बढ़ते कदम

– कृष्णा कुमार

आज झरोंखों के पार देखा
आज दिल को समझाया
चल उठ, उठकर, कुछ क़दम तो बढ़ा
क्या पता उसपार, इसपार से कुछ ज़्यादा हो,
नीले आसमाँ के अलावा कुछ रंग और हों।

रंग तो बहुत थे, आशाएँ तो बहुत बँधीं ,
कुछ क़दम और बढ़े
कुछ बाधाएँ भी पार कीं,
कुछ और सपने सजाये,
कुछ और अपने बनाये,
बढ़ते गये, बढ़ते गये,
कारवाँ मिला, इधर देखा , उधर देखा ,
और फिर
ख़ुद को ख़ुद से बातें करते पाया !

अपने जीवन के सत्य की तलाश यहीं रोक दी,
पाया कि …..प्यार ही सत्य है,
इसपार भी और उसपार भी।

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