माँ देवी अहिल्याबाई होळकर
मन्दिर टूटे, मुरत टूटी, हुआ धर्म पर कुटील प्रहार
माँ देवी अहिल्याबाई ने किया सबका जीर्णोद्धार
जनमी किसान के घर में, तो बहू थी वो राजघराने की
राज काज के संग में शिक्षा ली थी खड़ग चलाने की
बड़ी न्यायप्रिय, दानी, धर्मी, उदार थी वो जमाने की
खर्च न अपने पर करती थी इक भी पाई खजाने की
करती थी अपनी प्रजा से तो वो बच्चों जैसा प्यार
पापी ने मंदिर तोडा, घुटनों पे सबको झुकाया था
दूषित करके गंगाजल को पाप बड़ा फैलाया था
भक्त बड़ी वो शिवजी की काशी का घाट बनाया था
बाबा के मन्दिर जाके सोने का कलश चढ़ाया था
जब लहराई धर्म ध्वजा, किया सब ने जयजयकार
श्रीनगर, हरिद्वार, केदारनाथ या चाहे बद्री धाम कहो
ऋषिकेश, प्रयाग, नैमिष्यारण्य या पुरी का नाम कहो
सोमनाथ, उडुपी, रामेश्वर या काठमांडू का गाम कहो
नाशिक, गोकर्ण, श्रीशैलम में भोले करते विश्राम अहो
इंदौर, पुणे के जैसे कितने मंदिर पाते आधार
अफ़ग़ान, अंग्रेज, नवाबों को किया बातों से कायल
बनवाई धर्मशालाएँ कई, रखा प्याऊ में ठंडा जल
थी राजधानी महेश्वर में जहाँ रेवा का आँचल
हथकरघा उद्योग फैलाया, देने स्त्री को सम्बल
वरना सब के सब हो जाते इक मूरत से लाचार
थी राजमहिषी, जीती थी एक सादा सा जीवन
व्यापार, उद्योग सब ने पाया देवी से संजीवन
स्त्रियों की सेना लेकर के किया दुष्टों का दमन
माँ के चरणों में करता हूँ मैं कोटी-कोटी नमन
हो जाये सभी देवी जैसे, तो हो देश का बेड़ा पार
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-नितीन उपाध्ये