सांता पुदेंज़ियाना का बेसिलिका

सात पहाड़ियों पर बसा शहर : रोम

शशि पाधा, वर्जीनिया, यू एस ए

याद है बचपन में मैंने अपने जन्म स्थान जम्मू शहर की मुबारक मंडी के राजमहलों के बीचोबीच एक बहुत ही सुन्दर बाग़ देखा था। बाग़ में स्थापित  संगमरमर की सीढियाँ, फव्वारे और मूर्तियाँ देख कर हैरानी से अपने पिता से पूछती, “ पिता जी, इतनी सुंदर मूर्तियाँ कौन बनाता है?” पिता के पास सभी उत्तर होते हैं न, बड़े स्नेह से कहते, “ यह मूर्तियाँ इटली से आई हैं। हमारे महाराजा ने विशेषकर हमारे शहर के लिए मंगवाई हैं।”

“ इटली कहाँ है पिता जी, बम्बई के पास?” मेरे बाल सुलभ प्रश्न का उत्तर देते हुए वह कहते, “ बहुत दूर, सात्त समन्दर पार।वहाँ पर संग्राहलय में बहुत सी पेंटिंग्स हैं और ऐसे फव्वारे भी।”

“मैं  इटली जाऊँगी, आप मुझे ले जायेंगे न पिता जी?

पिता बस मुस्कुरा देते। नहीं जानती कि छह-सात की भोली उम्र में जो इच्छा जताई थी, उम्र की सांध्य बेला में वो पूरी होगी| हाँ! पिता तो साथ नहीं थे, लेकिन पति और दोनों बेटों ने इस  स्वपन को साकार कर दिया।

फरबरी 7, 2025  की शाम  मैंने अपने पति और दोनों बेटो के साथ इटली की राजधानी रोम के लिए अपनी यात्रा आरम्भ की। यात्रा लम्बी थी, लेकिन लन्दन में चार घंटे के लिए रुकने से आराम मिला। लन्दन से रोम के लिए केवल ढाई घंटे की यात्रा रोम के विषय में सोचते हुए ही निकल गई|

खैर! 8 फरबरी की रात  हम रोम पहुँचे। अगली सुबह ही हम रोम के भीतर एक और देश ‘वैटिकन सिटी’ के लिए होटल से निकल गये।

कोलोजियम एम्फिथेटर

‘वेटिकन सिटी’ रोम शहर के ही बीच में एक अलग देश है और पृथ्वी का सब से छोटा, स्वतन्त्र राष्ट्र है। ईसाई पंथ के प्रमुख सम्प्रदाय रोमन कैथोलिक चर्च का यही पर केंद्र है तथा इस सम्प्रदाय  के धर्मगुरु पोप का निवास स्थान भी है।इसमें सेंट पीटर गिरजाघर, वैटिकन प्रासादसमूह, वैटिकन बाग तथा कई अन्य गिरजाघर सम्मिलित हैं। सन् 1929 में एक सन्धि के अनुसार इसे स्वतन्त्र राज्य स्वीकार किया गया था।कैथोलिक परम्परा के अनुसार इसी स्थान पर सेंट पीटर को दफनाया गया था।

रोम और वेटिकन सिटी के बीच कोई दीवार, कोई सीमा रेखा निर्धारित नहीं की गयी है। बस रोम शहर में चलते-चलते ही आप  वेटिकन सिटी पहुँच जाते हो। उस सुबह पथरीली गलियों में  बर्फ़ीली हवाओं  का सामना करते-करते हम भव्य सेंट पीटर्स बेसिलिका के विशाल परिसर में पहुँच गये। अपने चारों ओर हजारों दर्शनार्थियों की भीड़ देख कर बहुत हैरानी हुई। याद आया कि जैसे  प्रयागराज में महाकुंभ में लोग एकत्रित हुए हैं, कुछ-कुछ वैसे ही यहाँ पर भी दूर-दूर तक लोग ही दिखाई दे रहे थे। भाग्य से वह दिन विशेष था। रविवार होने के कारण ईसाईयों के धर्मगुरु’ पोप’ द्वारा पूजा-अर्चना की जा रही थी और हम लोग बड़े बड़े टीवी के मॉनीटर पर यह पावन दृश्य देख रहे थे। पोप वहाँ  की राज्यभाषा लातिनी में बोल रहे थे और लोग भावुक हो कर ध्यानमग्न सुन रहे थे| मास के बाद ही हमें गिरिजाघर में जाने का अवसर मिला।

सेंट पीटर बेसिलिका केवल एक चर्च नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर है। इसकी भव्यता, वास्तुकला, और धार्मिक महत्व इसे दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित स्थलों में से एक बनाते हैं। इस भव्य गिरिजाघर के कलात्मक सौदर्य को शब्दों में बताना कठिन है। गुम्बद के आस-पास  की दीवारों पर की गई चित्रकला अचम्भित कर देती है। उसी गिरिजाघर के भीतर विश्वप्रसिद्ध मूर्तिकार माइकल एंजेलो द्वारा संगमरमर पर गढ़ी हुई माँ मेरी और येशु की मूर्ति को देख कर दर्शक भावविह्वल हो जाते हैं। इस विशाल गिरिजाघर के मुख्य आकर्षण केंद्र  थे:-

1.सेंट पीटर की समाधि – चर्च के नीचे वह स्थान जहाँ संत पीटर को दफनाया गया माना जाता है।

2. गुंबद (Dome) – यह रोम का सबसे बड़ा गुंबद है और इसके ऊपर चढ़कर पूरी वेटिकन सिटी और रोम का शानदार दृश्य देखा जा सकता है।

3. ला पिएटा (La Pietà) – माइकल एंजेलो द्वारा बनाई गई विश्व प्रसिद्ध संगमरमर की मूर्ति, जिसमें वर्जिन मैरी, यीशु मसीह के मृत शरीर को गोद में लिए हुए दिख रही हैं।

ट्रेवी फाउंटेन

इस गिरिजाघर के भीतर खड़े हुए हमने एक पवित्र शान्तिभाव का अनुभव किया। एक ऐसा अलौकिक अनुभव जो चित्रकारी और मूर्तिकला के प्रभाव से सौ गुना बढ़ कर था। किसी ने नहीं कहा कि आप जल्दी से यहाँ से चले जाएँ, भीड़ न करें। बस एक दैविक शांति को मन में सहेजे हम उस दिन गिरिजाघर से  बाहर आ गए।बाकी का दिन हमने पर्यटक बस में बैठ कर पूरे रोम शहर के दृश्य देखे। शहर में घूमते हुए कई बार पुरानी किलेनुमा पत्थरों की दीवारें देख कर भारत के पुराने किलों की याद आ गयी।। मुझे इस बात की प्रसन्नता हुई कि सैंकड़ों वर्षों के बाद भी कुछ देशों ने अपनी पुरानी वास्तुकला को बचाए रखा है।

शाम तक बहुत ठण्ड हो गयी थी, हमने बस में ही चार बार रोम की परिक्रमा कर ली। दूर से रोम के विश्वप्रसिद्ध कोलोसियम को देखा, यह इटली के रोम शहर में बना एक विशाल  एंफ़ीथियेटर है। इसे रोमन साम्राज्य के समय में बनाया गया था। यह रोमन स्थापत्य और इंजीनियरिंग का बेहतरीन नमूना है। कोलोसियम को यूनेस्को ने विश्व विरासत में शामिल किया है। बस में बैठे बैठे ही मैंने कमेन्ट्री में सुना कि इस विशाल स्टेडियम में उस समय लोगों के मनोरंजन के लिए खूनी खेल खेले जाते थे। दोषी कैदियों  को दंड देने के लिए उन्हें स्टेडियम के बीचोबीच जंगली जानवरों के सामने खड़ा कर दिया जाता था और लोग उनकी असहाय स्थिति का आनन्द लेते थे।  इसके साथ ही एक प्रकार  के लड़ाकू खिलाड़ी तैयार किये जाते थे जिन्हें ‘ग्लेडिएटर्स’ कहा जाता था और दो गुटों के लड़ाकू भी यह खूनी खेल खेलते थे। यह सब क्रूरता का विवरण सुन कर मैंने तो वहाँ भीतर न जाने का निर्णय लिया और बाहर से ही  इसकी किलेनुमा दीवारों को देखकर संतोष कर लिया।

रोम में आये दूसरे  दिन हमने बाकी के महत्वपूर्ण पर्यटनस्थल सिस्टीन चैपल और ट्रीवी फाउंटेन देखने का निर्णय लिया ।इटली के वेटिकन सिटी में स्थित सिस्टिन चैपल दुनिया के सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण कलात्मक और धार्मिक स्थलों में से एक है। माइकल एंजेलो की प्रतिष्ठित छत और “द लास्ट जजमेंट” सहित अपने आश्चर्यजनक भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध, यह चैपल हर साल लाखों आगंतुकों को आकर्षित करता है जो इसकी कलात्मक भव्यता और आध्यात्मिक महत्व को देखकर आश्चर्यचकित होते हैं।

 सिस्टीन चैपल:-

वेटिकन सिटी में मुख्य चैपल के साथ ही स्थित ‘सिस्टीन चैपल’ रचनात्मकता का अद्भुत उदाहरण है। यह केवल संग्रहालय ही नहीं अपितु कलाकृतियों का जीवंत प्रमाण और  कला प्रेमियों का तीर्थ स्थल। 

भव्य सिस्टीन चैपल की गेलेरी

इसकी छत और दीवारों पर सदी के अद्भुत कलाकार माइकल एंजेलो के लुभावने भित्तिचित्रों ने सदियों से दर्शकों को आकर्षित किया है।  चैपल की दीवारों पर चित्रित  पुनर्जागरण (Renaissance) की गाथा कलात्मक रूप से चित्रित की गई है, जिसमें उत्पत्ति की पुस्तक ( Bible of Genesis) के दृश्यों को दर्शाया गया है, जिसमें प्रतिष्ठित ‘एडम का निर्माण’ भी शामिल है। सिस्टीन चैपल के भीतर ही कैथोलिक धर्म के गुरु दिवंगत सभी पोप की समाधियाँ भी सुरक्षित हैं। समाधियों के ऊपर शीशे के फ्रेम में संगमरमर में तराशी उनकी मूर्तियाँ भी दर्शनीय हैं। इस संग्रहालय में विश्व प्रसिद्ध चित्रकार लिनियार्डो दा विन्ची और वॉन  गौग के कलात्मक चित्र भी संग्रहित हैं। पूरे सिस्टीन चैपल को देखने के बाद मन में उन कलाकारों के प्रति श्रद्धा के भाव उमड़ आये जिन्होंने बरसों की मेहनत से इस चैपल को इतना कलात्मक रूप दिया। यह पूरे विश्व की कलाजगत की धरोहर है|

ट्रेवी फाउंटेन:-

भारत के प्राचीन नगरों में जैसे  गलियों से घिरा हुआ चौराहा  होता है, ठीक वैसा ही बड़ा सा तिराहा रोम शहर के बीचोबीच देख कर हम सब खुश हो गये। यह स्थान मुझे तीन गलियों से घिरा लगा क्यूँकि इसकी एक दिशा में  रोम का सब से प्राचीन मंदिर स्थापित है। इसी तिराहे की शोभा बढ़ा था रोम का विश्वप्रसिद्ध फव्वारा ‘ट्रेवी फौन्टेन’। संगमरमर की कलात्मक मूर्तियों से सुसज्जित यह फ़व्वारा अपनी कलाकृतियों के चलते एक सामान्य फव्वारे की जगह एक आकर्षक शिल्पकृति के रूप में  तब्दील हो चुका है।ट्रेवी फाउंटेन पर तीन कैरेक्टर नजर आते हैं।

वेटिकन सिटी का सेंट पीटर्स गिरिजाघर

दुनिया में इसे पब्लिक आर्ट का बेहतरीन नमूना कहा जाता है। इसमें अलग-अलग भावनाएँ प्रकट करती हुई तीन मूर्तियाँ हैं। फव्वारे के बीचोबीच ओसेनियस की मूर्ति है। उनके घोड़े दो समुद्री घोड़े लेकर जा रहे हैं। इन घोड़ों में एक नाम है विंड (पवन) और दूसरे का नाम डोसाइल (विनम्र), जो समुद्र के दो भावों को प्रकट करते हैं।बाँयी ओर समृद्धि की देवी (abundas) की कलात्मक  मूर्ति सुशोभित है। कला प्रेमियों का तीर्थ स्थल इस फव्वारे से जुड़ी एक मान्यता है कि जो दर्शनार्थी इसमें सिक्के फेकेंगा, उसके मन की इच्छा अवश्य पूरी होगी। सैंकड़ों लोगों को इस फव्वारे में सिक्के फेंकते देख और लोगों को उत्साह के साथ खिलखिलाते देख बहुत खुशी हुई। बच्चों के कहा, “ माँगिये न कुछ।” मैं बस मुस्कुरा दी। क्या माँगूं ? जिससे माँगना है, वो तो स्वयं ही सब जानता है।

सांता पुडेनज़ियाना का बेसिलिका:-

फव्वारे के इसी तिराहे  के एक छोर पर रोम का पैन्थियान यानी  रोम का सांता पुडेन्ज़ियाना चर्च स्थापित है। यह ईसाई पूजा का सबसे पुराना ऐतिहासिक स्थल है। यह रोम का सबसे पुराना कैथोलिक चर्च भी है। यह चर्च इटली में एकमात्र पूरी तरह से जीवित कार्यात्मक प्राचीन रोमन इमारत भी है। यह 27 ईसा पूर्व का है और मूल रूप से एक रोमन मंदिर था। इस मंदिर की दीवारों पर भी आकर्षक कलाकृतियाँ चित्रित थीं, जिन्हें देख कर हम सब  श्रद्धा से नतमस्तक हो गये।

रोम शहर में तीन दिन घूमते हुए अगर मैं रोम की जान-शान टाइबर नदी के विषय में न लिखूँ तो बड़ी नादानी होगी। रोम शहर के बीचोबीच बहती हुर्र यह प्राचीन नदी अपने 30 पुलों की सहायता से विशाल रोम नगर को आपस में जोड़ के रख रही है।|इस नदी के ऊपर से बस में या पैदल गुजरते हुए मेरे मन में कुछ ऐसे भाव आये जैसे एक माँ अपने आस-पास खड़े अपने परिवार को बड़े गर्व और ममता से निहार रही हो। न जाने कितनी कहानियाँ इस नदी ने सुनी होंगी और आज भी यह पूरे वैभव से बह रही है।  रोम नगर को छोड़ते हुए मन में थोडा असंतोष भी था, क्यूँकि इतनी भव्य, एतिहासिक, कलात्मक धरोहर को देखने के लिए तीन  दिन कम थे। लेकिन जो स्मृतियाँ मैं अपने कैमरे से अधिक मन के कैमरे में  संजो के लाई , उनका तो कोइ मूल्य नहीं। इन्हें दे और संतोष कर लूँगी।

Email: shashipadha@gmail।com

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