लिंगभेद : समझ प्रमाद

है समझ ही का केवल प्रमाद
लिंगभेद, नहीं है अभेद,
दोनों की शक्ति मिल,
बनता जीवन अभिषेक।

प्रसव पीड़ा की सुन किलकारी,
एक ही जिज्ञासा, मन की भारी,
लिंग की है जानकारी ?

बच्चा होय है थाली बजती,
गीतों की रंगरोली सजती,
मुण्डन होता, लड्डू बँटता,
उत्सव का है आयोजन होता,

बच्ची होय ,सन्नाटा छाता,
ये क्या हुआ हे ! भाग्य-विधाता,
बिपदा फिर कुनबे की बढ़ती,
दान दहेज की चिंता चढ़ती,

आओ अब समय को फेरो,
शुरुआत से चाल को हेरो,
लिंगभेदी खाई को भर दो,
बचपन-पोषण-प्रश्न चिन्हित कर दो।

संतुलन का संज्ञान भर दो
गुड्डे के रोने को ना रोको,
क्रन्दन रेचन है इसको बहने दो,
दम्भ क्रोध, विष का है विसर्जन,

गुड्डे को अब गुड़िया दे दो,
समझ भाव का सपना दे दो,
विचार क्रिया की उलझन दे दो,
गुड्डी को दे दो फुटबॉल,
गणित, अभियांत्रिकी का आंचल दे दो,
लिंग भेद है यही बबाल।

पुरुष रसोई हाथ बँटाये,
झाड़ू पौंछा भी घर में लगाये,
मानवता का राग जगाये,
दंभ-दौड़ को संकरा कर दो,
विचार-पोषण ‘ना’ का आदर हो,
हर देहरी में संजीवनी भर दो,
रजस्वला दिन उत्सव रख दो।

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-रामा तक्षक

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