
गुलमोहर
– जय वर्मा, ब्रिटेन
खिड़की के बाहर झाँककर कमला ने देखा कि बगीचे में सब ओर घुप अँधेरा है।
‘माली भी आजकल मनमानी करने लगा है। अपनी मर्जी से आता-जाता है। बगीचे में वह कभी-कभी ही दिखाई पड़ता है। मुरादाबाद के कोठीवाल नगर की इस विशाल और रमणीय कोठी गुलमोहर में अकेले ही मैं रह रही हूँ। बुध बाज़ार, जिसे कभी दिल्ली का कनॉटप्लेस कहते थे, इतना पास होते हुए भी दुकानों पर गये महीनों बीत गये। अकेले रहने की अब आदत सी बन गयी है।’ कमला मन ही मन सोच रही थी।
वास्तव में कमला के पति सेठ ललित की आकस्मिक मौत के पश्चात् दिन कैसे बीत गये, वह स्वयं हैरान थी। प्रायः वह नियमित रूप से बगीचे और घर के काम-काज के सिलसिले में ही अपने आपको व्यस्त एवं प्रसन्न रखने का प्रयास करती थी। हठात् निर्जन घर गुलमोहर में शरीर को चीरती हुई सर्द हवाएँ अकेलेपन का आभास करातीं। गर्मियों की लंबी झुलसती दोपहरियाँ बिताए नहीं बीतती थीं। वसंत के मर्मस्पर्शी मौसम की सुगंध छूकर पल भर में न जाने कहाँ खो जाती। मानसून का बहता पानी यादों के साथ सारी खुशियाँ बहाकर अपने साथ मानो ले गया।
‘अच्छा है कि अगले हफ्ते बेटा ध्रुव कनाडा से मिलने घर आ रहा है। उसे स्वयं ही माँ का ध्यान आया। गुलमोहर को सँभालने की एकांत तपस्या से कुछ दिन तो मुझे राहत मिलेगी। आज मेरी दाहिनी आँख फड़क रही है…..” पास बैठी हुई नौकरानी चन्दा से कमला ने कहा।
अपराह्न में घर की सफाई चन्दा से कराते हुए कमला की आँखों में प्रसन्नता की झलक थी। कमला प्रतीक्षा की घड़ियाँ बिताते हुए संध्या की वेला में क्षितिज पर फैली हुई लालिमा को ऊँचे घने गुलमोहर के पेड़ों के पीछे गायब होते देखती रही। बेटे के आने की सूचना से ही मातृ-स्नेह उमड़ने लगा। उसे एक विशेष आनन्द तथा कौतूहल की अनुभूति होने लगी।
“खूब अच्छे समय पर ध्रुव घर आ रहा है क्योंकि अगले हफ्ते हमारे शहर मुरादाबाद में नुमाइश लगने वाली है।” चन्दा चहकते हुए बोली और जल्दी-जल्दी चाँदी के बरतनों पर पॉलिश करने लगी।
“मालूम नहीं उसे बचपन की कितनी बातें याद हैं? चहल-पहल के साथ मंडी चौक वाली हमारी पीतल की दुकान मेले में प्रत्येक वर्ष लगती थी। तरह-तरह के पीतल और ताँबे के बर्तन, मीनाकारी के रंगीन प्याले और मूर्तियाँ बिकती थीं। इत्रदान, शर्बत और लैमन के सैट्स, पत्तों और फूलों की कढ़ाई से सजे हुक्केदान खरीदने देश-विदेश से व्यापारी आते थे। आज भी घर में चारों तरफ साज-सज्जा की ये अपूर्व खूबसूरत चीजें पुराने भव्य समय की याद दिलाती हैं।” कमला ने पुराने दिनों को याद करते हुए एक लम्बी गहरी साँस ली।
ध्रुव के पिता सेठ ललित सहज स्वभाव के मालिक और परिश्रमी थे। जीवन को एक रंगभूमि की तरह मानते थे। नक्काशी में पारंगत कारीगरों से मोल भाव करने का उनका अपना अनोखा अंदाज़ था। व्यापार के अनुभव से उन्होंने मान मर्यादा, ऐश्वर्य और धन कमाया था। उनका एकमात्र लक्ष्य ध्रुव को उच्च शिक्षा दिलाने का था। नैनीताल के शैरवुड कॉलिज में उसे पढ़े वर्षों बीत गये लेकिन कल ही की बात लगती है। ध्रुव रात भर जाग जाग कर पढ़ता था। ध्रुव को नींद न आ जाये अतः माँ कॉफी बनाकर देतीं और आराम कुर्सी पर बैठी बुनाई करते-करते स्वयं सो जाती थीं।
रोडवेज की बस मुरादाबाद से सुबह आठ बजे चल कर दो बजे दोपहर नैनीताल पहुँच जाती थी। कितने चाव से रास्ते में खाने के लिए चीजें तैयार की जाती थीं। दो दिन पहले ही मट्ठी, नारियल के कटे हुए टुकड़े तथा चिरोंजी वाली बर्फी और देशी घी के बेसन के लड्डू खरबूजे के बीज डाल कर बाँधे जाते थे। कमला के हाथ लड्डू बनाते समय प्यार से कुछ ज़्यादा ही बड़े लड्डू बनाने लगते थे। ध्रुव बरामदे में आराम कुर्सी पर लेटा-लेटा कहता था, “माँ, प्लीज़ लड्डू ज़रा छोटे साइज के बनाना।”
माँ मुस्कराकर कहती, “ नैनीताल में ठंड बहुत पड़ती है। तुम प्रतिदिन दो लड्डुओं के साथ गर्म दूध पी लेना।…. सर्दी नहीं लगेगी और मेरा लाल भूखा भी नहीं रहेगा। “
“परन्तु माँ, मेरे सब दोस्त तो इन लड्डुओं की इन्तज़ार में बैठे रहते हैं। अगर मैं उन्हें लड्डू खाने की दावत न दूँ, फिर भी वे मेरे कमरे में घुसकर लड्डू के डिब्बे को स्वयं खोल लेते हैं। लड्डू का खाली डिब्बा ही मेरे हाथ लगता है। गर्म रहने के लिए नैनीताल में तल्लीताल से मल्लीताल तक दौड़ना तथा शाम को झील के किनारे स्केटिंग करना ही काफी है।”
नैनीताल में पढ़ते समय ध्रुव मम्मी पापा को प्रत्येक वर्ष घुमने के लिए बुलाते हुए कहता था, “जब अगली बार आप मुझसे मिलने नैनीताल आयेंगे तो मैं आपको चाइना-पीक, टिफन टोप और हनुमान गढ़ी घुमाकर लाऊँगा। गहरी नीली नैनीताल की झील में आपके साथ बोटिंग करूँगा। गर्मियों में आप लोगों का मैं इंतज़ार करता रहा। पापा ने लेकिन कभी दुकान से छुट्टी नहीं ली और एक आप हैं कि अकेले चलना ही पसंद नहीं करतीं। सबके मम्मी-पापा स्कूल की छुट्टियाँ होने से दो-तीन दिन पहले ही अपने बच्चों को मिलने आ जाते थे। आसपास के दार्शनिक स्थान रानीखेत, कोसानी और अल्मोड़ा घूमकर आते थे।” मुँह फुलाते हुए ध्रुव ने कहा।
“बेटे, मुझे तो नैनीताल की घुमावदार पहाड़ी सड़कों की चढ़ाई पर जाती हुई बसों को ध्यान करने मात्र से सिर में चक्कर आने लगते हैं।”
“बस आप भी माँ कोई न कोई बहाना ढूँढ लेती हैं।”
सारी बातें याद कर कमला सपनों में खो गयी जैसे कि कल ही की बात हो।
जब ध्रुव विदेश गया पापा ने उसके लिए नये-नये कपड़े बनवाये। उनके उत्साह की सीमा न थी कि उनका बेटा कनाडा जा रहा था। मोहल्ले व पड़ोस में उल्लसित होकर सबको बताते हुए नहीं थकते थे। उसकी खुशी के लिए वे सब कुछ निछावर करने को तत्पर रहते थे।
‘आज ध्रुव को कनाडा गये उन्नीस वर्ष हो गये हैं। वह अयोध्या का राम नहीं ही है कि चौदह वर्ष के बाद वापस अयोध्या लौटकर आ जाता। मेरा बेटा उन्नीस वर्ष में दूसरी बार घर आ रहा है। पिछली बार अपने पापा के दिल के दौरे की खबर सुन कर आया था। तीन दिन कनाडा से यहाँ पहुँचने में लगे। आने में देर हो गयी थी! पापा की शक्ल भी आखिरी बार नहीं देख पाया था। अकेला बेटा, अपने घर में साथ रहता या आसपास के शहर में सर्विस करता तो बात कुछ और होती। भाग्य के लिखे को कौन बदल सकता है?” बगीचे में दीनू माली से काम कराते हुए कमला ने कहा।
“बच्चों को पढ़ाते इसलिए हैं बिटिया कि पढ़-लिख कर अच्छे ज़िम्मेदार नागरिक बनें और अपने पैरों पर खड़े हो सकें। अपनी योग्यता से कुल वंश की परम्परा को आगे बढ़ाकर परिवार का नाम रौशन करें। यह तो कभी न सोचा था कि ध्रुव अपने देश से इतनी दूर जाकर कनाडा में बस जायेगा।” दीनू काका कमला को बचपन से जानते थे।
‘मैं माँ हूँ, क्या करूँ? बस उसी की खुशी में खुश रहने में भला है। “
“एक-एक पौधे को मैंने सींचकर बड़ा किया है। ध्रुव के दादाजी अपने हाथों से पत्ते-पत्ते को पोंछकर गुलाबों की कटिंग भी स्वयं ही करते थे।”
“काका, आज यकीन नहीं आ रहा कि बबलू इतना बड़ा हो गया। आज आपका ध्रुव घर आ रहा है।
“बेटी कमला, तुमने भी तो कोठीवाल नगर की इस कोठी गुलमोहर और बगीचे को कितने ढंग से सँभाल कर रखा है। अँग्रेज़ों के ज़माने की बनी यह कोठी आज भी मज़बूती से खड़ी है। मजाल कि किसी कोने में कोई जाला या धूल हो। आप भी अपने ससुर कर्नल साहब की तरह पूरी कोठी की मरम्मत लगातार करवाती रहती हैं।”
करीब 2000 गज के प्लाट में बनी यह कोठी अपने आप में एक मायने रखती है। इतनी ऊँची दीवारों के बड़े-बड़े कमरे आजकल के नये घरों में कहाँ मिलते हैं। ड्राइव के दोनों ओर खड़े ताड़ के पेड और बाऊंडरी पर लहलहाती फूलों से लदी बेगनवेलिया की बेलों की आभा देखते ही बनती है। गुलाबी, लाल और सफेद रंग की बेलें सदा खिली रहती हैं। जैस्मिन, हनीसकल और न जाने किस-किस तरह की झाड़ियाँ अलग-अलग मौसम में खिलती हैं। चंपा, जूही, रात की रानी और चमेली के फूलों की महक से यह बगीचा महकता रहता है। अत: पड़ोस की औरतें मंदिर जाते समय पूजा के लिए फूल या तो बाऊंड्री की दीवार से स्वयं तोड़ लेती हैं या फिर गुड़हल के लाल फूल भगवान पर चढ़ाने के लिए अंदर आकर ले जाती हैं।
“काका, ये गुलाबों की क्यारियाँ कितनी पुरानी हैं? क्या ये सफेद पत्थर का चबूतरा और वैजीटेबल गार्डन हमेशा नल के पास ही थे?”
“बेटी, मैं छोटा सा अपने बाबा के साथ यहाँ बगीचे में काम करने आया करता था। इन गुलाबों के सुंदर रंग देखकर फूल तोड़ने की ज़िद किया करता था। बेटी, मैं तो एक-एक पौधे और पत्ते से परिचित हूँ। कर्नल साहब को फूलों से बेहद प्यार था। आम, अमरूद, नाशपाती और आडू के दो-दो पेड़ों के साथ लोकाट के तीन पेड़ आज भी उनकी याद दिलाते हैं। जामुन और गुलमोहर के पेड़ तो मेरी याद से भी पुराने हैं। फलों के पेड़ तो आपने लगवाये थे। फलों के खाने और खिलाने का बड़े साहब को बहुत शौक था। मुझे याद है तुलसी के उन्होंने चार तरह के पौधे अपने हाथों से गमलों में लगाये थे। श्यामा तुलसी उन्हें सबसे ज़्यादा पसंद थी। सुबह की चाय में तुलसी अवश्य पीते थे।”
दीनू काका वरांडे में रखी लालटेन और लैंप के शीशे साफ करने लगे, ‘यूँ तो अब इनकी रोज़मर्रा में ज़रूरत नहीं लेकिन तनिक साफ कर देना अच्छा रहेगा। मुरादाबाद में बिजली पर निर्भर नहीं कर सकते। कभी-कभी तो रात में दो से तीन घंटों के लिए बिजली चली जाती है। रात में कठघर रेलवे स्टेशन पर काम करने चला जाऊँगा फिर मेम साहब रोशनी के लिए दीये कहाँ ढूँढती फिरेंगी?….’
ध्रुव अपनी पत्नी शर्ली और बेटे हैरी के साथ यू.एस.ए. से कनाडा में बॉर्डर पार करते ही नियाग्रा फॉल के पास झील के किनारे बसे एक छोटे से शहर में रहता था। प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर इस शहर में विश्व के हर कोने से यात्री नियाग्रा फॉल देखने आते हैं। यहाँ के वार्षिक म्यूज़िक फैस्टिवल के समय होटल में कहीं एक कमरा भी खाली नहीं होता। फोर स्टार्स होटल से लेकर छोटे मोटल्स तक के कुछ कमरे तो अगले वर्ष के लिए पहले से ही बुक हो जाते हैं।
“क्यों न हम अपना एक मोटल खोल लें?” शर्ली ने एक दिन बात-ही बात में ध्रुव से कहा।
“मोटल खोलने के लिए नोटों की गड्डियाँ चाहिए, इतने डॉलर हमारे पास कहाँ से आयेंगे?” ध्रुव ने हँसकर बात टाल दी।
“तुम्हें मालूम है कि मुरादाबाद में तुम्हारे कोठीवाल नगर के मकान की क्या कीमत होगी?”
“बस… लगभग दो या तीन लाख रुपये होगी और क्या? कनाडा के डॉलर्स में भारत के रुपयों को बदली करो तो कुछ भी कीमत नहीं। इस बारे में सोचा तो मैंने भी कई बार है। परन्तु भूल जाओ, उस मकान के पैसों से कुछ नहीं होने वाला। जिंदगी में कुछ अलग कर दिखाने के चक्कर में तुम ऐसा वैसा मत कर बैठना। खतरा उठाने का मुझे कोई शौक नहीं है। बैंक लोन का सिरदर्द मैं लेना नहीं चाहता। बैंक लोन भी तभी मिलेगा जब हमारे पास डिपोज़िट के लिए कुछ धन राशि होगी। काश, हमारे पुश्तैनी घर ‘गुलमोहर’ की कीमत कुछ और अधिक होती।” ध्रुव ने निःश्वास छोड़ी।
शर्ली ने इंटरनैट ऑन किया और गूगल सर्च पर मुरादाबाद प्रोपर्टी की कीमत देखनी आरम्भ कर दी। शर्ली को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ।
वह खुशी के कारण जोरों से चिल्लाई- “ओह नो…. गुलमोहर इज़ लाइक ए गोल्डडस्ट…. इस मकान की कीमत चार करोड़ रुपयों से ज़्यादा है। संभवतः हॉफ-ए-मिल्यन कनेडियन डॉलर्स से ऊपर। इतने बड़े घर में तुम्हारी माँ अकेली ही रहती हैं। पेंशन और बैंक का ब्याज सब उनके पास खर्च करने के लिए रहता है।”
”आई एग्री विद यू, इसलिए अब मुझे किसी भी कीमत पर माँ को मकान बेचने के लिए राजी करना होगा। आने वाले दिन कल की तकदीर तय करेंगे। फिर देखना रानी, हम कितने मज़े से कनाडा में रहेंगे।” ध्रुव सपनों की दुनिया में खो गया।
“परंतु क्या मकान बेचने के लिए तुम्हारी मम्मी तैयार हो जायेंगी? मकान बेच कर वे कहाँ जाकर रहेंगी? तुम्हारे दूसरे भाई या बहन भी नहीं हैं। तुम्हारी माँ के कोई नज़दीकी रिश्तेदार भी नहीं हैं जिनके पास वे जाकर रह सकें। अकेला पुत्र होने का तुम्हें यह नुकसान है वरना तुम्हें कनाडा में रहते हुए उनकी चिंता न करनी पड़ती। तुम यहाँ अपने सभी हिन्दुस्तानी दोस्तों को देखते हो। वे सब कितने मज़े से रहते हैं। कभी अपने माता-पिता की कोई बात भी नहीं करते।”
“माँ को मनाने की बात शर्ली, तुम मुझ पर छोड़ दो। माँ को मैं अपने तरीके से समझा-बुझाकर मना लूँगा। माँ मुझे बहुत प्यार करती हैं। मेरी बात वे आसानी से मान जायेंगी।” अंगुलियों को हवा में नचाते हुए ध्रुव उधेड़बुन में लग गया।
सुबह होते ही इंडिया के 8 घंटे के समय अंतर को ध्यान में रखते हुए ध्रुव ने माँ को टेलीफोन पर अपने भारत आने की सूचना दी। जीवन में पहली बार इतना बड़ा सपना साकार होने की सम्भावना से ध्रुव के मन में प्रसन्नता हो रही थी। वह प्रफुल्लित हो रहा था। फिर थोड़ी देर बाद उसके मन में डर उभरने लगा।
‘अगर माँ ने मकान बेचने से इन्कार कर दिया तो क्या होगा?’ दौलत भी एक अजीब चीज़ है। जितनी मिलती है उतनी ही और बढ़ाने की इच्छा प्रबल होती है। लालच की कोई सीमा नहीं है। …
मुरादाबाद पहुँचते ही ध्रुव ने कहा, “माँ, आप मेरे साथ कनाडा चलिए। मैं आपको कनाडा ले जाने के लिए आया हूँ। बस इस बार इन्कार मत करना।”
“बेटे, मैं अपने घर भारत में बहुत खुश हूँ।”
“आप यहाँ कोठीवाल के इतने बड़े घर में अकेली रहती हैं और हमें आपकी चिंता वहाँ निरंतर बनी रहती है।
“मुझे अँग्रेज़ी बोलनी नहीं आती और बहू शर्ली हिंदी में बातें नहीं कर सकती।”
“माना कि आपकी बहू कनेडियन है परन्तु आप अपनी बहू शर्ली को भी सेवा करने का अवसर दीजिए।”
“बच्चे को भी तुमने हिंदी बोलनी नहीं सिखायी होगी।”
“आपका पोता हैरी जब चार बजे स्कूल से घर आता है तो उस नन्ही सी जान को घर में अँधेरा मिलता है। अगर आप वहाँ हमारे साथ रहेंगी तो उसको घर में कोई प्रतीक्षा करता हुआ मिलेगा। घर गर्म मिलेगा और खाने के लिए नाश्ता तैयार मिलेगा।” अधीरता से माँ के कंधे पर हाथ रखकर ध्रुव बोला।
“कैसे हाँ कर दूँ?” कमला को लीला आंटी के इंगलैंड में बेटे के पास रहने के अनुभव याद आ गये। कितनी दुखी होकर वे लौटी थीं। वहाँ की सभी आधुनिक सुख-सुविधायें होने के बावजूद देश का अकेलापन खाने को दौड़ता था। यहाँ तक कि चिड़ियों की आवाज़ सुनने को वे तरस गयी थीं। लीला आंटी फिर कभी लौटकर वापस इंगलैंड नहीं गयीं।
“मैं जिस हाल में हूँ भारत में ही अच्छी हूँ, मैं कभी कनाडा नहीं जाऊँगी।” शाम के धुँधलके में कमला के विचार पूरी तरह से स्पष्ट थे।
“आप यहाँ पर पुराने घर ‘गुलमोहर’ में अकेली रहती हैं। अगर आप को कुछ हो गया तो मैं कनाडा से आप की सहायता कैसे कर सकूँगा? हमें आपकी चिन्ता सदैव बनी रहती है। आप यहाँ हैं तो हम वहाँ चैन से कैसे रह सकते हैं? हमें एक दूसरे के साथ रहने की आदत भी डालनी चाहिए। आगे चलकर उम्र बढ़ने पर एक दूसरे के साथ की आवश्यकता अधिक होती है। बुढ़ापे में आप हमारे पास नहीं रहेंगी तो और किसके साथ रहेंगी। अब आप ही देखिये, पापा के अंतिम समय में मैं यहाँ नहीं था। ये गिल्टी फीलिंग्स अभी भी मुझे बनी रहती हैं?”
“यहाँ पर मेरा रहन-सहन है। मेरे पास नौकर, माली एवं पड़ोसी हैं। वे सब मेरा ध्यान रखते हैं। वहाँ पर मैं दिन-भर अकेली रहा करूँगी। सुना है कि बर्फ पड़ने के कारण कभी-कभी कनाडा में सड़कें भी बंद हो जाती हैं। तुम्हें तो पता है कि ठंड भी मुझसे सहन नहीं होती।”
“परन्तु माँ, पूरे क्षेत्र में चारों तरफ फैली बर्फ बहुत सुन्दर लगती है। ठंडे देश में रहने के लाभ और नुकसान दोनों ही हैं। लेकिन वहाँ घर और कारें गर्म रहती हैं। कारों में खास चौड़े स्नोटायर होते हैं। हैवी स्नोफॉल के कारण बच्चों के स्कूल जल्दी बंद हो जाते हैं। ऐसे में आपका पोता हैरी घर में अकेला कितना उदास होता है। माँ, आप इसका अंदाज़ा लगा सकती हैं। हम दोनों काम में उलझे रहते हैं। अगर आप घर पर होंगी हमें हैरी की फिक्र नहीं करनी पड़ेगी। आपका भी उसके साथ खेलकर कितना मन लगेगा?”….
कनाडा की प्राकृतिक सुन्दरता तथा बदलते मौसम में पतझड़ बहुत प्रसिद्ध हैं। मेपल्स के मज़बूत बड़े पेड़ तथा उनके बदलते पत्तों के हरे, पीले, लाल और नारंगी रंग देखने में आकर्षक होते हैं। गर्मियों के दिन बहुत लम्बे और बड़े सुहाने होते हैं। गर्मियों में वहाँ का तापमान 29-30 डिग्री सेन्टिग्रेड होता है।
“दुनिया का अजूबा नियाग्रा फॉल हमारे घर से कुछ ही दूरी पर है जिसे देखकर लोग आश्चर्य में पड़ जाते हैं। नियाग्रा फॉल में एक सैकेंड में करीब 6 लाख गैलन पानी 50 मीटर की ऊँचाई से नीचे गिरता है। नियाग्रा फॉल गर्मियों में तो सुन्दर लगता ही है लेकिन सर्दियों में बर्फ में जम जाने के कारण अर्धचन्द्रमा सा लगता है। हज़ारों टन जमा पानी देखते ही बनता है….” बच्चों की तरह ध्रुव बोला।
“बेटे, परन्तु मैं अँग्रेज़ी कैसे सीखूंगी? पूजा के लिए मंदिर जाना मेरी अपनी पुरानी आदत है।” कमला ने अपनी चिंता व्यक्त की।
“मैं बेतुकी बात नहीं कर रहा हूँ, कनाडा में जाकर मैंने फ्रेंच भाषा सीखी है। अँग्रेज़ी के साथ-साथ फ्रेंच भी वहाँ लोग बोलते हैं। आजकल हिंदुस्तानी एवं एशिया के अन्य देशों के लोगों की आबादी करीब चार लाख से अधिक है। अपनी भाषा बोलने वाले हमारे पड़ोस में और लोग भी रहते हैं।”
“मैं कार भी ड्राइव नहीं करती हूँ। इस उम्र में नई-नई चीजें सीखना असम्भव है।”
“हमारे साथियों के माता-पिता आपस में मिलते रहते हैं। कनाडा में करीब 70 मन्दिर हैं, एक तो हमारे घर से आधा घंटे की दूरी पर है। हिंदी, पंजाबी और उर्दू के गाने रेडियो पर 24 घंटे सुनायी देते हैं। टेलीविजन पर हिंदी चैनल लगातार घरों में आते हैं। बालिवुड की फिल्में तथा खाने के लिए हिंदुस्तानी रेस्टोरेंट वहाँ पर हर गली में हैं। मसालों की दुकानें तो आम बात है। घर में तो हिंदुस्तानी खाना रोज ही बनाकर खाते हैं। आपको इतना अकेलापन नहीं लगेगा।” समझाने की कोशिश करते हुए ध्रुव ने कहा।
“बेटा, लीला आटी कहती थीं कि सब काम वहाँ स्वयं ही करने पड़ते हैं। वहाँ घर की सफाई वगैरह के लिए नौकर नहीं होते और मुझे काम करने की आदत नहीं है। मैं काम कैसे कर सकती हूँ?”
“अपना काम वहाँ सब मिलकर करते हैं और स्वयं करना पसंद भी करते हैं। लड़के लड़कियों में कोई फर्क नहीं होता। घर व बगीचे का काम औरतें और आदमी दोनों ही करते हैं।”
“क्या बात है बेटा, मैं देख रही हूँ कि जब से आये हो तुम्हारा अंदाज़ कुछ बदला हुआ नज़र आ रहा है? जो बात तुम्हारे मन में है साफ-साफ मुझे बता दो।”
इससे पहले कि बात आयी गयी हो जाये ध्रुव ने कहा, “माँ, मैं फिर से दोहरा रहा हूँ कि आप मेरे साथ कनाडा चलिये और गुलमोहर को हम बेच देते हैं।”
“यह सब क्या है बेटे? मुझे ताज्जुब हो रहा है कि अकस्मात ये विचार तुम्हारे मन में कहाँ से आ गये? पुश्तैनी मकान गुलमोहर को बेचने का मैं सोच भी नहीं सकती। इस घर से पूर्वजों की यादें जुड़ी हैं। यह हमारी इज़्ज़त और सम्मान का सवाल है। इतने साल लगे सब कुछ बनाने में। बेचने में क्या देर लगती है? क्या तुम इसलिए मुझे कनाडा चलने के लिए बार-बार कह रहे हो?” कमला गुस्से से बोली।
ध्रुव ने उपालंभ दिया, “माँ, आपको मेरी बिल्कुल भी परवाह नहीं है। मैं मकान बेचने में अपने आप को गुनाहगार नहीं मानता। यह बात उसूल की है। मैं अपना हक ही ले रहा हूँ। यह तो हमारा पुश्तैनी घर है और पापा हमेशा कहा करते थे कि यह मकान मेरा ही है। कोई और क्यों बुरा मानेगा? किसी और का हिस्सा तो नहीं ले रहा हूँ मैं? माँ, मैं आपका अकेला बेटा हूँ।”
“बेटा, अच्छा हुआ कि तुमने अपने मन की बात कह दी। अपने मन की बात अपनी माँ से नहीं कहोगे तो किससे कहोगे?”
“मकान और सब सामान बेचने जैसा असाधारण कार्य संपन्न करना कभी भी आसान नहीं होता। जल्दी से बेचने के कारण मनमाने कम दामों में ही कोई गुलमोहर की अब कीमत लगायेगा।” कैसी विडंबना है! तनाव से कमला के दिमाग की नसों में झनझनाहट हो रही थी।
‘सुनी-सुनाई बातों पर शायद मैं यकीन नहीं करती। परन्तु ध्रुव स्वयं मकान बेचने की बात कह रहा है। सच्ची बात कई बार कड़वी अवश्य होती है। समय आने पर जीवन में सभी तरह की बातें सुननी और समझनी पड़ती हैं।’
कमला क्षुब्ध थी ……
‘इस मौके को मैं अपने हाथ से नहीं जाने दूँगा। यह अवसर फिर नहीं आयेगा। अपनी पत्नी और बेटे का भविष्य मुझे ही देखना है।’ ध्रुव के मन में दृढ़ता थी
‘फियेट कार और दूसरे सामान का क्या होगा? फर्नीचर एवं घर का सब सामान कौन खरीदेगा?’ मन ही मन कमला अपने को अकेला महसूस कर रही थी। ‘काश! आज इसके पापा ज़िन्दा होते, मुझे अकेली को ये दिन देखने न पड़ते।’
“जो चीज पसंद है वह किसी भी कीमत पर खरीद लेनी चाहिए और अगर बेचनी हैं तो जो कीमत आसानी से मिल जाये वह लेने में भलाई है।” दादा जी की बात याद करते हुए ध्रुव ने कहा।
‘मैं ध्रुव को निराश नहीं कर सकती। तय मुझे ही करना है। अगर वह सुखी नहीं है तो मैं यहाँ भारत में कैसे खुश रह सकती हूँ? मेरा बेटा ही मेरा सब कुछ है। यह मेरे कुल का दीपक है। अगर यह है तो मेरे जीवन में सब कुछ है। इतनी नाराज़गी भी अच्छी बात नहीं है। नुकसान मेरा ही होगा। कलेजे पर पत्थर कब तक रखे रहूँगी? मैं किसकी प्रतीक्षा करती हुई इस घर में पड़ी हूँ?’ कमला का दिल दहल रहा था।
‘अकेली सन्तान होने के कारण आखिर में यह सब घर-बार है तो ध्रुव का ही।’ कमला ने अपने आप से कहा- तू किस मिट्टी की बनी है। तेरा बेटा तुझे इतना प्यार करता है! यहाँ मुरादाबाद में तेरा रखा ही क्या है? पड़ोसी तक भी आपस में बात नहीं करते। बाज़ार भी मैं अकेली नहीं जा सकती। ज़रा सी बात को मैं क्यों इतना तूल दे रही हूँ? ध्रुव का नाराज़ होना स्वाभाविक है। मुझे सहर्ष ध्रुव की पुश्तैनी मकान बेचने वाली बात मान लेनी चाहिए। सबसे अमूल्य वस्तु मेरे लिए मेरा परिवार है न कि ये पारिवारिक मकान।’ बेटे की हठ के सामने निढाल होकर कमला ने हार मान ली। …..
ध्रुव जल्दी से पासपोर्ट और वीसा बनवाने की तैयारियों में लग गया। उसी दिन वह प्रोपर्टी एजेंट के साथ कोठी को बेचने की बात में व्यस्त हो गया। तुरंत अपने आई फोन से उसने अपनी पत्नी शर्ली को खुशखबरी देकर चकित कर दिया। शर्ली बेहद प्रसन्न हुई।
नतीजा यह हुआ कि वह बिजली की तेजी से काम में जुट गया। समय कम था। जो चीजें बिक सकती थीं वे बिकने के लिए बाज़ार भेज दी गयीं। मकान का बाकी सामान जल्दी-जल्दी परिचितों और शुभचिंतकों में बाँटना आरम्भ कर दिया। उनके शुभचिंतक चकित एवं अप्रसन्न थे। पड़ोसी भौचक्के होकर ताज्जुब से एक दूसरे से पूछते कि ऐसा क्या हो गया? कोई लड़ाई या झगड़े का शक करते और कुछ लोग संवेदना दिखाते। तमाशा देखने वालों की भी कमी नहीं थी।
कमला सबके सामने सामान्य बनकर साहस दर्शाती। परन्तु अकेले में सदमे और परेशानियों के आँसू बहते और उनकी हिचकियाँ रुकते न बनतीं। कई दिनों से उसकी भूख और प्यास भी समाप्त हो गई। अस्तव्यस्त घर की व्यवस्था प्रमुखतः उसी को करनी थी। इतना सब हो जाने के बाद दस लाख मार्केट वैल्यू से कम रुपयों में गुलमोहर बिक गया। चाबियों के गुच्छे कमला और दीनू काका ने पागलों की तरह सुलझाये। घर के कागजात अलग-अलग करके घर के विभिन्न काम निपटाये। ध्रुव ने बैंक और जमाखाते के पेपर्स सावधानी और निपुणता से सँभालकर रखे। बेटे की ममता और ‘गुलमोहर’ के मोह के बंधन के बीच फँसी एक कच्चे खिलाड़ी की तरह परिस्थितियों के अधीन होकर कमला काम में जुटी रही।
पासपोर्ट और वीसा भी समय पर बन कर आ गये। कनाडा एयर लाइन का टिकट ट्रेवल एजेंट घर आकर दे गया था।
माँ और बेटे ने अधीरता से दो-दो सूटकेसों में अपनी आवश्यकता का सामान रखकर जाने की तैयारी आरम्भ कर दी। माँ की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या साथ लेकर जाये और क्या छोड़ दे?
“अपने जेवर एवं पैसा इधर-उधर न रखकर अपने हैंड बैग या हैंड लगेज में ही रखियेगा।” ध्रुव ने माँ को सलाह दी।
विदाई का समय आ गया। मिली-जुली भावनाओं, बेचैनी और फूटती रुलाई के साथ कमला ने मुट्ठियाँ भींच लीं। वह फुर्ती से एयरपोर्ट जाने वाली टैक्सी में जा कर बैठ गयी। किसी से आँखें न मिलाते हुए वह नम आँखों से गुलमोहर को ओझल होते देखती रही।
दिल्ली के भव्य एवं विशाल एयरपोर्ट पर पहुँच कर वह विस्मित हुई। इतना बड़ा एयरपोर्ट उसने पहली बार देखा था!
“मैं चैक-इन करके अभी आता हूँ तब तक आप यहाँ आराम से बैठिये।” कमला को दिल्ली के इन्दिरा गाँधी एयरपोर्ट पर आराम कुर्सी की ओर इशारा करते हुए ध्रुव ने कहा।
कमला को कब नींद आ गयी, उसे पता ही नहीं चला। आँख खुलने पर एक क्षण के लिए सन्नाटा छा गया। एयरपोर्ट की चहल-पहल में अकेलेपन की अनुभूति होने लगी।
“आप बता सकते हैं कि क्या समय हुआ है? मालूम होता है कि मेरी घड़ी बंद हो गई है। यात्रा की थकान से मेरी आँख लग गयी थी।” घबराकर पास बैठे नौजवान से कमला ने पूछा।
“आप अपने हैंड बैग एवं लगेज को सँभालकर अपने पास ही रखें। जाँच कर लें कि पासपोर्ट और एयर टिकट आप के पास हैं।”
एयरपोर्ट के स्वागत कक्ष में अनाउंसमेंट हो रहा था।
कमला की व्याकुलता बढ़ गयी। वह अपनी साँसों को संयमित नहीं रख पा रही थी। पानी की बोतल निकाल कर उसने दो घूँट पानी के पीये। मन शांत नहीं हो रहा था।
एयरपोर्ट पर घूमते हुए सिक्योरिटी ऑफिसर ने कहा, “मैडम, आप इतना क्यों रो रही हैं? कुछ तो बताइये कि क्या बात हुई है? आपको कहाँ जाना है? आपके टिकट और पासपोर्ट कहाँ हैं?”
“मैं अपने बेटे के साथ कनाडा जा रही हूँ, वह चैक-इन करने है।” उसने भाव शून्य होकर चारों तरफ देखा।
आपकी फ्लाइट का क्या नम्बर है? कितने बजे जा रही है?”
“टिकट और पासपोर्ट तो मेरे बेटे के पास हैं। मेरे दोनों सूटकेस यहाँ ट्रॉली पर रखे हैं।”
“आपके बेटे का पूरा नाम क्या है?” एक यूनिफॉर्म पहने हुए एयरपोर्ट सहायक ने विनम्रता से पूछा।
‘ध्रुव देव।” अनजाने भय की छाया मन में मँडराने लगी। “मैडम, ज़्यादा सोचने से कोई फायदा नहीं। आप बिल्कुल नहीं घबरायें। यहीं बैठी रहें मैं कुछ और मालूमात करके आता हूँ।”
एयरपोर्ट के स्पीकर पर ध्रुव देव का नाम अनाउंस हो रहा था कि वे रिसेप्शन को कॉनटैक्ट कर लें।
थोड़ी देर के बाद सिक्योरिटी ऑफिसर ने एक महिला ऑफिसर के साथ आकर कमला को बताया, “आज की कनाडा की फ्लाइट तो जा चुकी है। अगली फ्लाइट कल सुबह है।”
कमला पर तो पहाड़ ही टूट पड़ा। कमला का अर्धचेतन क्रम टूटा। उसकी जुबान तालू से चिपकी रही। वह चीखना चाहती थी लेकिन गले से आवाज़ नहीं निकल रही थी।
“कोई भी लक्षण ऐसे प्रतीत नहीं हो रहे थे कि मैं संदेह करती।” वह छटपटा कर सिक्योरिटी ऑफिसर से बोली।
“क्या बेटे ने इस बारे में कुछ कहा था?”
“नहीं, किसी की क्या गलती है इसमें? …. दुख देने वाला कोई और नहीं अपना ही बेटा निकला। अपने भाग्य को ही दोष दूँगी। बेटे के प्यार ने मुझे अंधा कर दिया था।” वह क्रोधित होकर खड़ी हो गयी।
‘बेटे की नीयत पर कैसे शक करूँ। सम्भवतः उसने ऐसी साजिश नहीं की होगी। कोई काम पड़ गया होगा। नौकरी पर कार्यवश उसे वापिस जाना पड़ गया होगा। मैंने तो सोचा भी न था कि ध्रुव कभी ऐसा करेगा? बस कोई संकट उस पर न आये….’ मन ही मन कमला स्वयं से बातें कर रही थी।
वह हताश हो गई। सोचने की शक्ति उसमें बाकी नहीं बची थी। रूमाल निकालने के लिए जैसे ही हैंडबैग खोला कमला एक सफेद लिफाफा देख कर स्तब्ध रह गयी। वह सफेद लिफाफा उसने पहले कभी नहीं देखा था। घबराकर उसने काँपते हाथों से लिफाफा तत्क्षण खोला। वह चकित रह गयी कि लिफाफे में घर के ताले की चाबियों का एक गुच्छा और मुरादाबाद में आदर्श नगर के एक फ्लैट के बैनामे के कागज़ात कमला के नाम थे।…..
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-जय वर्मा