पंडित कमला प्रसाद मिश्र : फीजी के राष्ट्रीय कवि
डॉ. सुभाषिनी कुमार
पंडित कमला प्रसाद मिश्र हिंदी जगत के एक जाज्वल्यमान सितारे रहे हैं। हिंदी के प्रति उनकी तपस्या से लोग सदैव प्रभावित रहे और उन्हें श्रद्धापूर्वक ‘पंडित जी’ कहकर ही संबोधित करते हैं। हिंदी कविता के क्षेत्र में पंडित जी की अंतर्राष्ट्रीय पहचान है। वे जीवन भर साहित्य-साधना में तल्लीन रहे और कविता ही उनकी जीवन संगिनी रही। इसलिए आपको फीजी के राष्ट्रीय कवि की उपाधि दी गई है। डॉ. विवेकानंद शर्मा अपनी किताब ‘फीजी के राष्ट्रीय कवि- कमला प्रसाद मिश्र का काव्य’ में मिश्र जी को फीजी का राष्ट्रीय कवि मानते हैं।
पं. कमला प्रसाद मिश्र का जन्म 1916 में वाईरुकू रकिराकी में हुआ। सन् 1926 में 13 वर्ष की आयु में मिश्र जी अध्ययन हेतु वृंदावन, गुरुकुल, भारत आ गए। भारत में अध्ययन पश्चात ‘आयुर्वेद शिरोमणी’ की उपाधि पाने के बाद आप फीजी लौटे। भारत में शिक्षा प्राप्त करके जब 1937 में पंडित जी स्वदेश लौटे तो फीजी में हिंदी साहित्य का परिदृश्य अत्यंत धुंधला था। अध्ययन काल में ही मिश्र जी ने हिंदी, संस्कृत, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी भाषाओं पर अधिकार प्राप्त कर लिया था और सृजनात्मक-लेखन में भी रुचि लेने लगे थे। वे कविताओं के माध्यम से अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते थे।उन्होंने फीजी आकर ‘जागृति’ और ‘जय फीजी’ जैसे साप्ताहिक समाचार पत्रों के प्रकाशन व संपादन का कार्यभार सफलतापूर्वक संभाला। तथा ‘जय फीजी’ के माध्यम से पंडित जी ने फीजी में हिंदी भाषा और साहित्य की ज्योति को निरंतर प्रज्वलित रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अपने साथ-साथ उन्होंने देश के अनेक लोगों को हिंदी में कविता, कहानी, दोहे, चौताल तथा अन्य प्रकार के लोक-गीतों को लिखने के लिए प्रेरित किया।
आपकी रचनाएँ भारत की तत्कालीन श्रेष्ठ पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई जिनमें सरस्वती, माधुरी, विशाल भारत इत्यादि सम्मिलित हैं। फीजी का नाम और साहित्य आपने सुनहरे अक्षरों में भारत की हिंदी पत्रिकाओ\ में दर्ज करा दिया। पंडित जी की अनेक कविताओं में फीजी का प्राकृतिक सौंदर्य शब्दबद्ध है। उसके सुंदर और मनोरम समुद्र-तट, सदाबहार मौसम, दूर-दूर तक फैली हरियाली, नदियाँ और पहाड़ सभी उनकी कविताओं में मिलते हैं। फीजी की मिट्टी की सुगंध से ओत-प्रोत प्रकृति का यह चित्रण उनके राष्ट्र प्रेम का ही द्योतक है। कवि मिश्र जी कहते हैं-
यहाँ सूरज पहले निकलता है और दूर अँधेरा होता है
फीजी फिरदौस है पसिफ़िक का यहाँ पहले सबेरा होता है।
हर ओर गजब हरियाली है हर ओर छटा मतवाली है,
यह फीजी वही जिसमें हर माह बहार का फेरा होता है।
कवि कमला प्रसाद मिश्र फीजी और हिंदी के प्रति समर्पित सच्चे देशभक्त कवि हैं। उनकी कविता ‘क्या मैं परदेशी हूँ ?’ में फीजी के प्रवासी भारतीयों के सवाल को उठाया गया हैं-
धवल सिंधु-तट पर मैं बैठा अपना मानस बहलाता
फीजी में पैदा होकर फिर भी मैं परदेशी कहलाता
यह है गोरी नीती, मुझे सब भारतीय अब भी कहते
यद्यपि तन मन धन से मेरा फीजी से ही नाता है
भारत के जीवन से फीजी के जीवन में अंतर है
भारत कितनी दूर वहाँ कौन सदा आता-जाता (फीजी का हिंदी काव्य, पृ.16)
‘क्या मैं परदेशी हूँ?’ कविता का प्रश्न फीजी के प्रवासी भारतीयों का है और हमेशा से ही प्रवासी भारतीयों के मस्तिष्क में देश और अस्तित्व को लेकर द्वंद्व उत्पन्न करता आ रहा है। फीजी में जन्मे जाने के बावजूद भी वहाँ के लोगों ने उसे पराया ही माना जबकि कवि तन और मन से फीजी से जुड़ चुका है और अब यही उसका निवास है। कवि कमला प्रसाद मिश्र की भाँति अन्य कवियों ने भी इस पराएपन को महसूस किया है और काव्य में इस संवेदना को अभिव्यक्त किया है।
पंडित जी को हिंदी सेवा और उनकी कृतियों के लिए सन् 1978 में भारत सरकार द्वारा आप विश्व हिंदी पुरस्कार से अल\कृत हुए तथा 1982 में फीजी की हिंदी महापरिषद द्वारा सम्मानित किए गए। पंडित जी की काव्य रचनाएँ ‘ताजमहल’, ‘सुमन’, ‘पंछी’, ‘गिरमिट के समय’, ‘क्या मैं परदेशी हूँ ?’ आदि सरल, सहज और सुबोद काव्यात्मक भाषा की कृतियाँ हैं जो फीजी में हिंदी काव्य की दिशा निर्धारित करती आ रही हैं। ‘गिरमिट के समय’ कविता में पंडित कमला प्रसाद मिश्र ने भारतीय मज़दूरों की फीजी यात्रा और उनके संघर्षों की वेदना का चित्रण करते हुए कलकत्ता से फीजी में किए गए कार्यों में भारतीयों के समर्पण और साहस को अभिव्यक्ति दी है। वहीं ‘महात्मा गांधी’, ‘बापू का महानिर्वाण’, ‘यह अहिंसा का युग नहीं’ नामक कविताओं में मिश्र जी ने महात्मा गाँधी के जीवन-कार्यों, दर्शन, राष्ट्रभक्ति को सम्मिलित किया है।
सन 1966 में पंडित कमला प्रसाद मिश्र जी का 86 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। पंडित जी का विपुल साहित्य फीजी में हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोवर है जो वर्षों तक हमारा मार्गदर्शन तथा साहित्य सृजन का प्रेरणा स्त्रोत रही है।
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