पहाड़ और नदी

मैं, दुर्गम, कठोर पहाड़
वह खिलखिलाती बहती नदी थी,
ताज़्जुब नहीं कि चली गई
हैरत है कि वह कभी मेरी थी।
मेरा ठहराव,
शायद कभी समझी नहीं।
अच्छा हुआ के मुझ पत्थर संग
वह ज्यादा उलझी नहीं।।
नाचते गाते लेहेरो ने
जाने क्या लतीफे छेड़े थे।
दरिया से मिलने ही तो उसने
पाश मेरे तोड़े थे।।
बादलों सुन लो रो लो तुम भी थोड़ा
सुनकर मेरी कहानी।
रास्ता है दूर का उसका
बीच में कम ना पड़ जाए पानी।।

*****

-सई शिधये

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »