मेरा नाम कोरोना है।
मेरे इस नाम को सुनकर कुछ लोग तो यही सोचकर ख़ुशी के मारे चहकने लगे होंगे कि अब उन्हें इसी कोरोना नाम की दुनिया की मशहूर बीयर पीने को मिलेगी। लेकिन मेरे भाग्य में ऐसी ख़ुशी कहाँ लिखी है? मुझ बदक़िस्मत को तो सब लोग कोविड-१९ के नाम से ही जानते हैं और यह नाम बहुत मनहूस और बदनाम है। हाय री मेरी तक़दीर, मुझे ख़ुद को पता नहीं कि मेरा जन्म कब, कहाँ और कैसे हुआ! ऊपर वाले की क़सम खाकर सच्चे दिल से बार-बार यही कहता हूँ कि मुझे बिल्कुल पता नहीं कि मेरे जीवन दाता ने मुझ में कौन कौन से डीएनए डाले हैं।
देखने में मेरा न कोई रंग है और न ही कोई रूप, फिर भी लोग कहते हैं कि मैं इतना घातक हूँ कि जो कोई भी मेरे सम्पर्क में आता है छुआछूत के कारण बीमार पड़ जाता है। मेरी कुछ दिनों की मुलाक़ात के बाद ही लोगों को खाँसी और बुखार शूरू हो जाते हैं और हालत दिन पर दिन ख़राब ही होती चली जाती है। अब तक मेरी वज़ह से सारी दुनिया में हज़ारों लोग अपनी जान खो चुके हैं। ये सब देख कर मुझे दुख तो बहुत होता है लेकिन मेरे डीएनए में ही जो ज़हर भरा हुआ है उसकी वज़ह से जो कुछ हो रहा है उस पर चाहते हुये भी मेरा कोई कन्ट्रोल नहीं है। मुझे समझने और जानने के लिये दुनिया के बड़े-बड़े कैमिस्ट लगे हुये हैं। “बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा” वाली कहावत मेरे पर पूरी तरह से उतरती है क्योंकि एक से नहीं बल्कि हज़ारों लोगों से मैंने अपने बारे में जो सुना है वह सब बस यही कहते हैं कि मैं एक बहुत ख़तरनाक क़िस्म का वाइरस हूँ। एक ऐसा महामारी वाला वाइरस जिसका अभी तक कोई तोड़ नहीं है। ज़रा सोचो अगर आपको भी दिन-रात ऐसी ही एक बात सुनने को मिले तो कैसा लगेगा।
मेरी वज़ह से सारी दुनिया में लोगों को अपने अपने घरों में नज़रबन्द होने का आदेश मिला है। किसी भी चीज़ को हाथ लगाने के बाद साबुन से बीस सैकण्ड तक हाथ धोने को कहा है। मुँह नाक और आँखों को छूने से पहले फिर हाथ धोने की सलाह दी है। कहने का मतलब तो यह हुआ कि साबुन की टिक्की हमेशा जेब में रखो। अब तो सारे घर वाले एक दम एकान्तवास में चले गये हैं। खाने-पीने के सामान के लिये बहुत थोड़ी देर के लिये बाहर आ-जा सकते हैं। मित्रों से और रिश्तेदारों से मिलना-जुलना बन्द हो गया है। अब तो टैलीफोन ही बात करने का माध्यम रह गया है।
देखने में आया है कि कहीं-कहीं तो अकेले होने की वज़ह से मियाँ और बीवी की चोंचें भी काफ़ी भिड़ने लगी हैं। शुरू-शुरू में तो छोटी-छोटी बातों को लेकर एक दूसरे पर ग़ुस्सा होना आम बात हो गई थी। समय के साथ-साथ इसमें कुछ ठण्डक ज़रूर आ गई है। जैसे प्यार से यह दोनों अब रहने लगे हैं उसे देख कर तो मुझे ऐसा लगने लगा है कि लड़ने के लिये अब इन्हें कोई नया बहाना ढूँढ़ना पड़ेगा और बहाना ढूँढ़ने के लिये मित्रों की सहायता लेनी होगी और वो सहायता इतनी आसानी से मिलने वाली नहीं है।
अब तो जिसको भी देखो मुँह पर मास्क लगाये हुये है। बाहर अगर इक्का-दुक्का कभी मिलते भी हैं तो मुँह पर मास्क लगे हुये छ: फ़ुट की दूरी रख कर ही बात होती है। आपस में हाथ मिलाने का तो सवाल ही नहीं उठता। हिन्दुस्तानी ढंग से नमस्ते करना सब को बहुत अच्छा लगता है। सत्तर या सत्तर साल से ऊपर के बुज़ुर्गों को तो ख़ास हिदायत है कि घर से बाहर बिल्कुल नहीं निकलना है। अब तो यह आलम हो गया है कि जब कभी भी लोग आपस में मिलते हैं तो छ: फ़ुट की दूरी रख कर ही बात होती है। दुनिया के सारे काम ठप्प हो गये हैं। काम ठप्प होने से कितने लोगों की रोज़ी-रोटी का जो नुक़सान हुआ है उसका मुझे पूरा अंदाज़ा है लेकिन जैसा मैंने पहले कहा है; यह मेरे बस के बाहर है।
मौजूदा हालात को देखते हुये भी बहुत से ऐसे सिरफिरे लोग भी हैं जिन्हें मेरी ताक़त का अन्दाज़ा नहीं है। बस मुँह उठाया और निकल पड़े ठण्डी सड़क की हवा खाने। यही वो लोग हैं जिन्हें मैं एकदम अपने चंगुल में दबोच लेता हूँ। ख़ुद तो मरते हैं, साथ में दूसरों के मरने का कारण भी बन जाते हैं। ग़लती यह करते हैं और बदनामी मेरी होती है।
अभी कल की ही तो बात है। एक अलमारी में सूट, टाइयाँ और कमीज़ें आपस में बात कर रहे थे। क्योंकि आईसोलेशन के कारण इनका इस्तेमाल नहीं हो रहा था इसलिये इन्हें शक हुआ कि कहीं मालिक भगवान को प्यारे तो नहीं हो गये। यही सोचकर इन्होंने रोना शुरू कर दिया। इनका रोना सुनकर निचले शैल्फ़ पर रखे पाजामे ने उनकी रोने की वज़ह जानकर उन्हें सारा मामला समझाया और कहा कि आप सब तो चैन की बंसी बजा रहे हैं लेकिन मेरी तरफ़ देखो जिसकी तीनों शिफ़्टों में ड्यूटी लगी हुई है।
मेरे कहर से जूझने के लिये सारी दुनिया के पहुँचे हुए दिमाग़ एक ऐसी वैक्सीन की तलाश में हैं जिससे मेरे कारण जो तबाही मची है उस से निजात मिले। हालाँकि इस बीमारी का अभी तक कोई तोड़ नहीं निकला है फिर भी इतनी बरबादी करने के बाद मेरी यही दिली तमन्ना है कि जल्दी ही कोई वैक्सीन बन जाये और मेरे क़हर से लोगों को छुटकारा मिले।
अरे इन सब बातों के दौरान में आपको कुछ अहम बातें बतानी तो मैं भूल ही गया।
आईसोलेशन के इस माहौल में आजकल रेडियो पर जो गाने बजते हैं उनका इशारा भी मेरी तरफ़ होता है। आपस की दूरी को क़ायम रखने के जो गाने अब दिन रात बजाये जाते हैं, उन में से कुछ हैं।
• चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे, फिर भी कभी इस नाम को तेरे आवाज़ मैं न दूँगा
• कली के रूप में चली हो धूप में कहाँ
• तेरी दुनिया से दूर चले होके मजबूर
वो लोकप्रिय गाने जो पहले ख़ूब बजाये जाते थे लेकिन अब बिल्कुल बन्द हो गये हैं। उनके कुछ नमूने हैं:
• लग जा गले से फिर ये हसीं रात हो ना हो, शायद इस जन्म में मुलाकात हो न हो
• बाहों में चले आओ, हो हम से सनम क्या पर्दा
• आ नील गगन तले प्यार हम करें
• आधा है चन्द्रमा रात आधी, रह न जाये तेरी मेरी बात आधी मुलाक़ात आधी
• बरसात में हम से मिले तुम, सजन, तुम से मिले हम
इस दुनिया में “पड़ौसी के घर में आग लगने पर हाथ सेंकने” वालों की कमी नहीं है। ऐसे ही कुछ बिज़नेस देखने को मिले हैं। “Lose Your Weight Overnight” ने अभी-अभी एक इश्तिहार निकाला है कि वज़न घटाने के लिये उनके मास्क लाजवाब हैं। अधिक पूछताछ करने पर पता चला कि उनके डिजिटल मास्कों को ऐसा प्रोग्राम किया गया है कि एक बार सुबह पहनने पर रात के आठ बजे से पहले उतारना नामुमकिन है। सारा दिन सिर्फ़ स्ट्रॉ से बस पानी ही पी सकते हैं। रात को जब आप मास्क उतारेंगे तो आप खाना कम खायेंगे और जब आप खाना कम खायेंगे तो इसी से वज़न कम हो जायेगा।
अपनी कहानी सुना कर बहुत अच्छा लग रहा है और दिल भी काफ़ी हल्का हो गया है। अब तो मेरी बस यही दुआ है कि जो कुछ भी हालात चल रहे हैं उन में जल्दी से जल्दी सुधार आ जाये। मेरी वज़ह से जो वाइरस फैला है उसका निदान मिल जाये और मुझे भी इस शाप से मुक्ति मिल जाये।
–विजय विक्रात