
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी
-रजनीकांत शुक्ला
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म 7 जुलाई, 1883 को हिमाचल प्रदेश के एक गाँव गुलेर में हुआ था। वे हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार थे। बीस वर्ष की उम्र के पहले ही उन्हें जयपुर की वेधशाला के जीर्णोद्धार तथा उससे सम्बन्धित शोधकार्य के लिए गठित मण्डल में चुन लिया गया था और कैप्टन गैरेट के साथ मिलकर उन्होंने “द जयपुर ऑब्ज़रवेटरी एण्ड इट्स बिल्डर्स” शीर्षक से अंग्रेज़ी ग्रन्थ की रचना की।
मूलतः हिमाचल प्रदेश के गुलेर नामक गाँव के वासी ज्योतिर्विद पंडित शिवराम शास्त्री राजसम्मान पाकर जयपुर (राजस्थान) में बस गए थे। उनकी तीसरी पत्नी लक्ष्मीदेवी ने सन 1883 में चन्द्रधर को जन्म दिया था। घर में बालक को संस्कृत भाषा, वेद, पुराण आदि के अध्ययन, पूजा-पाठ, संध्या-वंदन तथा धार्मिक कर्मकाण्ड का वातावरण मिला और मेधावी चन्द्रधर ने इन सभी संस्कारों और विद्याओं आत्मसात किया।
जब गुलेरी जी दस वर्ष के ही थे कि इन्होंने एक बार संस्कृत में भाषण देकर भारत धर्म महामंडल के विद्वानों को आश्चर्यचकित कर दिया था।
पंडित कीर्तिधर शर्मा गुलेरी का यहाँ तक कहना था कि वे पाँच वर्ष में अंग्रेज़ी का टैलीग्राम अच्छी तरह पढ़ लेते थे। चन्द्रधर ने सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। चन्द्रधर बी.ए. की परीक्षा में सर्वप्रथम रहे। सन् 1904 ई. में गुलेरी जी मेयो कॉलेज, अजमेर में अध्यापक के रूप में कार्य करने लगे। उनका अध्यापक के रूप में उनका बड़ा मान-सम्मान था। अपने शिष्यों में चन्द्रधर लोकप्रिय तो थे ही, इसके साथ अनुशासन और नियमों का वे सख्ती से अनुपालन करते थे। उनकी असाधारण योग्यता से प्रभावित होकर पंडित मदनमोहन मालवीय ने उन्हें बनारस बुला भेजा और हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद दिलाया।
आगे चलकर उन्होंने अंग्रेज़ी शिक्षा भी प्राप्त की और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते रहे। कलकत्ता विश्वविद्यालय से एफ. ए. (प्रथम श्रेणी में द्वितीय) और प्रयाग विश्वविद्यालय से बी. ए. (प्रथम श्रेणी में प्रथम) करने के बाद चाहते हुए भी वे आगे की पढ़ाई परिस्थितिवश जारी न रख पाए, हालाँकि उनके स्वाध्याय और लेखन का क्रम अबाध रूप से चलता रहा।
अपने अध्ययन काल में ही उन्होंने सन् 1900 में जयपुर में नगरी मंच की स्थापना में योग दिया और सन् 1902 से मासिक पत्र ‘समालोचक’ के सम्पादन का भार भी सँभाला। प्रसंगवश कुछ वर्ष काशी की नागरी प्रचारिणी सभा के सम्पादक मंडल में भी उन्हें सम्मिलित किया गया। उन्होंने देवी प्रसाद ऐतिहासिक पुस्तकमाला और सूर्य कुमारी पुस्तकमाला का सम्पादन किया और नागरी प्रचारिणी पुस्तकमाला और सूर्य कुमारी पुस्तकमाला का सम्पादन किया और नागरी प्रचारिणी सभा के सभापति भी रहे।
जयपुर के राजपण्डित के कुल में जन्म लेने वाले गुलेरी जी का राजवंशों से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा। वे पहले खेतड़ी नरेश जयसिंह के और फिर जयपुर राज्य के सामन्त-पुत्रों के अजमेर के मेयो कॉलेज में अध्ययन के दौरान उनके अभिभावक रहे। सन् 1916 में उन्होंने मेयो कॉलेज में ही संस्कृत विभाग के अध्यक्ष का पद सँभाला। सन् 1920 में पं. मदन मोहन मालवीय के प्रबंध आग्रह के कारण उन्होंने बनारस आकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राच्यविद्या विभाग के प्राचार्य और फिर 1922 में प्राचीन इतिहास और धर्म से सम्बद्ध मनीन्द्र चन्द्र नन्दी पीठ के प्रोफेसर का कार्यभार भी ग्रहण किया। इस बीच परिवार में अनेक दुखद घटनाओं के आघात भी उन्हें झेलने पड़े। सन् 1922 में 12 सितम्बर को पीलिया के बाद तेज़ बुख़ार से मात्र 39 वर्ष की आयु में उनका देहावसान हो गया।
चंद्रधर शर्मा गुलेरी की रचनाएँ-
निबंध-शैशुनाक की मूर्तियाँ, देवकुल, पुरानी हिन्दी, संगीत, कच्छुआ धर्म, आँख, मोरेसि मोहिं कुठाऊँ
कविताएँ-एशिया की विजय दशमी, भारत की जय, वेनॉक बर्न, आहिताग्नि, झुकी कमान, स्वागत, ईश्वर से प्रार्थना
कहानी संग्रह-उसने कहा था, सुखमय जीवन, बुद्धु का काँटा, भाषा विशेषज्ञ
प्रतिभा के धनी चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने अपने अभ्यास से संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेज़ी, पालि, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं पर असाधारण अधिकार प्राप्त किया। उन्हें मराठी, बंगला, लैटिन, फ़्रैंच, जर्मन आदि भाषाओं की भी अच्छी जानकारी थी। उनके अध्ययन का क्षेत्र बहुत विस्तृत था। साहित्य, दर्शन, भाषा विज्ञान, प्राचीन भारतीय इतिहास और पुरातत्त्व ज्योतिष सभी विषयों के वे विद्वान् थे। इनमें से कोई विषय ऐसा नहीं था, जिस पर गुलेरी जी ने साधिकार लिखा न हो।
वे अपनी रचनाओं में स्थल-स्थल पर वेद, उपनिषद, सूत्र, पुराण, रामायण, महाभारत के संदर्भों का संकेत दिया करते थे। इसीलिए इन ग्रन्थों से परिचित पाठक ही उनकी रचनाओं को भली-भाँति समझ सकता था। ग्रन्थ रचना की अपेक्षा स्फुट के रूप में ही उन्होंने अधिक साहित्य सृजन किया।
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की हिन्दी साहित्य में सबसे अधिक ख्याति 1915 में ‘सरस्वती’ मासिक में प्रकाशित कहानी ‘उसने कहा था’ के कारण हुई। यह कहानी शिल्प और विषय-वस्तु की दृष्टि से आज भी ‘मील का पत्थर’ मानी जाती है।
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का निधन 12 सितम्बर 1922 ई. में काशी में हुआ।
***** ***** *****
