सुयोग गर्ग, तोक्यो, जापान

अब घर आ जा

आधी रात, सून सन्नाटा और पापा का कॉल
जागे हुए हैं तेरी फ़िक्र में, अब घर आ जा मन मौज़
कड़कती धूप, झुलसती गर्मी और पापा की जॉब
ऐसा लगता टूट पड़ेंगे बस बिखर के मानो आज
टेढ़ी बातें, निष्ठुर निगाहें और पापा की डांट
बड़े हुए हैं बस यही सब में तब तो राह सही है आज
चलती गाड़ी, बढ़ती उष्मा और पापा की सीख
हाथ पकड़कर चलना सीखा और सिखाते हैं हम रीत
घर की खुशियाँ, मन का मौन और पापा की बातें
याद दिलाते सब ठीक है, बस बढ़ते जा तू आगे
बीती बातें, खोया समय और पापा का सपना
शायद वह था जो गया अब लिए मन का टुकड़ा
बैठे बैठे सोते जागते देखता हूँ मैं पापा की ओर
इधर खड़ा वह स्वयं सत्य है जीता जो केवल मेरे लिए वह

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