बार्नेट अस्पताल के एक्सीडेंट ऐण्ड एमरजेंसी वार्ड में एक रात

डॉ. अरुणा अजितसरिया, एम.बी.ई

सुबह 3:30 बजे मुझे शौचालय जाने की ज़रूरत महसूस हुई। जब तक मैं वॉशरूम में जाने के लिए बेडरूम से बाहर आई, तब तक मुझे अस्वस्थता महसूस होने लगी, पहले तो तेज़ धड़कन शुरू हुई, फिर जब मैं टॉयलेट सीट पर बैठी तो चक्कर आने लगा, सिर बुरी तरह से चकरा रहा था, बाहर निकलने के लिए किसी तरह से वाश बेसिन के सहारे से खड़ी होने की कोशिश की, पर स्वयं को संभाल न सकी। पता नहीं कितनी देर तक वहाँ गिरी रही, लेकिन जब होश आने पर मैंने अपनी आँखें खोलीं, तो मैंने खुद को बाथरूम के फर्श पर पाया- आधी बाथरूम की ठंडी टाइलों पर और आधी बाथरूम के बाहर लैंडिंग के कारपेट पर। बिस्तर पर वापस जाने के लिए खुद को उठाने की कोशिश की, पर खड़ी नहीं हो पाई, ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपनी पीठ पर पत्थर का एक भारी स्लैब ढो रही हूँ। अपने पंजों और घुटनों के बल धीरे-धीरे खिसकने की कोशिश की और फिर अपने पेट के बल सरकती हुई बिस्तर तक आई।

बिस्तर पर नंद इन सबसे अनजान गहरी नींद में सो रहे थे। उन्हें उठा कर अपने गिरने और पीठ और कंधे के असहनीय दर्द के बारे में बताया। दर्द हर साँस के साथ बदतर होता जा रहा था। उन्होंने मुझे कुछ पैरासिटामोल दी और 111 पर फोन किया। ऐसा लगा जैसे फ़ोन के दूसरी तरफ का व्यक्ति सवालों पर सवाल पूछ रहा था, ‘क्या वह गिर गई थी या बेहोश हो गई थी?.. क्या वह अब होश में है? क्या कहीं से खून निकल रहा है? क्या वह बात कर सकती है? क्या वह बता सकती है कि क्या हुआ?’ और फिर एक खामोशी जिसके बाद, ‘फ़ोन रखिए, शीघ्र ही एक चिकित्सक फोन करेगा।’ कुछ देर बाद एक चिकित्सक का फ़ोन आया और वही सवाल दोहराए, जो न जाने कितनी देर तक चलते रहे। पूछताछ के अंत में बताया गया कि मुझे चेकअप की आवश्यकता है और उसके लिए एम्बुलेंस भेज रहे हैं।

एम्बुलेंस लगभग 6:30 बजे आई। दो बहुत ही युवा और खुशमिजाज पैरामेडिक्स ने नंद से पूछताछ करने के साथ-साथ तत्परता से ईसीजी किया, ब्लड प्रेशर और इतिहास लिया और अंत में उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए कि मुझे दिल का दौरा नहीं पड़ा है, रक्त परीक्षण के लिए मुझे अस्पताल ले जाने का फैसला किया। नंद ने बड़ी बेटी ऋचा को फोन करके सीधे बार्नेट हॉस्पीटला आने को कहा । मेरे पैरों में खड़े होने की शक्ति नहीं थी। सीढ़ियों तक खिसकती हुई पहुँची फिर पैरामेडिक ने मुझे सीढ़ियों में बैठ कर एक-एक करके नीचे उतरने को कहा… नीचे पहुँचने पर जब सामने का दरवाज़ा खुला, तो बर्फीली ठंडी हवा का झोँखा मेरे चेहरे पर लगा।

बर्फ के छोटे-छोटे फ्लेक्स झर रहे थे और घर के सामने और सड़क पर पिछली रात की बर्फ के अवशेष अभी तक नहीं पिघले थे। बर्फ हमेशा मेरी बुरी यादों को ताज़ा कर देती है- ऐसी यादें जो मैं कभी किसी के साथ साझा नहीं करती- वे यादें जिनके अंत में एक खूबसूरत कोमल नवजात बच्ची का चेहरा है जिसे मैंने एक असली जीवित शिशु के रूप में दुनिया में आने से पहले ही खो दिया था….

पैरामेडिक्स में से एक ने मुझे कंबल में लपेटा और सहारा देकर लगभग उठाते हुए एम्बुलेंस तक पहुँचाया। नंद मेरे साथ एम्बुलेंस में आए। एक स्ट्रेचर पर बेल्ट बाँधकर लिटाकर पैरामेडिक ने ईसीजी मशीन और बीपी मॉनिटर चालू किए। दूसरी पैरामेडिक ने एम्बुलेंस चलाना शुरू किया। पहली मेरे सिराहने की सीट पर बैठ कर कुछ टाइप कर रही थी। नंद मेरे सामने वाली सीट पर बैठे थे। बर्फ के हलके फूल अब तक ओलों में बदल चुके थे। बीपी मॉनिटर 210 और 220 के बीच में था। अचानक एम्बुलेंस रुक गई, हम बार्नेट जनरल अस्पताल के एक्सीडेंट ऐण्ड एमरजेंसी प्रवेश द्वार पर पहुँच गए थे। पैरामेडिक ने एम्बुलेंस का दरवाज़ा खोला और एक स्लाइड निकाली, और मेरे स्ट्रेचर को स्लाइड से नीचे सरका दिया, ओले गिरने बंद होगए थे, सिर्फ बूँदाबादी हो रही थी। उन्होंने नंद को शेड के नीचे इंतज़ार करने को कहा। हम छोटे से ढके हुए प्रवेश द्वार में इंतज़ार कर रहे थे, जबकि पैरामेडिक्स में से एक मुझे एक्सीडेंट ऐण्ड एमरजेंसी वार्ड में रजिस्टर करने के लिए अंदर गई।

नंद को दरवाजे के पास रखी कुर्सी के पास इंतज़ार करने के लिए कहा गया और मुझे स्ट्रेचर समेत एक बड़े हॉल में ले जाया गया। अंदर – एक बहुत बड़ा चौकोर हॉल, जहाँ तक निगाह गई मुझे ट्रॉली बेड और उन पर लेटे हुए इंसानों के सिर दिखाई दिए। एम्बुलेंस पैरामेडिक्स ने अपना काम कर दिया था और वे अपनी अगली कॉल पर जाने के लिए तैयार थीं। दोनों ने मिलकर मुझे स्ट्रेचर से उठाया और एक बड़ी खिड़की के पास खाली कुर्सियों में से एक पर बैठा दिया। मुझे एक्सीडेंट ऐंड इमरजेंसी के मेडिक्स की देखभाल में छोड़ने से पहले उनमें से एक ने उस कंबल को जिसमें लपेट कर वे मुझे घर से लाईं थीं, ओढ़े रहने के लिए कहा,’वे अस्पताल में सोने की धूल (गोल्ड डस्ट) की तरह हैं, एक बार छोड़ दोगी तो फिर हाथ नहीं लगेगा!!’कुर्सी पर बैठे-बैठे कुछ समय बाद मुझे अपनी छाती में पहले जैसी धड़कन महसूस होने लगी और ऐसा लगा कि मैं फिर से होश खोने वाली हूँ। एक नर्स को बुलाकर कहा, ‘मुझे लगता है कि मैं बेहोश होने वाली हूँ।’ उसने एक और सहयोगी को बुलाया और उन दोनों ने मुझे उठाकर पास के ट्रॉली बेड पर शिफ्ट करके हार्ट मॉनीटर लगा दिया। ट्रॉली बेड की ऊँचाई से पूरा हॉल दिखाई दे रहा था। मैंने हॉल के चारों ओर नज़र डाली- मेरी ट्रॉली के सामने छोटा सा प्रवेश द्वार था जहाँ से पैरामेडिक्स मेरा स्ट्रेचर अंदर लाई थीं।  बाईं ओर एक स्टैंड पर कुछ कंप्यूटर स्क्रीन थीं, स्क्रीन के सामने वर्दी में तीन लोग व्यस्तता से एक के बाद एक आने वाले बीमार्रों को पंजीकृत कर रहे थे। नंद अभी तक बाहर वाले छोटे प्रवेश द्वार में खड़े थे, मेरे पास आए, अब तक मुझे हार्ट मॉनिटर से जोड़ दिया गया था और मेरा ब्लड टेस्ट भी हो चुका था। ब्लड टेस्ट के नतीजे का इंतज़ार करना अनंत काल जैसा लग रहा था! सामने का दरवाज़ा हर दस मिनट में खुलता रहता था। हर बार दरवाज़ा खुलने पर एक और स्ट्रेचर को अंदर लाया जाता, उनमें से कुछ को खाली कुर्सियों पर बैठने के लिए कहा जाता और कुछ को खाली ट्रॉलियों में डाल दिया जाता।

जब कोई नया व्यक्ति आता, तो जिस व्यक्ति की ट्रॉली दीवार में प्लग किए गए मॉनिटर के सबसे नज़दीक होती थी, उसे हॉल के बीच में ले जाया जाता था ताकि नए व्यक्ति को मॉनिटर से जोड़ा जा सके। नए व्यक्ति को मॉनिटर करने के लिए कई बार जगह देने के बाद, मेरी ट्रॉली हॉल के बीचोबीच पहुँच गई थी।

हॉल के केंद्र से,मुझे दाहिनी ओर एक बड़ा सा बंद दरवाज़ा दिखाई दिया। दरवाज़े के ऊपर लगे बोर्ड पर ‘रिससिटेशन रूम’ लिखा था। एक नर्स दूसरी बार रक्त नमूना लेने आई, पहले रक्त नमूने के परिणाम के बारे में उनसे कोई जवाब नहीं मिला, वे बहुत जल्दी में लग रही थी। नंद को हॉल के बाहर छोटे से ठंडे प्रतीक्षा क्षेत्र में इंतजार करने के लिए कहा गया क्योंकि अब हॉल क्षमता से अधिक भर गया था। घड़ी की टिक-टिक चलती रही। मुझसे किसी ने अभी तक कुछ पूछा या बताया नहीं था, मैं कब तक यहाँ यूँ ही पड़ी रहूँगी, मुझे क्या हुआ है, मैं घर कब जाऊँगी.. न जाने कितने सवाल थे, पर जवाब देने वाला कोई नहीं था। तभी, मेरी बड़ी बेटी ऋचा को अपनी तरफ़ आते देख कर लगा वह मुझे घर ले जाने आई है। उसने मेरे पास आकर पूछा कि मैं कैसा महसूस कर रही हूँ। मुझे नहीं लगता कि उसे मुझसे किसी जवाब की उम्मीद थी। मुझे लगता है कि यह उसके लिए कोई नई बात नहीं थी क्योंकि एक बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में वह इन सबकी अभ्यस्त है और इससे भी बदतर स्थिति देखती होगी। वह मेरे लिए कुछ खाने-पीने की चीजें लेकर आई थी। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि कोई वहाँ कैसे खा सकता है।

मेरी ट्रॉली के बगल वाली ट्राली पर लेटी हुई एक बूढ़ी औरत अपने पास से गुजरने वाले हर वर्दीधारी व्यक्ति को बुला रही थी, ‘कृपया आकर मेरी मदद करें, मैं इंकॉंटीनेंट हूँ। पर कोई उसके पास रुक नहीं रहा था…महिला हताश हो रही थी, और फिर, ‘कृपया मेरी मदद करें, मैं पूरी भीग गई हूँ!’ कमरा एक बासी गंध से भर गया था – एक अलमारी के अंदर बहुत सारे गीले कपड़ों की गंध की तरह – जैसे ही आप आलमारी का दरवाजा खोलते हैं – सीलन भरी, बासी घृणित गंध आपकी नाक में भर जाती है आपके गले के अंदर तक घुस जाती है, कुछ-कुछकोलकाता के नोतून बाज़ार की मछली पट्टी के पास से गुज़रते समय आने वाली सड़ी हुई मछली की गंध की तरह! और आप उससे छुटकारा पाने के लिए अपनी साँस रोक लेते हैं। लेकिन, मैं अपनी नाक नहीं ढकती, कोई मतलब नहीं है – पेशाब की बासी गंध उसके गीले आंतरिक कपड़ों और उसकी घुटने तक की नायलॉन नाइटी से रिस रही है, नाइटी जो शायद एक दिन चमकीले गुलाबी रंग की थी, लेकिन अब मटमैली और बेरंगी हो चुकी है। मैं अपना ध्यान अपने बगल की ट्रॉली से हटाने की कोशिश करती हूँ जैसे कि इसके बारे में न सोचने से यह घृणित गंध दूर चली जाएगी। मेरी ट्रॉली के सामने वाली ट्रॉली में एक आदमी स्वेट शर्ट और ट्रैक सूट ट्राउजर पहने हुए अधलेटा है। कुछ देर पहले वह एक कागज़ में लपेटे हुए आलू के चिप्स खा रहा था, बगल वाली ट्रॉली से आती पेशाब की गंध के साथ मिलकर जिसकी विनिगेर की गंध से मुझे मतली आ रही थी। अब उसके बायें हाथ में अस्पताल का एक बार यूज़ करने वाला यूराइनल है और दाहिने हाथ से वह अपने ट्रैक सूट ट्राउज़र को

नीचे करके युराइनल की ओर अपने को उन्मुख कर रहा है। मैं देख कर भी अनदेखा करते हुए दूसरी तरफ मुँह  कर लेती हूँ। हॉल के दूसरे सिरे पर एक ट्रॉली से लगातार कराहने की आवाज़ आ रही है। देख नहीं पाती कि कराहने वाला पुरुष है या स्त्री…जब कुछ देर के लिए कराहना बंद हुआ शायद मेरी आँख लग गई होगी…कि अचानक एक ज़ोरदार चीख सुनकर आँख खुली, और फिर प्रवेश द्वार खुला, मैं स्ट्रेचर का इंतज़ार करती हूँ कि देखूँ इस बार कौन आ रहा है, चीख बड़े हॉल में गूँजने लगती है, लेकिन वहाँ कोई स्ट्रेचर नहीं दिखाई देता।

उसकी जगह, दो पैरामेडिक्स एक चीखती हुई युवती को उठाकर ला रहे हैं, युवती खुद को उनसे छुड़ाने के लिए हाथ-पैर मार रही है। वे लगभग दौड़ते हुए हॉल में आते हैं, लेकिन अंदर आकर वे हॉल में नहीं रुकते, अचानक रिससिटेशन रूम का बोर्ड लगा दोहरा दरवाज़ा फटाक से खुलता है और वे सीधे उसमें चले जाते हैं। …मझली बेटी, श्रुति के आने के बाद नंद और ऋचा घर चले गए थे और श्रुति मेरे साथ रुकी रही। हम दोनों चीखती हुई युवती को रिससिटेशन रूम में ले जाते हुए देखते हैं, लेकिन एक-दूसरे से नज़रें चुरा लेते हैं। जैसे ही वे अंदर घुसते हैं दोहरा दरवाज़ा ज़ोर से बंद हो जाता है। भीतर से आती चीखों की आवाज़ देर तक मेरे कानों में गूँजती रहती है। कुछ देर के लिए मैं भूल जाती हूँ कि मैं भी यहाँ सस्पेक्टेड हार्ट अटैक के कारण हूँ। अपनी तकलीफ़ उसकी चीखों के सामने छोटी लगने लगती है। बंद दरवाज़े के भीतर से आती चीखें धीरे-धीर कम और फिर बंद हो गईं, शायद उसे सेडेटिव दे दिया गया है…

मुझे नहीं पता कि मुझे क्या हुआ है। एक नर्स फिर से ब्ल्ड टेस्ट कर गई है, पहले वाले साम्पल से तुलना

करने के लिए। पर पहले वाले साम्पल में क्या था, इसका जवाब देने से पहले ही वह कम्प्यूटर के सामने बैठे नीला स्क्र्ब पहने व्यक्ति, जो शायद डॉक्टर है उसके पास जा चुकी है। मेरी संवेदना सुन्न है, उसके पास कोई शब्द नहीं इस पूरे समय में केवल दो मरीजों को उचित बेड पर शिफ्ट किया गया है, वे मुझसे पहले वहाँ थे। मैं यह पता लगाने की कोशिश करती हूँ कि डॉक्टर से मेरी जाँच की बारी कब आएगी ताकि यह तय हो सके कि मुझे उचित बेड वाले वार्ड में ट्रांसफर किया जाएगा या घर भेज दिया जाएगा। वह जल्दी में लगता है, जल्दी से जवाब देता है कि मेरे पहले एक लंबी कतार है और इससे पहले कि मैं पूछूँ कि मेरे सामने कितने लोग इंतजार कर रहे हैं, वह जल्दी से चला जाता है। फिर अचानक पीली वर्दी में एक और आदमी आता है और मुझे बताता है कि कोई बेड खाली नहीं है, वह मुझे रात के लिए एक सिंगल क्यूबिकल में ले जाने वाला है। वह मेरी ट्रॉली को हॉल के विपरीत दिशा में दोहरे दरवाजों से बाहर धकेलता है, एक संकीर्ण गलियारे के माध्यम से एक छोटे से चौकोर कमरे, कमरा नंबर 13 में ले जाकर मेरी ट्रॉली को खाली कमरे में पार्क करता है और दरवाजा बंद करने के बाद चला जाता है। कमरे के भीतर हर दो मिनट में घंटे की सी आवाज़ होती है। मैं निश्चित नहीं कर पाती कि इस अकेले क्यूबिकल में रात बिताने की संभावना से राहत महसूस करूँ या बड़े हॉल में चारों तरफ़ ट्रॉलियों और मल-मूत्र की सड़ाँध के बीच। मुझे क्यूबिकल में छोड़कर श्रुति भी घर जा चुकी है। उसे सुबह उठकर नियम को स्कूल छोड़ते हुए ऑफिस जाना है। कुछ देर तक सफेद सीलिंग को ताकने के बाद आँख बंद करने की कोशिश करती हूँ, शायद नींद आ जाए, पर नींद कोसों दूर है उससे भी अधिक दूर जितनी दूर कोलकाता में मेरा परिवार है!

अचानक दरवाज़ा खुला, यह श्रुति है, वह घर जाकर एक ट्रैवल तकिया, तकिया-स्प्रे, कुछ क्रीम और ताजा पका हुआ दाल का सूप और दाल लेकर वापस आई है जिसे नीलेश ने पकाया है। A&E में पेशेंट को कोई भोजन नहीं देते हैं। मुझे वैसे भी भूख नहीं है। वह बैग से ट्रैवल तकिया निकालती है और खेल-खेल में उसपर ताज़ी खुशबू वाला स्प्रे छिड़कती है, ‘क्या इसकी खुशबू अच्छी है मम्मी?’वह ताज़ी महक वाला तकिया मेरे सिर के नीचे रखती है और कहती है, ‘आपके बाल कितने उलझे हुए हैं, मुझे आपकी चोटी करने दो मम्मी’ और बैग से कंघी निकाल कर मेरे बालों की उलझन सुलझाने लगती है। उसके हाथ का स्पर्श मुझे सुकून देता है। कुछ पल के लिए मैं भूल गई कि मैं कहाँ थी, वह चौकोर डिप्रेसिंग कमरा ओझल हो गया , मैं छोटी सी बच्ची हूँ, अपनी अम्माजी की सामने बैठी हुई हूँ और वे मेरे बालों की उलझन सुलझा रही हैं….।

अचानक श्रुति की आवाज़ सुनकर सब कुछ बदल गया और मैं वापस उसी डीप्रेसिंग कमरे में लौट आई, वह जिद्द करती है कि मैं कुछ खा लूँ या सूप पी लूँ, पर मुझे अभी भी मतली आ रही है। श्रुति को घर लौटने की कोई जल्दी नहीं लगती, मैं उसे लगभग धक्का देकर बाहर निकाल देती हूँ, उसे याद दिलाती हूँ कि सुबह नियम को स्कूल छोड़ कर उसे ऑफिस जाना है। वह धीरे से कमरे का दरवाज़ा बंद करके चली जाती है। अब मैं इस कमरे में अकेली हूँ। मैं अपनी आँखें बंद करने की कोशिश करती हूँ – सिर्फ़ मैं और हर दो मिनट में किसी मशीन की धमाकेदार आवाज़ मुझे जगाए रखती है। एक बार मशीनी ठक सुनने के बाद अगली आवाज़ सुनने की प्रतीक्षा करने लगती हूँ। कभी-कभी मैं अपने कमरे के पास से एक ट्रॉली को गुजरते हुए सुन सकती हूँ। मैं अपनी आँखें बंद करने की कोशिश करती हूँ, लेकिन उन्हें लंबे समय तक बंद नहीं रख सकती – बड़े हॉल की भयावहता मेरा पीछा नहीं छोड़ती है। आखिरकार जब नींद आई, सपने में बदबूदार कीचड़ भरे पानी का एक बड़ा सा कुंड दिखाई दिया। कुण्ड में अस्पताल की बहुत सारी ट्रॉलियाँ तैर रही हैं, हर ट्रॉली पर अधूरे से मटमैले कपड़े पहने शरीर लेटे हुए हैं। उनमें से एक ट्रॉली पर लेटा शरीर बहुत परिचित लग रहा है। मैंने ध्यान से देखा – अरे, वह तो मैं हूँ, कीचड़ भरे, बदबूदार पानी पर तैरती हुई मैं!!!  लेकिन मैं तो यहाँ हूँ कीचड़ से भरे बदबूदार पानी से भरे कुण्ड के बाहर, दूर, असंपृक्त और तटस्थता से सब कुछ देख रही हूँ!!!

शायद राजकुमार सिद्धार्थ ने ऐसे ही एक्सीडेंट और इमरजेंसी वार्ड में एक रात बिताई होगी जिसके बाद वे बुद्ध बन गए!

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