
संगीता शर्मा, कनाडा
अपना शहर
उस शहर की खासियत तो उस शहर की बेटी से पूछें
जो साल भर के इंतज़ार के बाद पहुँच पाती हो
उस शहर, जहाँ वो पली बढ़ी हो
वहां की मिटटी और वातावरण
स्वाद और सुगंध
अचार की दुकानों से उठती मसालों की खुशबुएँ
हलवाइओं की दुकानें
और चाट के ठेले
वो खुशगवार चेहरे
जैसे न्योता हों देते
वो संकरी गालियां, वो चबूतरे
वो रिक्शा सैक्लेन
वहां की वास्तुकला प्राचीन
जैसे कुछ याद हो दिलाते
वो पुरानी बीते हुए दिन और रातें
और वो अपनों से मुलाक़ातें
वो शहर जो दिल को देता है दिलासा अजीब
कितने ही दूर क्यों न हों .. उस मिटटी पे पाव रखते ही पोषण करता है भावनात्मक
बिलकुल उसी तरह से जिस तरह से शिशु का पोषण गर्भनाल से करती है माँ !
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