कोरोना-चिल्ला*

दिव्या माथुर

तीन हफ्ते हो चुके हैं जॉन को घर छोड़े हुए; वह एक कैरावैन में किराए पर रह रहा है, वहीं से वह दफ़्तर का काम भी संभाल रहा है।  यदि वह काम न भी करे तो सरकार से उसे वेतन मिलता रहेगा किन्तु जॉन का स्वाभिमान उसे ऐसा नहीं करने दे रहा।  वैसे भी, पति-पत्नी में से एक को तो समय-असमय बाहर जाना ही पड़ेगा, यही सोच कर दोनों ने यह अप्रिय फ़ैसला किया था क्योंकि ताज़ा दूध, फल और सब्ज़ियों के लिए हफ़्ते में दो या तीन बार तो सुपरमार्केट जाना ही पड़ता।  फिर, दो बढ़ते हुए छोटे बच्चों की ज़रूरतें क्या कम होती हैं! जॉन के न न करने पर भी, जॉन की पत्नी सोफ़िया नियमित रूप से भोजन पैक कर घर के दरवाज़े के बाहर रख देती है, जो जॉन रात को खाता है, सुबह नाश्ता वह कैरावैन में ही कर लेता है।  दोपहर को तो वह पहले भी सलाद या सूप ही खाता था; वैसे काम अधिक हो तो वह चाय भी पीना भूल भी जाता है। घर पर भी जब वह दफ़्तर का काम किया करता था तो सोफ़िया को ही उसे याद पड़ता था कि हर आधे घंटे के अंतराल पर उसे उठ कर कुछ टहल लेना चाहिए।  जब वह उसकी अनसुनी करता तो सोफ़िया अपने चार वर्ष का बेटे मैथ्यू को उसके पीछे लगा देती कि पापा से कहो कि उसे पार्क में घुमा लाएं। बिना चूं-चपड़ किए वह झट चल देता था; उन्हें जूते पहनते देखा, उनका पालतू कुत्ता, माइलो, भी दरवाज़े पर जा खड़ा होता।

आजकल तो सुबह जब जॉन अपने परिवार से मिलने आता है तो मैथ्यू के ज़िद करने पर भी उसे पार्क में घुमाना तो दूर, वह उसे चूमता तक नहीं है।  घूमने से अधिक मैथ्यू को पिता की हुड़क उठती है।  हालांकि कोविड-19 से जानवर संक्रमित नहीं होते किन्तु सोफ़िया माइलो को फिर भी बाहर नहीं जाने देती क्योंकि वह मैथ्यू को दिन-रात चाटता रहता है, बाहर से वह कहीं संक्रमण न ले आए। छुटकी मिया अभी छै महीने की भी तो नहीं है, रात में कई बार जाग कर सोफ़िया को उसे दूध पिलाना पड़ता है, जब से जॉन गया  है, वह अच्छी नींद नहीं सोई है। दो छोटे बच्चों को अकेले संभालते वह थक के चूर हो जाती है।

जॉन क्योंकि घर में क़दम भी नहीं रख सकता; सोफ़िया बच्चों को लेकर खिड़की में बैठ जाती है, जॉन बाहर से ही कुशल क्षेम पूछता है, ख़रीदा हुआ सामान दरवाज़े के बाहर ही छोड़ कर वह रोज़ कैरावैन में लौट जाता है। चूमना तो दूर, वह अपनी बीवी और बच्चों को गले भी नहीं लगा सकता। हर रोज़ यही होता है, सोफिया के आंसू नहीं रुकते; जॉन उसकी हिम्मत बंधाते स्वयं कमज़ोर हो जाता है किन्तु उसके आंसू केवल लौटते वक्त ही बहते हैं। 

जॉन द्वारा लाए सौदे को सोफ़िया बारह घंटों तक घर के अंदर नहीं लाती, बच्चों के सो जाने पर, वह दस्ताने पहन कर सामान अंदर लाती है, एक एक चीज़ को धोती पोंछती है, फिर अपने हाथों को देर तक पानी और साबुन से धोती है, फिर भी उसे भी लगा रहता है कि कहीं उससे कुछ छूट न गया हो। 

जॉन की माँ मैरी और पिता एडवर्ड भी घर में क़ैद हैं, दोनों का रक्तचाप अनियमित रहता है, माँ को मधुमेह भी है, उन्हें संक्रमण का अधिक ख़तरा है। स्वयंसेवक उन्हें दवाई और भोजन पहुंचा देते हैं, कभी कभी जॉन भी उनसे मिल जाता है। वे तरस जाते हैं पोता-पोती को देखने के लिए, कहाँ वे पूरा दिन उनके साथ गुज़ारते थे। एक एक कर के उनके बहुत से मित्रों की मृत्यु हो रही है। एन.एच.एस ने हाथ खड़े कर दिए हैं, युवा लोगों को बचाना उनकी प्राथमिकता है और क्यों न हो। वे तो केवल शान्ति से मरना चाहते हैं, साँसों के लिए तड़पते हुए नहीं।

जॉन और मैरी के पड़ोसी अमर सिंह रिटायर्ड डॉक्टर हैं, उन्होंने अपनी सेवा नोर्थविक पार्क हॉस्पिटल को देने का फ़ैसला किया है। उनकी पत्नी, अमृता, दिन रात मास्क्स बनाने में लगी हैं, मैरी के साथ वह कभी-कभी बच्चों से भी मिलने चली आती हैं। सोफ़िया ने उनके लिए दो कुर्सियां आगे वाली बगिया में दो मीटर के फ़ासले पर लगा दी हैं। यह अच्छा है कि उनकी रसोई ख़ासी बड़ी है और सामने की पूरी दीवार शीशे की है। मैथ्यू रसोई की स्लैब्स पर बैठ जाता है; पक्षियों और सड़क से गुजरने वाले पड़ोसियों को देख कर खुश रहता है।  वाहक-सीट में लेटी मिया हिलते-जुलते पेड़ों को अपलक निहारती है; सोफ़िया को भी पेड़ों के साथ समय गुज़ारना बहुत पसंद है।

‘देखना, सोफ़िया, यह चिल्ला है, चिल्ला,’ अमृता, जो आधुनिक होते हुए भी अपनी संस्कृति और विरासत की दुहाई देती रहती हैं, तसल्ली देते हुए सोफ़िया को बता रही थीं, ‘जब बहुत ठंड पड़ती थी तो मेरी दादी कहती थीं कि यह चिल्ला चालीस दिन चलेगा और हम शान्ति से चालीस दिन बीतने का इंतज़ार करते थे। हमारे पास न तो हीटिंग का इंतज़ाम था न ही ताज़ी सब्ज़ियों और फलों का पर हम घर में ही सैंकड़ों तरह के पकवान बना कर बूढ़ों-बच्चों को प्रसन्न रखते थे।  हर शाम को नाच-गाने, लोक कथाएं और तरह तरह के साधारण खेल होते, हमने कभी किसी को निराश होते नहीं सुना था।  आजकल देखो, एक महीना भी नहीं हुआ कि लोग मानसिक रूप से परेशान हैं। कल मैंने न्यूज़ में सुना कि घरेलु हिंसा बढ़ गयी है,’

‘मुझे तो उन बेचारे बच्चों पर तरस आता है, जिनके बेपरवाह माँ बाप अपना सारा क्रोध इन्हीं मासूम बच्चों पर निकाल रहे होंगे।’ मैरी ने कहा। 

‘हाँ, बॉरिस जॉनसन ख़ुद अस्पताल में पड़ा है, अब देखो देश को कौन संभालता है,’

‘यह सब चीन वालों की मेहरबानी है, चूहे, सांप, चमगादड़ क्या-क्या नहीं खाते ये लोग,’

‘चाय बना कर लाती हूँ,’  इसके पहले कि रोज़ की तरह अमृता का न्यूज़-बुलेटिन शुरू हो जाता, सोफ़िया ने घबरा कर विषय बदलने की गरज़ से कहा। अभी उसे सैंकड़ों काम बाक़ी हैं। कल का लाया हुआ सौदा अभी बाहर ही रखा हुआ है; उसे धोकर संभालते और फिर रसोई को अच्छी तरह से साफ़ करने में उसे कम से कम डेढ़ घंटा चाहिए। इस बीच उसे दोनों बच्चों को रसोई से दूर रखना है। उसका तो भगवान् ही मालिक है।

‘नहीं, नहीं, हम अब चलते हैं, लंच का समय हो गया है न,’ मैरी ने बहु की दशा भांपते हुए कहा और उठ खड़ी हुई।

सोफ़िया सोचती है कि तीन हफ़्ते नहीं निकल पा रहे, चालीस दिन में तो वह पागल हो जाएगी।  उसे बाहर जाना है, लम्बी सैर पर, जैसे कि वे रोज़ जाया करते थे, मिया को सजा-धजा कर प्रैम में लिटा कर जब वे घर से बाहर आते तो अड़ोसी पड़ोसी रुक रुक कर उसे निहारते, ‘हाउ क्यूट,’ आदि कहते। जॉन के कन्धों पर चढ़े मैथ्यू की खुशी का भी कोई पारावार न होता। उनका प्यारा सा परिवार पूरे मोहल्ले की रौनक़ था।  आज हर तरफ़ सन्नाटा है, लोगों की पार्कड कारें जंग खा रही हैं।  सिर्फ़ और सिर्फ़ एम्बुलेंस की आवाज़ इस ख़ामोशी को तोड़ती है; दिल घबरा जाता है कि विषाणु की चपेट में अब कौन आया। सबको फ़िक्र लगी रहती है कि यह विषाणु है एक बार पड़ोस में आ पहुंचा तो किसी की ख़ैर नहीं। 

सोफ़िया जब अपनी शंकाएं जॉन के सम्मुख रखती है – फलां फलां का कुत्ता भी इस वायरस से मर गया, संकम्रण हवा से भी फैल सकता है, चीन ने अपने आर्थिक लाभ के लिए कोविड-19 जानबूझ कर फैलाया है, भारत ने इलाज ढूंढ लिया है – तो वह बहुत नाराज़ हो जाता है। पहले तो वह बड़े धीरज से उसे समझाता था पर अब वह झींक जाता है।  वह यह भी जानती है कि सरकार की ताक़ीद की बावजूद, लोग तरह तरह की अफ़वाहें फ़ैला रहे हैं पर वह क्या करे? उसे बहुत फ़िक्र है, सिर्फ़ बच्चों का ही नहीं, स्वयं जॉन की, जो रोज़ शॉपिंग के लिए सुपरमार्केट जाता है, यदि उसे कुछ हो गया?

फिर एक दिन आधी रात को एडवर्ड को दिल का भारी दौरा पड़ा, उसे हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा, उससे मिलने नहीं जाया जा सकता,  पैंतीस वर्षों में यह पहली बार है कि मैरी और एडवर्ड विलग हैं। अपने-अपने घरों में बंद वे अब केवल प्रार्थना ही कर सकते हैं। मैरी को समझ नहीं आ रहा कि वह क्या करे, भोजन पकाने का भी मन नहीं होता।  बहुत भूख लगती है तो सूप का एक पैकेट खोल कर डबलरोटी के साथ गटक लेती है। पहले तो वे दोनों दोपहर और रात के भोजन के बारे में सलाह-मशवरा करते, पाक-विधियों की चर्चा करते, मीठे में क्या बनेगा और फिर प्यार भरा झगड़ा भी करते कि आज का ख़ानसामा कौन होगा। एक पकाता तो दूसरा खाने की मेज़ को ऐसे सजाता कि जैसे कोई ख़ास मेहमान भोजन पर आमंत्रित हो। साथ में वे लाल शराब पीते रहते। मैरी को ठीक से नींद नहीं आ रही कि कहीं अस्पताल से किए गए फ़ोन की घंटी न सुन पाई तो? आँख लगती है तो अचानक उठ कर वह रसोई की ओर दौड़ लगाती है कि आज तो वह सुबह की चाय बना कर एडवर्ड को मात दे ही देगी। यकायक याद आता है कि अब क्या समय और की असमय, वापिस बिस्तर में जा लेटती है।

जब भी फ़ोन बजता है तो सबका दिल बैठ जाता है। वे फ़ोन कर नहीं सकते, अस्पताल इतने अस्त-व्यस्त हैं, डॉक्टर्स और नर्सेज़ अपनी जान पर खेल कर रोगियों को बचाने में लगे हैं। बीबीसी समाचार के अनुसार देश में आज सबसे अधिक मौतें हुई हैं जबकि संक्रमण अभी ‘पीक’ पर भी नहीं पहुंचा है। चिकित्सीय उपकरण अस्पतालों में समय पर नहीं पहुँच रहे हैं, वैंटीलेटर्स के अभाव में रोगियों की मृत्यु हो सकती है, सरकार ग़ैर-सरकारी कंपनियों और अन्वेषकों से भी निवेदन कर चुकी है कि वे जल्दी से जल्दी वैंटीलेटर्स का निर्माण करें। टर्की से आने वाला शिपमेंट न जाने क्यों नहीं पहुँच पाया है, लोग निजि स्तर पर  ऐपरन्स टोपियां और मास्क्स बना रहे हैं। आक्रोश सर्वत्र है कि सरकार को इस सबका इंतज़ाम सब बहुत पहले कर लेना चाहिए था। सोफ़िया और जॉन को मैरी की भी फ़िक्र है, वे चाहते हैं कि उसे अब उनके घर में शिफ़्ट हो जाना चाहिए किन्तु वह नहीं मानती, मैथ्यू और मिया को ख़तरे में नहीं डाल सकती। डॉ अमर सिंह ने मैरी से वादा किया है कि कल सुबह के वार्ड-राउंड के बाद वह मोबाइल पर जॉन से उनकी बात करवाने का प्रयत्न करेंगे; वह बहुत उत्तेजित हो उठी है। 

सुबह के पांच बजे मैरी को फ़ोन पर सूचना दी जाती है कि एडवर्ड का मृत शरीर शव-गृह में सुरक्षित है। 

‘आप ठीक हैं न, किसी को फ़ोन करवाना हो तो हमें बता दीजिए,’ फ़ोन पर नर्स पूछ रही है।

‘नहीं, आप परेशान न हों। मैं ख़ुद ही बेटे को फ़ोन पर सूचना दे दूंगी।  आप लोग तो बहुत व्यस्त होंगे, अपना ध्यान रखिए, थैंक यू वैरी मच,’  काटो तो ख़ून नहीं वाली स्थिति में थी मैरी। फ़ोन कट जाने पर भी वह फ़ोन को कान पर लगाए बड़ी देर तक खड़ी रही, उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब सपने में घटा था या सचमुच एडवर्ड उसे सदा के लिए छोड़ के जा चुका था।

‘जॉन, तुम्हारे डैड की आज सुबह मृत्यु हो गयी, उनका शव मॉर्चरी में भेज दिया गया है,’ मैरी ने बड़ी सधी हुई आवाज़ में बेटे को फ़ोन पर सूचित किया किन्तु जॉन झट पहचान गया कि माँ सकते में थी।

‘माँ, अपना सामान बाँध लो, मैं तुम्हें लेने अभी आ रहा हूँ,’ जॉन के भी आंसू बह निकले।

‘नहीं, बेटा, मैं बिलकुल ठीक हूँ…’ कहने के विपरीत वह बिलख बिलख कर रोने लगीं, उनके दिल में दर्द का समंदर उफ़ान पर था, ‘बेटा, मुझे एडवर्ड से बस एक बार मिलवा दे, मुझे उससे विदा लेनी है।’

‘माँ, धीरज रखो, मैं पंद्रह मिनट में तुम्हारे पास पहुँच जाऊंगा, ओके, मम?’

एकाएक जॉन के हाथ-पाँव फूल गए, भारी क़दमों से वह कार लेने के लिए घर की ओर भागा, जिसे वह घर के बाहर ही खड़ी रखता था कि उसकी ग़ैरहाज़िरी में सोफ़िया को बच्चों को लेकर कहीं अस्पताल न भागना पड़े। 

सोफ़िया ने रसोई में से उसे देखा तो उसका दिल बैठ गया, ज़रूर कोई अनहोनी घटी थी। खिड़की में से जॉन ने उसे पिता की मृत्यु के बारे में बताया। एडवर्ड सोफ़िया को सगे पिता से भी अधिक प्यार करते थे। उसके भी आंसू थामें नहीं थम रहे थे। दोनों ने तय किया कि अब चाहे जो हो,  माँ को उनके घर आ जाना चाहिए।

दोपहर होते होते एडवर्ड की मृत्यु की ख़बर हर तरफ़ फ़ैल गयी है, सम्बन्धियों और मित्रों के फ़ोन पर फ़ोन आने लगे,  सभी यही राय दे रहे थे कि मैरी को ऐसे समय में अकेला छोड़ना उचित नहीं।  छुटकी मिया तक को एहसास हो गया है कि परिवार में कुछ सामान्य नहीं है, वह चिड़चिड़ा रही है, बेवजह रोऐ जा रही है; सिवा उसे अपने सीने से चिपटाने के सोफ़िया क्या कर सकती है। मैथ्यू को तो समझा दिया गया है कि उसके दादा की मृत्यु हो गयी है और वह अब उनसे कभी नहीं मिल सकेगा। वह यकायक ख़ामोश हो गया है,  किसी बात के लिए ज़िद नहीं कर रहा। अपने शयन कक्ष में लेटा वह चुपचाप अपनी पुस्तकें पलट रहा है। सोफ़िया ने उसे जब टीवी पर बच्चों के कई अतिरिक्त कार्यक्रम देखने की इजाज़त दी तो भी वह खुशी से नाचा नहीं। सोफ़िया चाहती है कि वह रोज़ की तरह बात बात पर ज़िद करे, ताकि समय कटे, दिनचर्या का कुछ तो अहसास हो। 

घर पहुँचते ही मैरी ने अपना कोट और जूते आदि एक बैग में डालकर बाहर ही छोड़ दिए और सीधे गुसलखाने में घुस गयी; एक घंटे तक रगड़-रगड़ कर नहाई।  एडवर्ड की शक्ल देखना तो दूर, उन्हें उसके शव को दूर से देखने तक की इजाज़त नहीं दी गयी थी; वे उलटे पांव लौट आए था। अनौपचारिक अंतिम संस्कार के लिए केवल जॉन और मैरी को ही अनुमति दी गयी थी। जॉन ने ज़ूम पर कई सम्बन्धियों और मित्रों को जोड़ लिया था। 

सोफ़िया ने चैन की सांस ली, जॉन की ग़ैरहाज़िरी में अकेले दो छोटे बच्चों को संभालते वह शारीरिक और मानसिक तौर पर टूटने को थी।  मैथ्यू को संभालते, मैरी का भी मन बहल जाएगा। सोकर उठा तो मैथ्यू को रसोई में से आती हुई दादी की आवाज़ सुनाई दी, वह रसोई की ओर लपका। दादी को देख उसे उसे लगा कि जैसे उसे कोई बड़ी नेमत मिल गयी हो। मैथ्यू को अपनी गोद में बैठाया तो मैरी को भी बड़ी राहत मिली। कम से कम, उन दोनों के लिए कोरोना- चिल्ले की अवधि पूरी हो चुकी थी।

*चिल्ला: चालीस दिन लगातार पड़ने वाला भयंकर जाड़ा।

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