
भाषा में दबंगई
– डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम
संविधान बनाए ही इसलिए जाते हैं कि व्यवस्था और शासन नियम से चलें, न कि उठाईगिरी, दबंगई या जबरदस्ती के कब्जे-से। कब्जा केवल जर -जोरू -जमीन पर ही नहीं होता। जिसकी फ़ितरत में कब्ज़ा हो, वह कुछ भी कब्ज़ा सकता है। इसके लिए वह लट्ठपाल ठीक करके रखता है। यहाँ तक कि खुद भी लट्ठ बना फिरता है।
मुझे इसका इहलाम तब हुआ जब मैंने किसी को ललकारते और चिंघाड़ते हुए सुना — अरे भाषा किसी के बाप की रखैल है कि तुम्हारी चलेगी। पहले तो मैं आश्वस्त हुआ कि भाषा के लिए लड़ने वाले धनुर्धर भी दुनिया में हैं। बाद में पाया कि वह जंघा ठोक कर यह चुनौती दे रहा था — भाषा तुम्हारी नहीं, मेरी रखैल है। मैं उसे भरे दरबार में अपनी जंघा पर बिठाऊँगा। है कोई माई का लाल, जो मुझे रोके।
भाषा ने हताश होकर भीम की ओर देखा — पर उसे युधिष्ठिर की करतूतों ने पानी पानी कर रखा था। वह बस दाँत पीसकर इतना ही कह सका — दुर्योधन! एक दिन तेरी यही जंघा तोडूँगा।
ओह! मैं भी जाने कहाँ घुस गया! बात भाषा की थी। उसमें भी एक अति परिचित शब्द की थी। जैसे ही अंतर्राष्ट्रीय शब्द आता है, खुद को सिद्ध भाषाविज्ञानी सिद्ध करने वालों का ज्वार उमड़ आता है — अंतर्राष्ट्रीय नहीं, अंतरराष्ट्रीय। कुछ पढ़ो, लिखो ; फिर बोलो। अपनी मत चलाओ। संविधान की सुनो। उसकी धाराएँ पढ़ो।
पर हर पार्टी के लठेत (सही वर्तनी मोबाइल में नहीं आ पा रही ) हैं। वे अपने फौलादी पट्ट और डोले दिखाकर कहते हैं — संविधान की ऐसी तैसी। यह मेरे बाप- दादा की जागीर है। मेरे बाबा यही लिखते थे। मेरे परम उदभट गुरु यही लिखते थे। तुम चींटी-से उनसे जुबान लड़ाते हो? मेरे गुरुजी को गलत बताते हो? तुम्हारी जंघा तोड़ दूँगा।
कई बेचारे गंगापुत्र भीष्म की तरह अंदर तक दहल जाते हैं और सिसकारी भरते हैं — यह मेरे भरतवंश को क्या हो गया है!
वे बीच का रास्ता तलाशने में लग जाते हैं । कहते हैं — दुर्योधन! ये पाण्डुपुत्र तुम्हारे ही भाई हैं। इनकी सुनो!
पर अंधा दुर्योधन खम ठोकते हुए कहता है — मैं इंच भर भी जमीन नहीं दूँगा।
मैं सोच में पड़ गया कि अगर दुर्योधन पांडवों को पाँच गाँव दे भी देता तो क्या उनमें सुलह हो जाती??
कुछ बीच-बचाव करने वाले समझदार लोग कहते हैं — ये अंतर्राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों शब्द ठीक हैं। फिर यह भी कहते हैं — वैसे सभी को चाहिए कि एक ही शब्द चले। उनकी स्थिति शर- शैया पर कराहते भीष्म-सी है। बेचारे क्या करें, कोई सुनता ही नहीं।
मैं सोचने लगा, हमें महाभारत से सीख लेनी चाहिए। लड़ने से कुनबे बर्बाद हो जाते हैं। हाथ में कुछ नहीं आता। समझदारी इसी में है कि वार्ता की मेज पर बैठा जाए। अपने-अपने कब्जे का अहंकार त्यागकर खुले मन से बात की जाए, तभी लोकतंत्र, संविधान और जीवन चल सकता है।
बात अंतर्राष्ट्रीय शब्द से उठी थी। संविधान अर्थात शब्दकोश और व्याकरणविद क्या कहते हैं? मेरे पास छह कोश हैं। सभी एकस्वर से कहते हैं — यह शब्द अंतर (इसमें र हल अर्थात स्वर रहित है) से बना है, जिसका अर्थ है — भीतर, अंदर, within, के अंदर-अंदर। अतः अंतर्राष्ट्रीय शब्द का अर्थ हुआ — राष्ट्र के अंदर-अंदर। यानी अंतर्देशीय या डोमेस्टिक।
जब साफ-साफ शब्दकोशों में यह लिखा है, तो फिर यह शब्द प्रचलित कैसे हुआ? इसके अनेक कारण हो सकते हैं। कई बार असावधानी से गलती हो जाती है। कोई टोकता नहीं तो गलती जड़ पकड़ लेती है। फिर वह गलती हमारी पहचान, आदत, धरोहर और आनबान का प्रश्न बन जाती है। जैसे अपना कुरूप पुत्र भी माँ को संसार का सबसे सुंदर बालक लगने लगता है, हमें वह शब्द भी अपना लगने लगता है। हड़काऊ भाषा में कहूँ तो हमारा उसपर निर्दोष कब्ज़ा हो जाता है। तब हम संविधान की भी नहीं सुनते।
अच्छा, ये शब्दकोश पिछले 100 वर्षों से बता रहे हैं — अंतरराष्ट्रीय का अर्थ है — दो या अधिक राष्ट्रों के बीच। आप जब भी किसी अन्य देश की यात्रा करते हैं तो अंतरराष्ट्रीय यात्रा करते हैं। यह आज से नहीं, दीर्घकाल से हमारे शब्दकोश बता रहे हैं। किंतु कोई सुने न! सबको नंबर गेम पर विश्वास है। अपने भोंपुओं पर, दबंगों पर, बहरे मतदाताओं पर विश्वास है। धाराएँ धरी की धरी रह जाती हैं। संविधान मुँह ताकते रह जाते हैं। लट्ठमलट्ठा हो जाती है। हो रही है।
अभी तो लठ्ठमलट्ठा और होगी। हमारे देश के आधुनिक हितैषियों के कारण अब एक-एक की जाति देखी जाएगी, गिनती की जाएगी। क्लेश और दबंगई बढ़ेगी। दो और शब्द इसकी चपेट में आएँगे। अगला युद्ध इन पर होगा। वे शब्द हैं — अंतर्जातीय और अंतरजातीय।
आप जानते हैं — अंतर्जातीय का अर्थ है — अपनी जाति के बीच। यदि कोई व्यक्ति अपनी ही जाति की किसी लड़की या लड़के से विवाह करता है तो वह अंतर्जातीय विवाह होगा। किसी ब्राह्मण ने ब्राह्मण कुल की कन्या से विवाह किया तो अंतर्जातीय विवाह होगा।
इसके विपरीत यदि किसी ने अपनी जाति को छोड़कर अन्य किसी जाति में विवाह किया तो उसे अंतरजातीय विवाह कहेंगे। ये दो शब्द फिर-से भ्रम खड़ा करेंगे और एक नया युद्ध लड़ा जाएगा। इसके लिए अपनी लाठियों को तेल पिलाना शुरू कर दीजिए। सुअवसर आने वाला है!
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