
पापा आप कहीं नहीं गए
– सरस दरबारी
पापा को हमारा साथ छोड़े पूरे 18 साल हो गए। पर इन सालों में कभी नहीं लगा की पापा हमारे साथ नहीं— उनकी कही बातें इस कद्र ज़ज्ब हैं हम सबके भीतर कि जब भी मुश्किल समय में पापा को याद कर आँखें बंद करती हूँ, तो उनका हाथ सर पर महसूस होता है।
उसी तरह सर सहलाते हुए, पुचकारते हुए, उनके शब्द सुनाई देते हैं,
“बेटा उपरवाला बहुत दयालु है। अगर वह दुःख देता है, तो उससे लड़ने की ताक़त भी देता है। चिंता मत करो, सब ठीक हो जायेगा।”
और फिर वही प्रार्थना जो उन्होंने हर मुश्किल घड़ी में दोहराई है,
O God! please give me the courage
To accept what I cannot change-
The strength to change what I can,
and
The wisdom to know the difference
पापा उन लोगों में थे, जो सपने देखते हैं, और उन्हें पूरा कर दिखाते हैं।
उन्होंने भी एक सपना देखा था।
मुंबई जाकर कुछ बनने का और वे चल पड़े।
जद्दोजहद, मुफलिसी, बेगारी, और एक बुलंद हौसला …!
बस यही थे उनके साथी इस अनजान शहर में, जहाँ जीवित रहने के लिए कभी बावर्ची का काम किया, तो कभी साबुन बेचा।
फिर काम मिला। दोस्त बने।
धीरे धीरे पत्रकारिता शुरू की। शब्दों के कुमार तो वे हमेशा से ही थे, अब श्री शब्द कुमार एक जाने माने पत्रकार हो गए। धर्मयुग, इलस्ट्रेटेड वीकली,ब्लिट्ज, माधुरी आदि में उनके लेख छपते। साथ ही फिल्म उद्योग की पत्रिका ‘फिल्म इंडस्ट्री जर्नल’ के वे संपादक बने।
सपने फिर भी कोसों दूर थे। फिर शुरू हुआ एक और अध्याय, फिल्म लेखन का। बालिका बधू, इन्साफ का तराजू, साजन बिना सुहागन, आज की आवाज़, जवाब, इत्यादि फिल्में लिखीं और कई अवार्ड्स भी जीते।
लेकिन कुछ प्रश्न अब भी अनुत्तरित थे
पापा के ही शब्दों में:
“हमारे घर में मेरे पिताजी ने हमें प्रश्न पूछने और उन पर विचार-विमर्श करने की पूर्ण स्वतंत्रता दी थी; चाहे वे प्रश्न भूत प्रेतों के विषय में हों, देवी देवताओंके विषय में हों अथवा रामायण और महाभारत के विषय में।
कई प्रश्नों के उत्तर शीघ्र मिल गये पर कुछ प्रश्न ऐसे भी थे जो कई वर्षों तक उत्तर की प्रतीक्षा करते रहे। इन्ही में से एक प्रश्न था कैकेयी के विषय में। इसमें कोई संदेह नहीं की ‘रामायण’ की कैकेयी एक बुद्धिमान स्त्री है जो अपने पति के साथ युद्ध में जाती है और आवश्यकता पड़ने पर उसकी रक्षा भी करती है।
गोस्वामी तुलसीदास के ‘राम चरित मानस’ में कैकेयी मंथरा से कहती है की राम के सहज स्वाभाव से सब माताएं राम को सामान ही प्यारी हैं पर मुझपर उनका विशेष प्रेम है। मैंने उनकी परीक्षा करके देख ली है, और आगे लिखा है यदि विधाता कृपा कर मुझे फिर जन्म दें, तो राम ही मेरा पुत्र और सीता ही मेरी पुत्र वधु हो, क्योंकि राम मुझे प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं .
कौसल्या सम सब महतारी I
रामहि सहज सुभाए पिआरी II
मो पर करही सनेह बिसेसी I
मैं कर प्रीती परीक्षा देखि II
जौं विधि जन्मु देई करि छोऊ I
होहूँ राम सिय पूत पतोहू II
प्राण ते अधिक रामु प्रिय मोर।
तिन्ह के तिलक चोबू कस तोरे II
(अयोध्याकाण्ड १४:३, ४ )
यह सब जानने के पश्चात् यह स्वीकार करना कठिन हो जाता है कैकेयी जैसी बुद्धिमान स्त्री एक साधारण दासी के बहकावे में आकर इतनी बड़ी भूल कैसे कर सकती है जिसके परिणाम स्वरुप अपना सुहाग खोने के साथ साथ उसे सदा के लिए कलंकित होना पड़े और उसका जाया भारत भी उससे घृणा करने लगे। जबकि उसे भली भाँति ज्ञात था की दशरथ बिना राम के रह नहीं सकते और भारत के मन में अपने भाई के लिए अथाह आदर और प्रेम है।
अब प्रश्न यह उठता है की कैकेयी ने राम को बनवास क्यों दिलवाया .
10 वर्ष के अथक शोध के बाद उन्हें ऐसे ही कई प्रश्नों के उत्तर मिले जिनका खुलासा उन्होंने अपनी किताब ‘अज्ञात रावण’ में किया है।