– कृष्णा कुमार

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी की अस्थिरता ने,
हमें बहुत कुछ सिखाया है
अब तो लगता है जैसे,
इसी का नाम है ज़िन्दगी।

इस उथल-पुथल में,
कुछ बहुत पास आ जाते है,
कुछ दिखाई तो देते हैं ,
पर पास जाने पर जैसे,
हवा हो जातें हैं।
ये जो मृग तृष्णा है,
इसी का नाम है ज़िन्दगी ।

एक-एक तिनका जोड़कर
घोसला बनाते हैं,
कभी इस डाल पे
कभी उस डाल पे
जानते है इसका हश्र
फिर भी !!
इसी उम्मीद का नाम है ज़िन्दगी !

पर्वत देख के एक भ्रम सा होता है
अडग, अचल, ऊँचा और विशाल पर,
कम्पन तो वहाँ भी होता है,
एक बहुत बड़ी हलचल,
कभी विनाश के रूप में,
इसी कम्पन का नाम है ज़िन्दगी ।

ब्रह्माण्ड के इस नगण्य देह को
किस की है अभिलाषा,
ख़ाली हाथ आया है
ख़ाली हाथ जाना है पर,
इसी भ्रम का नाम है ज़िंदगी!

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One thought on “ज़िन्दगी – (कविता)”
  1. बहुत ही भावपूर्ण और मन को छूने वाली कविताएँ हैं। बधाई।

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