समय पखेरू

समय पखेरू उड़ता जाता लेकर अपने संग हमें
सुख-दुःख के दिखलाते जाता नए नए से रंग हमें

कर्म किया और फल की इच्छा, मानव को संतोष नहीं
जैसी करनी, वैसी भरनी, इसका कोई दोष नहीं
निस्पृह है, ये निर्विकार है, न करता है तंग हमें
सुख-दुःख के दिखलाते जाता नए-नए से रंग हमें

भाँप के इसकी गति को प्यारे जो भी आगे बढ़ता है
छू के उन्नति के शिखरों को कीर्तिमान ही गढ़ता है
जीवन को जीने के असली सिखलाता है ढंग हमें
सुख-दुःख के दिखलाते जाता नए नए से रंग हमें

एक बार जो उड़ जाये तो हाथ नहीं फिर आता है
बे-कदरी न करना मेरी, ये सब को समझाता है
समय बड़ा बलवान जीता, दे हारी सी भी ज़ंग हमें
सुख-दुःख के दिखलाते जाता नए नए से रंग हमें

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-नितीन उपाध्ये

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