयागराज
शस्य श्यामला वितान
(श्येनिका छंद-२१२ १२१ २१२ १२)
शस्य श्यामला वितान है धरा।
उर्वरा स्वदेश है हरा भरा॥
हैं उपत्यका नवीन वेश में।
मेखला विराजमान देश में॥
श्वेत श्याम व्योम का वितान है।
नित्य नव्यता नया विहान है॥
पर्वतीय शृंखला विशाल है।
वीथिका घनी यहाँ मिशाल है॥
काम-क्रोध लोभ-मोह से बचें।
छंदयुक्त श्रेष्ठ वंदना रचें॥
सद्विचार से रहें सभी जगा।
भावपूर्ण भव्य दिव्यता पगा॥
गद्य-पद्य हो विशेष सर्जना।
ओजपूर्ण देशभक्ति गर्जना॥
भाव से भरी सदैव अर्चना।
दुर्विचार की सदैव वर्जना॥
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