अकेला

एक ख़ामोशी, तूफ़ान के बाद की
साक्षी बनी चुप्पी से सराबोर दीवारें
माथे की तनी हुई नसें
और आँखों की बहनें की रफ़्तार
सब कुछ तहस नहस सा
काश कि कोई समझ पाता
नितान्त अकेलापन भीड़ के बीच
सच कहो कब तक कहूँ इस दिल को
एकला चालो रे, वो भी तब
जब अकेले जाने का वक़्त आ गया है
सुनो चलाचली के इस वक़्त में
तूफ़ान के बाद की इस चुप्पी में
मुझे ज़रूरत है अनन्त शांति की
क्या कहते हो तुम मेरे तथाकथित मित्र

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– अनीता वर्मा

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