
डॉ शारदा प्रसाद
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आजादी की सुनहरी भोर
सन् सत्तावन से सतत
चलती रही लड़ाई!
तब जाकर आजादी की
पावन शुभ घड़ी आई!!
आजादी की बलिवेदी पर
वीरों ने शीश चढ़ाई!
अंग्रेजों के दमन सहे
और अतिशय पीड़ा पाई!!
अत्याचार और जुल्म से
पूरा देश तड़प रहा था!
अपने ही घर में शोषण का
अनल धधक रहा था!!
जिनने भी आवाज उठाई
खैर नहीं उनकी थी!
काला पानी की सजा आम थी
नियति यही बस उनकी थी!!
सतत समर्पण-संघर्षों से
शुभ घड़ी फिर ये आई!
आजादी का सूरज निकला
भोर सुनहरी आई!!
अपनी आजादी प्यारी हमको
वंदन-अभिनंदन करते हैं!
इस महायज्ञ के पुनीत-प्राणों को
शत-शत नमन करते हैं!!
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