– मृणाल शर्मा, ऑस्ट्रेलिया

पेड़ लगाना यज्ञ है

जब यौवन सो चुका युद्ध की बेला,
और मांग रहा रण अपनी आहुति
उस समय बिन विचारे घर-घर वीर जगाना यज्ञ है

जब धरा प्यास से व्याकुल हो,
वन-खेत सूखते जाते हों
तब हाथ बढ़ा नील गगन से मेघ बुलाना यज्ञ है

जब वसंत बिखरा हो पग पग पर,
सौंदर्य खिला हो इस जग पर,
तब त्याग वासना, एक चित से ध्यान लगाना यज्ञ है

जब गाँवों की हरियाली कम हो,
और वनश्री का होता लोप दिखे,
तब अपने कर को रज में भर कर पेड़ लगाना यज्ञ है

जब निर्बल का सच झुकता हो,
सबलों और झूठों के व्यूह में,
तब त्याग भय हर एक का, अभिमन्यु हो जाना यज्ञ है।

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