-आशा बर्मन, कनाडा

सुखमय जीवन

यह जीवन है क्षणभंगुर,
लोग सदा से कहते हैं,
फिर न क्यों हम कष्ट भुलाकर
सहज रूप से जीते हैं?

जब भी जाए तुम पर दृष्टि
मुख गभीर और भ्रू कुंचित
ऐसा लगता कितने युग का
कष्ट तुम्हारे उर संचित।

क्या कारण है आज बताओ
रहते क्यों सदा मनमार,
क्या सारे जग की समस्याओं के
निदान का तुम पर भार?

देखो चारों ओर तुम्हारे
सहजप्राप्य हैं सुख के पल,
हाथ बढ़ाकर उनको गह लो,
मन जाएगा तुरत बदल।

अपने मन के हो तुम स्वामी
किंचित कर लो परिवर्तन,
तब समझोगे तुम स्वत: ही
कितना सुखमय यह जीवन।

इसी बात पर तुम मुस्काओ,
चिंताएं हैं व्यर्थ, दूर भगाओ
हास्ययोग को ही याद कर
मुस्काओ और हंसो- हँसाओ।

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