
डॉ. इंगीता चड्ढा (ठक्कर), ऑस्ट्रेलिया
महिला दिवस
फिर आया महिला दिवस,
फिर मचा शोर — नारी-शक्ति का।
फिर सुनाई दी आवाज़ — अस्मिता और सम्मान की,
और दोहराई गई कहानी — अत्याचार और अपमान की।
फिर सजे समारंभ — नारी जीवन-दान के,
पर हृदय कहीं विचलित है।
एक सवाल फिर से प्रज्वलित है:
क्या सिर्फ़ दर्द ही है पर्याय नारी के अस्तित्व का?
क्या लाभ है इन बलात्कार, तेज़ाब और शोषण के विज्ञापन का?
चलो करें स्वीकार,
नारी को मिला है पुरुषों से भी स्नेह और सत्कार।
पिता, भ्राता, पति, पुत्र, मित्र और गुरु — सबने दिए स्नेह और ज्ञान।
महिला दिवस पर इन सबको भी शत-शत प्रणाम।
नारी तेरे आनंद आँगन में फूल बनकर खिली,
अनंत आसमान में मुक्त पंछी बनकर उड़ी।
अबला कह कर जिस नारी को रोका गया,
वो अब स्वाभिमान से जीती है!
सबल नारी की यही तो पहचान है बनी।
कभी पुत्री, कभी बहन,
कभी पत्नी, कभी माता,
कभी सखी बनकर
स्नेह भरे रिश्तों में ढलती रही नारी।
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