शत सिरून
घूमती रही मैं सारे शहर में
मैंने देखा ओपेरा के पास लोगों का हुजूम
देख आई मैं काली झील का कोना
दूर से देखा मैंने चमकते अरारात को
सफ़ेद बर्फ़ के साथ लुभाता हुआ
ठीक इस शान्त शहर की तरह
सर्द हवाओं के बीच हर जगह
सर्द चेहरों पर छाया था कंपकंपाता
सिहरता सिहराता उदास मौसम
तभी ना जाने कहाँ से एक अनजान चेहरा
गीत गुनगुनाता आया मेरे पास
देखता रहा मेरे चेहरे को
मेरे कान के पास सिर्फ़ दो शब्द
“शत् सिरून ”- बहुत सुन्दर
और फिर पिघल गई मेरे भीतर की बर्फ़
ओ येरेवान तुम कितने सुंदर हो
ओ अरारात मैं भर लेना चाहती हूँ तुम्हें
अपनी उदास सुबह के उजास में
कहना चाहती हूँ बार बार – “शत सिरून“
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– अनीता वर्मा