
क्या भारत-पाक संघर्ष सीमा पार रणनीतिक युद्ध बन चुका है?

– प्रो. प्योत्र ओस्ताशेव्स्की (Piotr Ostaszewski)
दक्षिण एशिया एक बार फिर मई 2025 में सुर्खियों में था, लेकिन यह केवल क्षेत्रीय वजहों से नहीं था। भारत और पाकिस्तान के बीच 7 से 10 मई तक चले सीमित सैन्य संघर्ष ने न केवल उपमहाद्वीप को हिला दिया, बल्कि वैश्विक राजनयिक हलचलों और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धाओं को भी तीव्र कर दिया। संघर्ष की चिंगारी 22 अप्रैल को भारतीय कश्मीर के पहलगाम में हुए एक भीषण आतंकवादी हमले से भड़की, जिसमें 26 निर्दोष पर्यटकों की जान गई।
जवाब में भारत ने सीमा पार लक्षित सैन्य कार्रवाई की, एक रणनीति जो अब लगभग परंपरा बन चुकी है। लेकिन इस बार जो बदला, वह था अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया का स्वरूप और इस संघर्ष की तकनीकी व राजनीतिक गहराई।
इस चार दिवसीय संघर्ष ने एक बार फिर दुनिया को यह याद दिलाया कि भारत-पाकिस्तान के तनाव केवल दो देशों का मामला नहीं रह गए हैं। बल्कि एक वैश्विक रणनीतिक संतुलन का हिस्सा हैं, जिसमें अमेरिका, चीन और रूस जैसे प्रमुख खिलाड़ी अपनी-अपनी शतरंज की चाल चल रहे हैं।
माना गया कि अमेरिका ने संयम की अपील की और एक त्वरित युद्धविराम सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। पाकिस्तान ने इसका सार्वजनिक रूप से आभार भी जताया। वहीं चीन ने पारंपरिक शैली में इतिहास की ओर इशारा किया और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत समाधान की बात कही। रूस की भूमिका सीमित रही—मध्यस्थता की पेशकश तो की, परन्तु प्रभाव न के बराबर रहा।
लेकिन मेरी समझ से इस संकट ने वैश्विक ताक़तों के दक्षिण एशिया में बदलते समीकरण को सामने लाया है। चीन अब पाकिस्तान का सबसे बड़ा रणनीतिक साझेदार है—CPEC, ग्वादर पोर्ट, और बढ़ते कर्ज़ संबंधों ने पाकिस्तान को आर्थिक और सैन्य रूप से बीजिंग पर निर्भर बना दिया है। आज पाकिस्तान के 81% से अधिक हथियार चीन से आते हैं। दूसरी ओर, भारत अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति में केंद्रीय भूमिका निभा रहा है। टेक्नोलॉजी, निवेश और सुरक्षा—तीनों स्तरों पर दोनों देशों के संबंध गहरे हुए हैं। ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत अमेरिका की बड़ी कंपनियाँ भारत की ओर आकर्षित हुई हैं। सैन्य सहयोग में भी भारत अब Quad और IPEF जैसे मंचों पर एक विश्वसनीय भागीदार बन चुका है।
इस संघर्ष की सबसे उल्लेखनीय बात थी—चीनी हथियारों की पश्चिमी और रूसी प्रणालियों के विरुद्ध पहली बार सीधी मुठभेड़। पाकिस्तानी J-10C फाइटर जेट्स ने फ्रांसीसी राफेल और रूसी मिग-29, Su-30 जैसे विमानों को निशाना बनाया। चीन की PL-15 मिसाइलों का युद्धस्तर पर उपयोग हुआ। भारत ने इन मिसाइलों के अवशेष भी बरामद किए, जो अमेरिका और पश्चिमी दुनिया के लिए सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्त्वपूर्ण जानकारी का स्रोत बन सकते हैं।
इस संक्षिप्त परंतु तीव्र संघर्ष ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दक्षिण एशिया अब केवल क्षेत्रीय राजनीति का मंच नहीं है। यह एक ऐसा मंच बन चुका है, जहाँ बड़ी ताक़तें अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहती हैं—कभी कूटनीति के माध्यम से, कभी हथियारों के ज़रिए।
मई 2025 की यह घटना हमें याद दिलाती है कि आज के दौर में कोई भी क्षेत्रीय विवाद अलग-थलग नहीं है। हर स्थानीय संघर्ष वैश्विक रणनीति की बड़ी तस्वीर का हिस्सा बनता जा रहा है।
यह केवल भारत और पाकिस्तान की कहानी नहीं थी—यह अमेरिका, चीन और रूस की वैश्विक प्रतिस्पर्धा का भी एक दृश्य था।
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प्रो. प्योत्र ओस्ताशेव्स्की (Piotr Ostaszewski)
लेखक
प्रो. प्योत्र ओस्ताशेव्स्की (Piotr Ostaszewski), वारसॉ स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर हैं और 2017–2024 तक दक्षिण कोरिया में पोलैंड के राजदूत रहे हैं। वह दक्षिण और पूर्व एशिया के मामलों पर गहरी पकड़ रखते हैं। यह लेख वैश्विक हिंदी परिवार के लिए उन्होंने योगदान स्वरूप लिखा है।
अनुवाद
डॉ संजय कुमार, पत्रकार, कोरिया हेराल्ड