
पंकज शर्मा, एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर, आजतक
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मंगल ही मंगल दीवाली के दिन है
खीलों खिलौनों बताशों के दिन हैं,
पुरुओं औ दीयों उजासों के दिन हैं,
बच्चों के हुल्लड़ खुशहाली के दिन हैं,
मंगल ही मंगल दीवाली के दिन हैं।
गोबर से लिपती महकती दीवारें,
पुताई से चमके महल चौबारे,
फूलों से लदती ये डाली के दिन हैं,
मंगल ही मंगल दीवाली के दिन हैं।
इठलाती बरफी वो इतराती चमचम,
कोई भर डिब्बा ले कोई लेता कम कम,
कलाकंद-इमरती की थाली के दिन हैं,
मंगल ही मंगल दीवाली के दिन हैं।
देखो बज़ाज़ों की लक-दक देखो,
कंदील औ झल्लर की रौनक तो देखो,
घर घर में ठठे और ताली के दिन हैं,
मंगल ही मंगल दीवाली के दिन हैं।
शहरों से लौटे हैं गांवों को लड़के,
नुक्कड़ पे महफिल जम जाए तड़के,
थोड़ी सी शेखी और गाली के दिन हैं,
मंगल ही मंगल दीवाली के दिन हैं।
