
सब सुंदर!
डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम
मैंने पूछा — ऋषिकेश गए थे। कैसा लगा?
बोले — बहुत सुंदर! बहुत खूबसूरत!
–और गंगा का किनारा?
–अरे पूछो मत! बहुत सुंदर!
— रास्ते की पहाड़ियाँ?
— अरे वाह! वो तो बहुत ही सुंदर थीं।
— ऋषिकेश का खाना कैसा था?
— अरे पूछो मत! सुंदर! बहुत सुंदर!
— और मंदिर?
— वो तो सुंदर होते ही हैं।
— गलियाँ बाजार?
— वो तो मैं भूल नहीं सकता। एक- से- एक सुंदर सजी हुई छोटी-छोटी दुकानें!
— अच्छा! तुम्हें सबसे सुंदर क्या लगा?
— अरे! सब कुछ बहुत सुंदर था। बहुत सुंदर!
मैंने कहा — पोपट लाल जी! यों करो, अपना नाम सुंदरलाल रखवा लो!
बोले — क्यों जी? मैंने ऐसा क्या कह दिया?
— नहीं, नहीं। तुम हो ही इतने सुंदर! जैसे शुगर वाले के खून में शक्कर अधिक घुल जाती है, वैसे ही तुम्हारी जुबान ने एक ही शब्द पकड़ लिया है — सुंदर!
— वे भड़के — तो क्या सुंदर को सुंदर न कहूँ?
मैंने पूछा — खाना अच्छा था, सुंदर था या स्वादिष्ट?
बोले — अच्छा भी और स्वादिष्ट भी!
मैंने कहा — सुंदरलाल! तुम सुंदर कहना भूल गए।
बोले — मेरा मतलब वही था।
और ऊँची- नीची पहाड़ियाँ — वे ? रोमांचक थीं या सुंदर!
बोले — रोमांचक।
— और ऋषिकेश में बहने वाली गंगा — शीतल थी, मनोरम थी, शान्तिदायक थी या सुंदर?
— अरे, बहुत शीतल! आपने तो मेरे मन की बात कह दी।
— पोपट लाल! सोच के बताओ! वहाँ के बाजार कैसे थे? देखो, सुंदर न कहना। वरना तुम्हारा नाम सुंदरलाल रख दूँगा।
— बोले — बाजार तो बड़े रौनक वाले थे। चहल पहल से भरपूर!
और यह बताओ? गंगा के किनारे की भीड़ ?
बोले — कन्धे से कन्धा रगड़ती हुई। इतना उमड़ाव!
— अब बताओ, कैसा अनुभव था ऋषिकेश का?
बोले — बहुत सुंद—- रुक गए कहते कहते! — बोले — जबरदस्त! भव्य! दिव्य!! भूल नहीं सकता!
मैंने हँसते हुए कहा — अविस्मरणीय कह दूँ!!
बोले — हाँ, हाँ! यही तो बात है! शब्द तो सुन रखे हैं। पर जुबान पर नहीं आते।
मैं बोला — तुम ऐसा करो। सात दिन तक उपवास रखो। किसी भी चीज को, व्यक्ति को, स्वाद को, आनंद को सुंदर नहीं कहना। यह तुम्हारे लिए सुंदरकांड का व्रत है। इसका अभ्यास करो। कुछ भी कहो प्रशंसा में, मगर सुंदर मत कहो।
तब से देख रहा हूँ! पोपटलाल किसी को कुरकुरा, किसी को कड़क, किसी को सुहावना, किसी को मनभावना, किसी को गुदगुदा, किसी को मुलायम, किसी को रंगबिरंगा, किसी को कोमल, किसी को आकर्षक, किसी को रोमांटिक, किसी को रोमांचकारी, किसी को सुरम्य, किसी को मधुर, किसी को रसदार, किसी को मज़ेदार, किसी को आनंददायक, किसी को सुखद, किसी को रोचक, किसी को अद्भुत, किसी को जायकेदार, किसी को सम्मोहक, किसी को मोहक, किसी को आनंदकारी, किसी को गरिमाशाली, किसी को महिमावान, किसी को खुशनुमा, किसी को सुगन्धित, किसी को रसीला, किसी को लज़ीज़, किसी को मृदु, किसी को मृदुल, किसी को तीखा, किसी को चटपटा, किसी को मसालेदार, किसी को धाँसू, किसी को खस्ता, किसी को बढ़िया, किसी को उम्दा, किसी को शानदार, किसी को पावन, किसी को पवित्र, किसी को नयनाभिराम, किसी को रमणीक, किसी को रम्य, किसी को रमणीय, किसी को मनोहर, किसी को चटखारेदार, किसी को धमाकेदार कह रहा है।
अब बेचारा सुंदरलाल तरस रहा है। पोपटलाल को निहार रहा है। तुम्हें इतने इतने साथी मिल गए, अब मेरा क्या होगा?
वह गुनगुना रहा है —
होठों से छू लो तुम!
मेरा नाम अमर कर दो।
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