फीजी और भारत की मिली-जुली संस्कृति

डॉ. सुभाषिनी कुमार

फीजी द्वीप समूह एक बहुसांस्कृतिक द्वीप देश है जिसकी सांस्कृतिक परंपराएं महासागरीय यूरोपीय, दक्षिण एशियाई और पूर्वी एशियाई मूल की हैं। फीजी में भारत के विभिन्न हिस्सों से श्रमिक, जिन्हें अब भारतीय मूल का फीजियन कहा जाता है, चीनी के बागानों में गिरमिट अनुबंध के तहत काम करने आए थे। उनकी सेवा अवधि समाप्त होने के बाद, कई फीजी में ही बस गए,  कुछ व्यापारी और व्यवसायी बन गए; और कई मुक्त किसान के रूप में भूमि पर बने रहे। इन प्रवासी भारतीयों ने अपने जड़ों से दूर होकर भी फीजी में अपनी पहचान और संस्कृति को जीवित रखने का अथक प्रयास किया है और उनके जन्म-मृत्यु, विवाह संस्कार, त्योहार, उत्सव आज भी धूमधाम से मनाए जाते हैं।

          फीजी की आबादी में ज्यादातर मूल फीजियन्स (ई-तउकइ) 54% हैं। इंडो-फिजियन्स की आबादी लगभग 37% है, जो गिरमिटिया मजदूरों के वंशज हैं, जिन्हें 1800 के दशक में अंग्रेजों द्वारा इस क्षेत्र में लाया गया था। फीजी और भारत के बीच सांस्कृतिक संबंध सन् 1879 में स्थापित हुए जब ब्रिटिश सरकार ने भारत से फीजी गन्ने के खेतों में काम करने के लिए भारतीय मजदूरों को यहाँ लाकर बसाया था। आज से लगभग 144 वर्ष पूर्व प्रशांत महासागर में भारतीय श्रमिकों द्वारा की गई यात्रा ने आधुनिक भारत को आज एक अनूठी सांस्कृतिक सहयोगी देश, फीजी के रूप में दिया है। जिसे छोटा भारत भी कहा जाता है, जहाँ कई वर्षों से उल्लेखनीय ऐतिहासिक परिस्थितियों में विकसित प्रवासी भारतीयों की मान्यताओं और रीति-रिवाजों का अनूठा मिश्रण है। डॉ. विमलेश कांति वर्मा के शब्दों में “भारत से बहुत दूर सात समुंदर पार एक छोटा भारत, जहाँ हमारी तरह ही सभी देशवासी हिंदी समझते और बोलते हैं, हमारी तरह ही दीवाली और होली मनाते हैं, सत्यनारायण की कथा सुनते हैं।”[i] (वर्मा, 2016, पृ.11)

        शर्तबंदी मजदूर के रूप में पहुँचे इन प्रवासी भारतीयों के समक्ष सबसे बड़ी समस्या अपनी संस्कृति की रक्षा की थी। हिंदू अपनी हिंदू संस्कृति तो मुस्लमान अपनी मुस्लिम संस्कृति की उन्हीं परंपराओं को सुरक्षित और संरक्षित करना चाहते थे, जो भारत में थे। इस संबंध में फीजी के प्रतिष्ठित इतिहासकार प्रो. बृजलाल और डॉ. रिचर्ड बार्ज़ लिखते हैं-“इसाई धर्म मूल फीजी वासियों और यूरोपीय समूहों को तो एक मंच पर ले आया लेकिन भारतीय फीजी वासी इसे स्वीकार नहीं कर पाए।” अधिकांश भारतीय इसाई धर्म को औपनिवेशिक सरकार और सी.एस.आर कंपनी के धर्म के रूप में देखते थे और इसीलिए वे अपनी पहचान और संस्कृति की सुरक्षा के लिए दृढ़ रहे। फीजी के कवि राघवानन्द शर्मा की कविता में यह भाव इस प्रकार अभिव्यक्त हुआ है-

हर गाँव में रामायण की गूंज सुनाना
घर-घर पे हनुमान के झंडे का फहराना
भारतीयों का शान से भारतीय कहना
फख़र से हर कौम में अपने सर को उठाना।
शायद हमारे, नसीब ये न होते
जड़ मज़बूती से अगर तुम जमाए न होते।।[ii]

यह गर्व की बात है कि आज हर भारतीय घरों में ‘फीजी हिंदी’ बोली और समझी जाती है जो भारतीय परंपरा को संरक्षित करने में सार्थक साबित हुई है।

           फीजी में ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों ने अपनी नीति अनुसार भारतीय श्रमिकों को मूल फीजियन और यूरोपियन लोगों से अलग रखा। इन भारतीयों को केवल श्रमिक वर्ग के रूप में देखा जाता था, और उन्हें यूरोपीय लोगों के साथ या उनके पास रहने की अनुमति नहीं दी गई, और न ही देशी फीजियन मूल के निवासियों के साथ मेल-मिलाप का अवसर था। इस अलगाव ने एक ओर संस्कृति संपर्क की समस्या पैदा की, तो वहीं फीजी में बहुजातिय सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा दिया है। हालांकि किसी देश की सांस्कृतिक विकास पर उस देश के राजनीतिक दशा का प्रभाव जरूर पड़ता है। भारतीय दृष्टिकोण से ‘यथा राजा तथा प्रजा’ अर्थात शासक के गुणों का प्रभाव प्रजा पर पड़ता है। औपनिवेशिक शासन के समय में, सभी स्वदेशी फीजियनों को मिशनरियों द्वारा मुख्य रूप से ईसाई धर्म में अभियुक्त किया गया। किंतु, प्रवासी भारतीय हिंदुओं ने बड़े पैमाने पर धर्मान्तरण करने से इनकार कर दिया और इस कारण आज यहाँ भारतीय संस्कृति की ध्वजा लहरा रही है।

           फीजी में भारतीयों का आगमन उत्तर प्रदेश, बिहार, मद्रास और आंध्र प्रदेश के राज्यों से हुआ। फीजी में भारतीय शब्द मुख्यता उन लोगों के लिए प्रयुक्त होता है जो भारत से फीजी आए और हिंदी बोलते है। इन प्रवासी भारतीयों की परंपरा व संस्कृति इनकी जड़ों में निहित है और वहीं से इसका पोशन भी होता आ रहा है। फीजी द्वीप में दुनिया के तीन महान धर्म;  ईसाई, हिंदू और इस्लाम का मीटिंग ग्राउंड है, जहाँ सभी सहिष्णुता से अपने-अपने रीति-रिवाजों और विश्वासों को निभाते हैं। सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि जन आबादी की लगभग 65% ईसाई, 28% हिंदू और 6% मुस्लिम हैं।[iii] फीजी में सबसे अधिक ईसाई धर्म के मानने वाले लोग हैं। यहाँ के मूल फीजियन निवासियों ने औपनवेशिक प्रभाव में आकर ईसाई धर्म को स्वीकार किया है।  तथा दूसरा नम्बर हिन्दू धर्मावलम्बियों का हैं और इसके बाद इस्लाम और सिख धर्म के मानने वालों का हैं। किंतु सराहनीय बात यह है कि यहाँ धर्म के नाम पर कोई झगड़ा नहीं है। यहाँ के नागरिक अपनी- अपनी श्रद्धा अनुसार मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च इन सभी जगहों पर माथा टेकने आ-जा सकते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी भाषा के अलावा, फीजियन और हिंदी भाषा अक्सर घर पर बोली जाती है और इसका उपयोग धार्मिक संदर्भों, बाजार, रेडियो और टीवी पर किया जाता है।

जाति संरचना का बहिष्कार

          फीजी की सामाजिक संरचना में हिंदुओं के बीच किसी भी प्रकार की जाति संरचना का अभाव है। इसका मूल कारण गिरमिट काल का जीवन रहा है क्योंकि उस समय सभी भारतीयों का जीवन मजदूरी और खेती-बारी के इर्द-गिर्द घूमता था। एड्रियन सी. मेयर ने अपनी पुस्तक “फीजी में भारतीय” (1963) में जहाज की यात्रा पर अधिक प्रकाश डाला, जिसमें उन्होंने लिखा है कि समुद्री यात्रा के दौरान जाति के मतभेदों की अवहेलना की गई थी।[iv] जहाज में सभी लोगों को एक आम केबिन में साझा करते हुए रहना था, ​​एक साथ खाना और खेतों तथा मिलों में काम करते समय भारतीय मजदूरों में कोई फर्क नहीं किया जाता था कि उनके परिवार भारत में अपनी जाति के अनुसार क्या कार्य करते थे। उनका एक साथ जहाज की यात्रा करना, साथ खाना-पीना, सोना तथा चाजों के साझा ने उनके जात-पात के दायरे को खत्म ही कर दिया। मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका और कैरिबियन में अन्य प्रमुख गिरमिटिया हिंदू श्रम बस्तियों की तरह ही यहाँ गिरमिट के शुरुआती दिनों से ही हिंदुओं के बीच जाति संरचना का बहिष्कार देखा गया है।

          एड्रियन सी. मेयर ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि भारतीय लोगों ने अपनी जन्मभूमि से आते ही जाति-पाति के मतभेदों को पीछे छोड़ दिया क्योंकि उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान नए मानवीय संबंधों का निर्माण किया जिसे ‘जहाजी-भाई’ का नाम दिया गया। जिसके परिणामस्वरूप रिश्तेदारी की एक नयी अवधारणा सामने आई। चूंकि ज्यादातर भारतीय फिजियनों को अपनी जाति की पृष्ठभूमि या उनके पूर्वजों की सही जानकारी नहीं है, इस तरह धीरे-धीरे उन्होंने खुद को खोजने के मापदंडों को खो दिया है। भारत में अपने वंशज से वापस जुड़ने में असमर्थ होने के कारण, फीजी के भारतीय प्रशांत में अपने भावनात्मक और दिन-प्रतिदिन के संपर्क पर जोर देने लगे।

            फीजियन समाज में एक व्यक्ति की स्थिति उसकी जन्म जाति-पाति के बजाय उसकी योग्यता, कर्म, धन-दौलत, पद और जीवन शैली पर नियत होती है। यहाँ अपने व्यवसाय के आधार पर व्यक्ति ऊँचा या नीचा नहीं माना जाता तथा जातिय आधार पर लड़ाई-झगड़ा कभी फीजी में नहीं हुआ।                                                 

प्रमुख  भारतीय त्योहार  

           भारत से 12,000 मील दूर होते हुए भी चौथी और पाँचवीं पीढ़ी के भारतीयों ने फीजी में अपनी भाषा, संस्कृति और धर्म को सुरक्षित रखा है। फीजी में आर्य समाज, सनातन धर्म, मुस्लिम लीग, सिक्ख गुरुद्वारा समिति आदि धार्मिक संस्थाएँ अपना-अपना कार्य आनंद-पूर्वक कर रही हैं। दीपावली, होली, रामनवमी, ईद, पैगम्बर मुहम्मद साहब का जन्मदिवस इत्यादि त्योहार आज उसी तरह मनाए जाते हैं जैसे सौ वर्ष पहले मनाए जाते थे। अंग्रेजी शिक्षा प्रचलित होते हुए भी 95% भारतीय जनसमुदाय अपने घरों में हिंदी भाषा का प्रयोग करती हैं।

           फीजी में दीपावली, ईस्टर, पैगम्बर मुहम्मद साहब दिवस तथा क्रिसमस मनाने के लिए सार्वजनिक अवकाश रहता है। तथा रामनवमी और होली त्योहारों के समय हिंदू स्कूलों की छुट्टी रहती है और ईद के अवसर पर मुस्लिम स्कूलों की छुट्टी रहती है। 20 वीं शताब्दी के आरम्भिक दौर में फीजी के हिंदुओं के लिए होली सबसे प्रमुख त्योहार था तथा इस्लाम धर्म के लिए मुहर्रम।[v] मगर गिरमिट प्रथा तथा ब्रिटन शासन से आजादी के बाद दिवाली हिंदुओं का सबसे प्रमुख त्योहार माना जाता है। 

           दीपावली पर्व भारतीयों के लिए पश्चिम के क्रिसमस पर्व जैसा ही रंगीन और बृहद रहता है। धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए घरों को सजाया जाता है। दीपावली के दिन पहनने के लिए नए कपड़े बनवाए जाते हैं, अनेक प्रकार के पकवान और मिठाईयां बनाई जाती हैं। घरों को सजाने के लिए बिजली से जलने वाली झालर लगाई जाती है। तथा रात को आतिशबाजी और पटाखों की आवाज से सारा आकाश गूंज उठता है। रेडियो और टी.वी पर दीपावली के दिन माता लक्ष्मी, सरस्वती और श्री गणेश भगवान की पूजा प्रसारित की जाती है। इस त्योहार के उपलक्ष में ‘शान्ति दूत’ समाचार पत्र द्वारा दीपावली विशेषांक निकालाता है। दीपावली का त्योहार पूरे फीजी देश में बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

          अपने आराध्य भगवान श्री राम की तरह ये भारतीय खुद को निर्दोष, पीड़ित और निर्वासित समझते थे। उन्हें श्री राम की वनवास की तरह, गिरमिट काल में कई कठिनाइयों और अपमान से गुजरना पड़ा जहाँ दानव की तरह उपनिवेश अंग्रेज शासक रावण का प्रतिनिधित्व करते हैं जो उनके नैतिक जीवन में हस्तक्षेप करते थे। ब्रिटिश ओवरसियर द्वारा कुली महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन भी किया गया था। अतः श्री राम के वनवास की समाप्ति और गिरमिट प्रथा का अंत यह दोनों घटनाएं प्रवासी भारतीयों के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं।

           भारतीयों की दूसरी प्रमुख पर्व होली है जो फरवरी या मार्च में आयोजित, रंगों का त्योहार है। लोग मिलकर ढोलक, हारमोनियम तथा करताल की धुन पर धार्मिक और फागुन गीत ‘फगुआ’ गाते हैं। इस दिन पर लोग खासतौर से घर पर बने गुलगुला, लकड़ी मिठाई, हलवा, बरा तथा सईना आदि खाते हैं। रामायण मंडलियाँ चौटाल गाते हैं और लोग सड़कों पर रंग व पानी एक दूसरे पर डालकर आनंद लेते हैं। रंग की होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। अगले दिन सब लोग एक दूसरे को गुलाल, पाउडर और तरह-तरह के रंग डालकर होली खेलते हैं। स्कूलों तथा धार्मिक स्थलों पर प्रह्लाद जो भगवान विष्णु का भक्त था और हिरण्यकश्यप की कथा बतलाई जाती है। यह पर्व सभी फीजी वासियों को बुराई, अंहकार और नकारात्मकता को त्याग कर, एकता और प्रेम के सूत्र में बाँधने का संदेश देती है। फिजी में होली को न केवल वसंतोत्सव के रूप में बल्कि प्रेम, दोस्ती और उल्लास के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। फीजी में इस त्योहार के अवसर पर गाए जाने वाले गीत भगवान कृष्ण और राधा रानी के प्यार और संबंधों पर आधारित होते हैं।

           इसके अलावा रामनवमी भी हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। फीजी में राम नाम की महिमा चहूँ ओर फैली हुई है। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है- ‘राम ते बढ़ि के राम का नामा’। फीजी के हिंदू वर्ग जब एक दूसरे से मिलते हैं तब ‘राम-राम’ कहकर एक दूसरे से हाथ मिलाते हैं या फिर गले मिलते हैं। यहाँ गोस्वामी तुलसीदास जी की रामचरितमानस और भगवान श्री राम का सबसे अधिक गुणगान है। रामनवमी पर्व को सामूहिक रूप से रामायण मण्डलियों के माध्यम से 9 दिनों तक मनाया जाता है। इन 9 दिनों में रामनवमी मनाने वाले सभी हिन्दू भक्त रामचरितमानस का अखंड पाठ करते हैं और साथ ही मंदिरों और घरों में धार्मिक भजन, कीर्तन और भक्ति गीतों के साथ पूजा आरती की जाती है। इन 9 दिनों में श्रद्धालु पूरे मन से श्री राम जी की पूजा और अर्चना करते हैं। इस दिन लोग श्री राम, सीता माता और हनुमान जी की पूजा अपने घरों और मंदिरों में करते हैं। बहुत सारे मंदिरों में रामचरितमानस का पाठ आयोजित किया जाता है। रामनवमी के दिन कई जगह बड़े-बड़े पांडाल लगाए जाते हैं जहां भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है और वहां जो भी भक्तजन आते हैं उन्हें प्रसाद बांटा जाता है। रामनवमी के दिन हिन्दू स्कूलों की छुट्टी रहती हैं।

              फीजी में भारत से 60,536 मजदूरों को लाया गया था, जिनमें से मुस्लिम समुदाय 14.3% थे।[vi] फीजी में उर्दू भाषा मुस्लिमों की पहचान का एक आधार है जो  भाषा विषय के अंतर्गत स्कूलों में पढ़ाई जाती है और छात्र इसे सार्वजनिक परीक्षा विषय के रूप में फॉर्म 4 तक सीख सकते हैं। यहाँ पर मुस्लमान समाज की प्रमुख छुट्टियां रमजान, ईद और पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन पर रहती हैं। अल्पसंख्याक होते हुए भी आज फीजी में  मुस्लिम समुदाय के कई सदस्यों की सरकार में प्रमुख भूमिकाएँ हैं और पैगंबर का जन्मदिन पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित है।

          जहाँ फीजी की अधिकांश भारतीय आबादी सन् 1879 से 1916 के बीच फीजी लाए गए भारतीय गिरमिटिया मजदूरों के वंशज हैं, वहीं अधिकांश सिख मुक्त आप्रवासियों के रूप में फीजी आए थे। आज फीजी में सिखों के अपने गुरुद्वारा हैं जहां वे प्रार्थना सभाएं करते हैं और अपनी पवित्र पुस्तक पढ़ते हैं। सिख गुरुद्वारों को फीजी के उन क्षेत्रों में स्थापित किया गया है, जहाँ एक सघन सिख समूह मौजूद हैं। ये मंदिर केवल पूजा के स्थानों के रूप में ही नहीं बल्कि एक ऐसे स्थान के रूप में काम करते हैं जहाँ जरूरतमंदों के लिए भोजन और आश्रय प्रदान किया जाता है। फीजी में पहला सिख मंदिर 1922 के नव-प्रवासियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए 1922 में समबुला, सुवा में बनाया गया था।  फीजी में अधिकांश परिवारों की नई पीढ़ियाँ पगड़ी और लम्बे बाल नहीं रखतीं लेकिन वे प्रार्थना के लिए सिख मंदिरों में जाती हैं, कीर्तन सुनते हैं और गुरुओं की शिक्षाओं पर विश्वास करते हैं। अल्पसंख्यक होने के बावजूद, फीजी सिखों ने पिछली सदी के उत्तरार्ध में और बीसवीं सदी की शुरुआत में उनके आगमन के बाद से इस देश के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फीजी सिखों ने न केवल अपने शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की, उन्होंने सूवा, नासिनू, लौतोका, बा और लम्बासा आदि शहरों में गुरूद्वारों का निर्माण भी किया।

मंदिरों का निर्माण

          फीजी में भारतीयों के आने के बाद मंदिरों का निर्माण शुरू हुआ। पूजा-पाठ के अलावा मंदिरों में विवाह संस्कार, वार्षिक धार्मिक त्योहारों, प्रियजनों की मृत्यु के बाद पारिवारिक प्रार्थना और अन्य सामाजिक आयोजनों के स्थल के रूप में काम में लाए जाते हैं। हिंदू मंदिरों का निर्माण उत्तरी और दक्षिणी भारतीय शैलियों में किया गया है। उदाहरण के लिए, नांदी शहर में श्री शिव सुब्रमण्य हिंदू मंदिर फीजी का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है। इसके साथ-साथ सभी शहरों, कस्बों में मस्जिद, गुरूद्वारा, गिरजाघर भी निर्मित है। ‘हरे राम हरे कृष्णा’ सोसायटी द्वारा स्थापित ‘इस्कॉन’ मंदिर भी श्रद्धा का केंद्र हैं। पंडित या पुजारी जो मंदिरों में काम करते हैं या पूजन करते हैं उनके लिए ब्राह्मण जाति का होना अनिवार्य नहीं है। यद्यपि जाति व्यवस्था अनिवार्य रूप से उन भारतीयों के लिए समाप्त हुई, फिर भी यहाँ के भारतीय धर्म के दायरे में हिंदुओं के साथ बंधे हैं। इंडो-फिजियन समुदाय में, धार्मिक विद्वान, पवित्र पुरुष और मंदिर के पुजारी सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक चिकित्सक हैं। हिंदू धर्म अपनी उपदेशों को पौराणिक कहानियों, गीतों और अनुष्ठानों के माध्यम से संप्रेषित करते हैं। तुलसी की रामचरितमानस का पठन-पाठन और घर या मंदिर में दिव्य चित्रों की पूजा धार्मिक जीवन के महत्वपूर्ण पहलू हैं।

           कुछ मंदिरों में आग और चाकुओं पर नंगे पावँ चलने का उत्सव भी रहता है। फीजी में भारतीयों द्वारा आग पर चलने की क्रिया का भी परीक्षण वार्षिक शुद्धिकरण अनुष्ठान के रूप में किया जाता है जिसे त्रिकुटू कहा जाता है। यह सुवा में मरियमम मंदिर और जुलाई या अगस्त में अन्य स्थानों पर किया जाता है। इस अनुष्ठान के दौरान भक्तगण जलते हुए अंगारों पर चलते हैं। लाल-गर्म कोयलों ​​पर चलने से पहले ट्रेनलियल (तीन-पंजे वाले कांटे) गाल, हाथ, कान, नाक और जीभ में घुसाते हैं। वे भगवान ‘गोविंदा’ का नाम पुकारते  हुए चमकते अंगारों में चल पड़ते हैं।

      कई पीढ़ियों से भारत से अलग होने के कारण, फीजी में मौजूद भारतीय धार्मिक कार्यों में थोड़ा कम रूढ़िवादी है। कम रूढ़िवादी का मतलब कम धार्मिक नहीं है;  बल्कि अधिकांश हिंदू घरों में मंदिर होते हैं जहां परिवार के सदस्य एक साथ पूजा करते हैं। घर पर स्थापित मंदिर में नियमित दिनों पर पूजा की जाती है। कुछ घरों में पूजन का एक अलग कमरा होता है, तो कहीं-कहीं पर एक कबिनेट या फिर शेल्फ में मंदिर स्थापित की होती है। प्रत्येक हिन्दू देवी या देवता अपने साथ अस्त्र-शस्त्र तो रखते ही हैं साथ ही उनका एक ध्वज भी होता है। यह ध्वज उनकी पहचान का प्रतीक माना गया है। तथा कई हिंदू भारतीयों के आँगन में हनुमान का लाल झंडा लहराता है।

श्री सत्यनारायण की पूजा एवं वर्त कथा

    हिंदू परिवारों में भगवान सत्यनारायण की पूजा होती है। श्री सत्यनारायण की पूजा एवं वर्त कथा भगवान नारायण का आशीर्वाद लेने के लिए की जाती है जो भगवान विष्णु के रूपों में से एक है। पूजा के दिन भक्त व्रत का पालन करते है और शाम को हवन पश्चात प्रसाद के साथ उपवास तोड़ते हैं। यह पूजा सुबह के साथ-साथ शाम को भी की जा सकती है। हालांकि लोग नौकरी या कामकाज में व्यस्थ होने के कारण शाम को सगे-संबंधी और मित्रों के साथ सत्यनारायण पूजा करना अधिक उचित समझते हैं।  कई परिवारों में इसी दिन सुबह भगवान हनुमान को रोठ और लाल झंडा भी चढ़ाया जाता है। पंचामृत, पंजिरी (आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाई जाती है), हलवा, खीर, केले और अन्य फलों का भोग प्रसाद के रूप में किया जाता है। पूजा की एक और आवश्यकता यह है कि पूजा की कहानी, जिसे कथा के रूप में भी जाना जाता है, उन लोगों द्वारा सुनी जाती है जो उपवास का पालन कर रहे हैं। सत्यनारायण कथा के अंत में हवन और आरती की जाती है। पंडित तथा भक्तगण साथ आरती करते हैं-जय श्री लक्ष्मी रमणा स्वामी जय लक्ष्मी रमणा। सत्यनारायण स्वामी जन पातक हरणा।। आरती के दौरान भगवान की छवि या देवता के आस-पास कपूर के साथ प्रज्वलित एक छोटी सी अग्नि होती है। आरती के बाद पंचामृत और प्रसाद का सेवन होता है। व्रत पालन करने वाले पंचामृत से व्रत तोड़ने के बाद प्रसाद का सेवन करते हैं। इसके साथ कुछ परिवारों में रामायण पाठ की भी परंपरा है। सतसंग के पश्चात सभी को महाप्रसाद दिया जाता है।

धार्मिक मण्डलियाँ

     फीजी में कई मण्डलियाँ या समूह बनाए गए हैं जो धार्मिक गतिविधियों को संचालित करते हैं। सनातन धर्म, आर्य समाज व संगम संस्थाओं के संगठन के अंतर्गत इन मण्डलियों की स्थापना और गतिविधियों को नियमित रूप से चलाया जाता है। ये धार्मिक मण्डलियाँ भारतीय सांस्कृतिक पुनरुद्धार, गिरमिटियों की सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को बनाए रखने में नई पीढ़ी को शामिल करने का एक इंटरैक्टिव तरीका है। इसके साथ ही यह फीजी में भारतीय सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए धर्म के महत्व के साथ पैतृक संस्कृति और परंपरा के खोए हुए तत्वों के पुनर्गठन का भी प्रयास करती है। इस संबंध में दो मुख्य हिंदू संगठनों- सनातन धर्म प्रतिनीधि सभा और आर्य समाज की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। स्त्री, पुरुष व बाल रामायण मंडलियों द्वारा रामायण के पाठ के साथ-साथ भजन, कीर्तन व आर्थिक, सामाजिक विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श चलता है।

         फीजी भारतीय संस्कृति और धर्म के मामले में उदार और धार्मिक सहिष्णुता की उच्च मिसाल हैं। यहाँ मुख्य भारतीय जाति हिंदू और मुस्लिम हैं। साथ ही अल्पसंख्यक पंजाबी और गुजराती भी गिरमिट काल के उपरान्त फीजी में आकर बस गए हैं, जो अब यहाँ की व्यापार व कार्यक्षेत्र का मजबूत हिस्सा हैं। इंडो-फ़िज़ियन भारत से अपने पूर्वाभास द्वारा लाए गए विभिन्न धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। लेकिन वैश्वीकरण और आधुनिकीकरण का प्रभाव फीजी की भारतीय संस्कृति पर देखा जा सकता है जिस कारण इसमें कई परिवर्तन भी हुए हैं।

          किसी देश की विविध जनसमुदाय का पारस्पारिक संपर्क अथवा विदेशी जातियों से संबंध ऐसी परिस्थिति में अनेक संस्कृतियों का मिलन होता है और प्रायः सभी संस्कृतियाँ एक दूसरे से प्रभावित भी होती हैं अथवा उन सभी संस्कृतियों में अन्य संस्कृतियों का मिश्रण स्वाभाविक है। भारतीय संस्कृति और रहन-सहन का प्रभाव यहाँ के आदिवासी ई-तउकइ जन-जीवन पर भी पड़ा है। जिसके फलस्वरूप वे भी भारतीयों के साथ मिलकर हिंदी में भजन-कीर्तन गाते हैं। रोटी और तरकारी भी ई-तउकइ घरों में पकाया और खाया जाता है। वहीं भारतीयों ने ई-तउकइ के पेय यंगोना का अपने धार्मिक और सांस्कृतिक सभाओं के साथ जोड़ा है तथा उनकी भाषा के कई शब्द फीजी हिंदी भाषा में पाए जाते हैं।

            एक बहुजातिय समाज में शांति, सहभावना और प्रेम का उदाहरण फीजी में देखा जा सकता है जो विभिन्न जातियों के बीच आपसी सांस्कृतिक और सामाजिक आदान प्रदान की बड़ी उपलब्धि है। इस संदर्भ में श्रीमती मनीषा रामरक्खा की कविता की ये पंक्तियों को रेखांकित करती हूँ-

हैं धन्य हमारे पूर्वज वे, जो पूज्यनीय महान थे।
हिंदी की जड़े मजा गए, फीजी के कोने-कोने में।।
थी आस्था अपनी संस्कृति में, भाषा का साथ नहीं छोड़ा।
तुलसी की रामायण लेकर, फीजी में भारत बसा गए।।[vii]


[i] विमलेश कांति वर्मा. 2012. फीजी का सृजनात्मक हिंदी साहित्य, साहित्य अकादेमी।

[ii] राघवानन्द शर्मा, अगर तुम धरती पर आए न होते, संपा-विमलेश कांति वर्मा, प्रवासी भारतीय हिंदी साहित्य, पृष्ठ 56

[iii] Fiji Religions. 2019. Index Mundi https://www.indexmundi.com/fiji/religions.html

[iv] Mayer, Adrian C, 1963, Indians in Fiji, Oxford University Press, London.

[v] John Kelly.1988.  From Holi to Diwali in Fiji: An Essay on Ritual and History, Man, Vol. 23, No. 1, pp. 40-55.

[vi] अहमद अली. 1979. Girmit- A Centenary Anthology 1879-1979. Fiji Indians- A Historical Perspective. Ministry of Information, Fiji. पृष्ठ.11.

[vii] मनीषा रामरक्खा. 2022. फीजी गिरमिट कालीन हिंदू संस्कृति एवं हिंदी साहित्य. फीजी में हिंदी : विविध प्रसंग, सं. राजेश कुमार ‘माँझी’. पृष्ठ 81

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