
डॉ शारदा प्रसाद
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झूलन
झूला झूलैं कृष्ण-कन्हैया
माथे मोर मुकुट अति शोभित
बलि-बलि जात हैं नंद-यशोदा
गोपियों का मन हर्षित- मोहित
सावन माह है अति मनभावन
झूलैं संग-संग राधा रानी!
कृष्ण-कन्हैया के मन बसती
वृषभानु की लाडली सयानी!!
माखन मिश्री और मलाई
गोपियां मटकी भर-भर लाई!
मान किए बैठे अब कान्हा
खाऊंगा नहिं मिश्री-मलाई!!
मैया माखन मैं नहिं खायो
जबरन इनने मुख लपटाई!
छोटो-छोटो हाथ हैं मेऱो
तुमहिं कहो किस भांति चुराई!!
नंद-यशोदा मन-हिं-मन बिहंसत
श्याम हमारो नटखट लाल!
इत-उत डोलत बाल-ग्वाल संग
मोहिनी मूरत नैन बिसाल!!
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