गोवर्धनसिंह फ़ौदार ‘सच्चिदानन्द’, मॉरीशस

सिंदूर

जान हथेली ले उतरे हैं, अपने सारे वीर।
बदला ये सिंदूर का आज, ले पोंछेंगे नीर।।

पानी सिर से हुआ है उपर,खैर नहीं इस बार।
कुचलने फ़न तेरा आ गये, हो जा तू तैयार।।

तुमने सोचा भूल गये हम, निर्दोषों पर वार।
इतने भी बेजान नहीं हम, देंगे तुम्हें दुलार।।

जैसे करनी वैसी भरनी, हालत अपनी ताक।।

नयन हमारे अब भी भीगे, माँ अपनी लाचार।
चकनाचूर करेंगे तुमको, सिंदूर की पुकार।।

जब जब अत्याचार हुआ है, हुआ यहाँ अवतार।
कृष्ण अर्जुन देखो पधारे, तोड़ने अहंकार ।।

संस्कारों पर फिर प्रहार तुम, नहीं सोचना बात।
‘सच्चिदानन्द’ करता वादा, पाओगे आघात।।

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