
विज्ञान वैभव: पुस्तक परिचय

विजय नगरकर, अहिल्यानगर, महाराष्ट्र
विज्ञान हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन अक्सर इसे जटिल शब्दों और कठिन भाषाशैली में प्रस्तुत किया जाता है। इससे आम लोगों को विज्ञान को समझने में कठिनाई होती है। यही कारण है कि विज्ञान लेखन को आसान, सरल और रोचक भाषा में प्रस्तुत करना अत्यंत आवश्यक है।
विज्ञान लेखन का उद्देश्य सिर्फ जानकारी देना नहीं, बल्कि समझ पैदा करना है। इसलिए ज़रूरी है कि विज्ञान को जटिल नहीं, बल्कि सरल, सहज और आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया जाए — ताकि हर वर्ग, हर उम्र के लोग उससे जुड़ सकें और एक जागरूक व वैज्ञानिक सोच वाले समाज का निर्माण हो सके।
‘विज्ञान वैभव’ एक ऐसी पुस्तक है जो विज्ञान को सहज, सरल और रोचक ढंग से आम पाठकों के सामने प्रस्तुत करती है। लेखिका दीप्ति वि. कुशवाह, जो एक अनुभवी पत्रकार हैं और दैनिक भास्कर में नियमित रूप से स्वतंत्र लेखन करती रही हैं, ने इस पुस्तक के माध्यम से विज्ञान के प्रति रुचि जगाने का एक अनुपम प्रयास किया है। यह पुस्तक विज्ञान पर सरस लेखों का संग्रह है, जो न केवल ज्ञानवर्धक है, बल्कि पाठकों को विज्ञान की दुनिया में एक मनोरंजक यात्रा पर ले जाती है।
पुस्तक का उद्देश्य और विशेषता
‘विज्ञान वैभव’ का मुख्य उद्देश्य विज्ञान को जटिलता से मुक्त कर, इसे आम पाठकों के लिए सुलभ बनाना है। लेखिका ने अपनी पत्रकारिता के कौशल का उपयोग करते हुए विज्ञान के विविध पहलुओं को सरल भाषा में प्रस्तुत किया है, ताकि हर वर्ग का पाठक इसे समझ सके और विज्ञान में रुचि ले सके। यह पुस्तक उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो विज्ञान को जानना तो चाहते हैं, लेकिन उसकी जटिल शब्दावली और तकनीकी भाषा से परहेज करते हैं।
विषयों की विविधता
पुस्तक में शामिल लेखों की अनुक्रमणिका इसकी व्यापकता और रोचकता को दर्शाती है। कुछ प्रमुख शीर्षक इस प्रकार हैं:
– अँधेरे की तरफ ले जाता प्रकाश (पृष्ठ 15)
इस लेख में लेखिका ने प्रकाश प्रौद्योगिकी का विवेकहीन उपयोग पर प्रकाश डाला है। यह एक सचेतक है।
कृत्रिम प्रकाश ने पृथ्वी की पारिस्थितिकी और मानव जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है। पृथ्वी का प्राकृतिक संतुलन सूरज की रोशनी और रात के शीतल अंधेरे पर टिका है, लेकिन टंग्स्टन बल्ब से शुरू होकर एलईडी तक की यात्रा ने रातों को दिन सा उजाला बना दिया। यह तकनीकी प्रगति ऊर्जा और लागत के लिहाज से सस्ती व सुविधाजनक हुई, पर इसके दुष्परिणाम गंभीर हैं।
वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, बढ़ती आबादी और बस्तियों के साथ-साथ एलईडी जैसी तकनीकों का अंधाधुंध उपयोग प्रकाश प्रदूषण का कारण बना है। इससे बिजली उत्पादन में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन बढ़ा, जो ग्रीनहाउस गैसों के रूप में वैश्विक ताप और जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा दे रहा है। मौसम चक्र में बदलाव इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
एलईडी और सीएफएल से निकलने वाली नीली रोशनी मेलाटोनिन हार्मोन को प्रभावित करती है, जो अंधेरे में बनता है और नींद व प्रतिरोधक क्षमता के लिए जरूरी है। इससे माइग्रेन, थकान और चिड़चिड़ाहट जैसी समस्याएं बढ़ी हैं। कम्प्यूटर की रोशनी भी रेटिना को नुकसान पहुंचा रही है।
– आस्था की आँख में फरेब का मोतियाबिंद (पृष्ठ 22)
अंधविश्वास के खिलाफ कानूनों का महत्वपूर्ण योगदान है, जो समाज में तर्कसंगतता और मानवाधिकारों की सुरक्षा को बढ़ावा देते हैं। भारत में, बिहार, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, असम और कर्नाटक जैसे राज्यों ने अंधविश्वास, जादू-टोना और डायन-प्रथा जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ सख्त कानून बनाए हैं। बिहार ने 1999 में ‘द प्रिवेंशन ऑफ विच प्रैक्टिस एक्ट’ लागू कर महिलाओं को डायन के रूप में चिह्नित करने और अत्याचार को रोकने का प्रयास किया। वहीं, महाराष्ट्र ने 2013 में ‘मानव बलि और अन्य अमानवीय कृत्य उन्मूलन अधिनियम’ पारित किया, जो काला जादू और अमानवीय प्रथाओं पर रोक लगाता है। इसमें छह महीने से सात साल तक की जेल और 5,000 से 50,000 रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है।
इन कानूनों का ऐतिहासिक संदर्भ भी उल्लेखनीय है। तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर ने महाराष्ट्र के कानून का मसौदा तैयार किया, और उनकी हत्या के बाद 2013 में यह अध्यादेश बना। आलोचकों ने इसे हिंदू विरोधी कहा, लेकिन समिति ने स्पष्ट किया कि यह धोखाधड़ी को लक्षित करता है, न कि किसी धर्म को। छत्तीसगढ़ का ‘टोनही प्रताड़ना अधिनियम, 2005’ भी महिलाओं की सुरक्षा के लिए है।
ये कानून वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देते हैं और कमजोर वर्गों, खासकर महिलाओं, को शोषण से बचाते हैं। इनका कड़ाई से पालन और प्रचार जरूरी है।
– घास है खास (पृष्ठ 29)
– किराए की कोख (पृष्ठ 34)
– रंगरंगीली छैलछबीली (पृष्ठ 42)
– प्रकृति के लकड़दद्दा (पृष्ठ 48)
मशीनी मेधा का मोहक मकड़जाल (पृष्ठ 57)
कृत्रिम बुद्धि (ए.आई.) आज केवल विज्ञान कथा नहीं, बल्कि हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी है। रोबोट ‘सोफिया’ को सऊदी अरब में नागरिकता मिलना इसकी बढ़ती भूमिका का प्रतीक है, हालाँकि यह विवादास्पद भी है। वॉइस असिस्टेंट्स जैसे एलेक्सा और सीरी में महिला आवाज़ का प्रयोग, जो विनम्र मानी जाती है, ए.आई. के मानवीय पहलू को दर्शाता है। ई-कॉमर्स में ए.आई. व्यक्तिगत सिफारिशों के जरिए खरीदारी को आसान बनाता है, वहीं फेस रिकॉगनेशन तकनीक ने उत्तरप्रदेश में नकलचियों को पकड़कर इसकी निगरानी क्षमता साबित की है। सबसे रोचक है ए.आई. की स्व-मरम्मत क्षमता, जो इसे और विश्वसनीय बनाती है।
ए.आई. का सफर भी कम रोमांचक नहीं है। 1980 में स्टैनफोर्ड सम्मेलन से शुरू होकर, 1997 में ‘डीप ब्लू’ की शतरंज में जीत, 2002 में ‘रूम्बो’ वैक्यूम क्लीनर, 2012 में ‘गूगल नाउ’, 2020 में कोरोना वैक्सीन के लिए लीनियरफोल्ड, और 2022 में चैट जीपीटी तक, यह तकनीक तेजी से विकसित हुई है। आज ए.आई. व्यवसाय, स्वास्थ्य और शिक्षा में क्रांति ला रही है। यह निश्चित है कि भविष्य में इसका प्रभाव और गहरा होगा, जो हमें एक ऐसी दुनिया की ओर ले जाएगा जहाँ कल्पना और वास्तविकता का अंतर मिटता जा रहा है।
– कहाँ हो तुम नीलगुलाब! (पृष्ठ 65)
– आहार पर हाहाकार (पृष्ठ 69)
– देह और जीवन की लय (पृष्ठ 75)
– चमत्कारी चौखटा चहुँओर (पृष्ठ 80)
– मोहे गोरा रंग दई दे (पृष्ठ 84)
– आसमानी आफत (पृष्ठ 90)
– विचार और उपचार अधूरेपन का (पृष्ठ 97)
ये शीर्षक विज्ञान के विभिन्न आयामों—प्रकृति, तकनीक, पर्यावरण, मानव शरीर, और सामाजिक मुद्दों—को छूते हैं। उदाहरण के लिए, “किराए की कोख” सरोगेसी जैसे संवेदनशील विषय को उजागर करता है, तो “मशीनी मेधा का मोहक मकड़जाल” कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसे आधुनिक तकनीकी क्षेत्र की पड़ताल करता है। इसी तरह, “आसमानी आफत” पर्यावरणीय चुनौतियों पर प्रकाश डालता है। यह विविधता पुस्तक को हर पाठक के लिए आकर्षक बनाती है।
भूमिका
राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित वरिष्ठ विज्ञान लेखक देवेन्द्र मेवाड़ी ने इस पुस्तक की भूमिका लिखी है। मेवाड़ी जी एक यायावर और प्रकृति प्रेमी हैं, जो अपनी लेखनी से विज्ञान को रोचक और सुलभ बनाते हैं।
अपनी भूमिका में विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा है कि हिंदी में विज्ञान साहित्य का अभाव लंबे समय से महसूस किया जाता रहा है। ऐसी पुस्तकें जो विज्ञान को सरल, सहज और रोचक ढंग से प्रस्तुत करें, बहुत कम देखने को मिलती हैं। अक्सर हिंदी में उपलब्ध विज्ञान साहित्य या तो जटिल शब्दावली और उलझी भाषा में होता है या फिर अंग्रेजी का अटपटा अनुवाद। ऐसे में दीप्ति वि. कुशवाह की पुस्तक ‘विज्ञान वैभव’ एक ताज़ा हवा का झोंका है। यह पुस्तक न केवल विज्ञान के जटिल विषयों को सरलता से समझाती है, बल्कि अपनी कथात्मक और लालित्यपूर्ण शैली के कारण पाठकों को बांधे रखती है। यह पुस्तक हिंदी में विज्ञान लेखन की उस कमी को पूरा करती है, जो महाप्राण निराला ने 1932 में अपनी पत्रिका ‘सुधा’ में रेखांकित की थी। उन्होंने कहा था कि वैज्ञानिक लेखन में सर्वसाधारण की भाषा का उपयोग होना चाहिए, जो सरल होने के साथ-साथ लालित्य और रोचकता से परिपूर्ण हो। ‘विज्ञान वैभव’ इस कसौटी पर पूरी तरह खरी उतरती है।
पुस्तक की विशेषताएँ
‘विज्ञान वैभव’ विज्ञान के विविध विषयों को एक कहानी की तरह प्रस्तुत करती है। लेखिका दीप्ति वि. कुशवाह ने अपनी लेखनी से विज्ञान को इस तरह बुना है कि पाठक न केवल ज्ञान अर्जित करता है, बल्कि उसका मनोरंजन भी होता है। पुस्तक के प्रत्येक अध्याय एक नई खिड़की खोलता है, जिसके माध्यम से पाठक विज्ञान के रहस्यों को सहजता से समझ पाता है। लेखिका की भाषा इतनी सरस और प्रवाहमयी है कि पाठक को लगता है जैसे वह किसी कथा-साहित्य को पढ़ रहा हो।
पुस्तक में विषयों की विविधता इसकी सबसे बड़ी ताकत है। यह पाठकों को प्रकृति, जीव-जगत, मानव शरीर, तकनीक, पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों से जोड़ती है। उदाहरण के लिए, एक अध्याय में रंग-बिरंगी गिलहरी की बात होती है, जिसे लेखिका ने इतने सुंदर ढंग से वर्णित किया है कि पाठक उस जीव के प्रति आकर्षित हो उठता है। लेखिका बताती हैं कि महाराष्ट्र का राजकीय प्राणी, यह गिलहरी, अपने बैंगनी रंग के कारण अद्वितीय है, जो स्तनपायी कुल में किसी अन्य जीव में नहीं पाया जाता। साथ ही, महादेवी वर्मा द्वारा इसे ‘गिल्लू’ नाम देकर साहित्य से जोड़ने की बात पाठक को साहित्य और विज्ञान के बीच एक सुंदर सेतु प्रदान करती है।
रोचक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
पुस्तक का एक और आकर्षक उदाहरण है नासा द्वारा 28 अक्टूबर 2022 को साझा की गई सूर्य की तस्वीर, जिसमें सूरज बच्चों की तरह हँसता नज़र आता है। लेखिका इस तस्वीर को केवल एक मनोरंजक घटना के रूप में प्रस्तुत नहीं करतीं, बल्कि इसके पीछे छिपे सौर तूफान जैसे वैज्ञानिक खतरे की ओर भी ध्यान आकर्षित करती हैं। यह शैली पाठक को विज्ञान के प्रति उत्सुक बनाती है और उसे गंभीर वैज्ञानिक तथ्यों को समझने के लिए प्रेरित करती है।
इसी तरह, ‘देह और जीवन की लय’ अध्याय में मानव शरीर की जैविक घड़ी (बायोलॉजिकल क्लॉक) की चर्चा इतने रोचक ढंग से की गई है कि पाठक आश्चर्यचकित रह जाता है। लेखिका बताती हैं कि यह अदृश्य घड़ी बिना किसी ऊर्जा स्रोत के हमारे शरीर की हर गतिविधि को नियंत्रित करती है—खाना पचाने से लेकर नींद और जागने तक। इस तरह के विवरण पाठक को अपने शरीर के प्रति जागरूक करते हैं और विज्ञान को उनके जीवन से जोड़ते हैं।
विविधता और सामाजिक प्रासंगिकता
‘विज्ञान वैभव’ में शामिल विषयों की विविधता इसे हर आयु वर्ग के पाठकों के लिए उपयोगी बनाती है। पुस्तक में प्रकाश प्रदूषण, कृत्रिम बुद्धि (एआई), नीले गुलाब की खोज, तेज़ाबी वर्षा, सूर्य की ऊर्जा, किराए की कोख, और डिस्फोरिया जैसे विषय शामिल हैं। ये विषय न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय संदर्भों में भी प्रासंगिक हैं। उदाहरण के लिए, प्रकाश प्रदूषण के बारे में बताते हुए लेखिका हमें हमारी बदलती जीवनशैली और इसके पर्यावरणीय प्रभावों के प्रति सचेत करती हैं। इसी तरह, डिस्फोरिया जैसे विषय को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करते हुए वे विज्ञान और मानवता के बीच संतुलन बनाती हैं।
पुस्तक की एक और खासियत यह है कि यह अंधविश्वासों का खंडन करती है। लेखिका ने वैज्ञानिक तथ्यों को आधार बनाकर उन धारणाओं को चुनौती दी है, जो समाज में गलतफहमियों को बढ़ावा देती हैं। प्रत्येक अध्याय के अंत में संदर्भ स्रोत देना इस पुस्तक की विश्वसनीयता को और बढ़ाता है।
लेखन की कला और प्रेरणा
लेखिका की भाषा-शैली इस पुस्तक की आत्मा है। उनकी लेखनी में वह लालित्य और रोचकता है, जिसकी आवश्यकता निराला ने अपने लेख में बताई थी। यह पुस्तक हिंदी में विज्ञान लेखन की उस कला का उदाहरण है, जिसके बारे में प्रख्यात खगोल वैज्ञानिक डॉ. जयंत नार्लीकर ने कहा था कि जटिल वैज्ञानिक तथ्यों को आम लोगों तक सरलता से पहुँचाना ही असली लेखन कला है। दीप्ति वि. कुशवाह ने इस कला को बखूबी साधा है। उनकी लेखनी में ग़ालिब का वह ‘अंदाज़े बयां’ साफ झलकता है, जो किसी भी लेखक को विशिष्ट बनाता है।
पुस्तक का एक और मार्मिक अंश डिस्फोरिया पर आधारित है, जहाँ लेखिका प्रकृति की ‘भूल’ और चिकित्सा विज्ञान द्वारा इसे ठीक करने की प्रक्रिया को संवेदनशीलता से प्रस्तुत करती हैं। यह अंश न केवल वैज्ञानिक है, बल्कि सामाजिक और मानवीय दृष्टिकोण से भी गहरे प्रभाव छोड़ता है।
निष्कर्ष
‘विज्ञान वैभव’ हिंदी में विज्ञान साहित्य की एक अनमोल कृति है। यह पुस्तक न केवल विज्ञान को सरल और रोचक बनाती है, बल्कि पाठकों को उनकी अपनी दुनिया और शरीर से जोड़ती है। लेखिका दीप्ति वि. कुशवाह ने अपनी लेखन कला से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है और यह सिद्ध किया है कि विज्ञान को आम लोगों तक उनकी अपनी भाषा में पहुँचाया जा सकता है। यह पुस्तक हर उस पाठक के लिए एक उपहार है, जो विज्ञान को समझने के साथ-साथ उसका आनंद लेना चाहता है।
लेखिका को इस अद्भुत प्रयास के लिए हार्दिक बधाई और भविष्य में भी इसी तरह के रचनात्मक लेखन के लिए शुभकामनाएँ। विश्वास है कि वे हिंदी में विज्ञान साहित्य को और समृद्ध करेंगी।
प्रकाशन और अन्य विवरण
– प्रकाशक: अद्विक पब्लिकेशन, 41 हसनपुर, आई.पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-110092
– संपर्क: 011-43510732, 9560397075
– ईमेल: advikpublication1@gmail.com
– वेबसाइट: www.advikpublication.com
– ISBN: 978-81-19206-77-3
– प्रथम संस्करण: 2023
– मूल्य: 160 रुपये
– कवर डिजाइन: यश कुशवाह
– पुस्तक सज्जा: बिपिन राजभर
– मुद्रण: मल्टीप्रिंट, दिल्ली-110092
मो 9422726400
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