जीवन एक अहर्निश यात्रा : दिव्या माथुर
-अनिल जोशी
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दिव्या जी वास्तविक अर्थों में एक वैश्विक प्राणी हैं। पिछले कुछ महीनों में लंदन- दिल्ली, मुंबई, मारिशस, लंदन और अब सिंगापुर की एक अनवरत यात्रा। थकान होगी, तबियत ख़राब होगी, सहयोग कम-ज़्यादा होगा, संसाधनों की सीमा होगी पर दीवानगी भी कोई चीज होती है!
उनके बचपन और युवावस्था के दिल्ली पड़ाव में संघर्ष, नौकरी, परिवार की जद्दोजहद, सूफ़ी संस्कार, लेखन की तरफ़ रुझान था। ब्रिटेन में नेहरू केन्द्र- लंदन में कार्यक्रम अधिकारी की ज़िम्मेदारी निभाते हुए वे भाषा और संस्कृति के क्षेत्र में केन्द्रीय स्थिति में आना। डॉ इन्द्र नाथ चौधरी, गोपाल गांधी, गिरीश कर्नाड, पवन वर्मा के सानिध्य में वे संस्कृति के मर्म से गहरे जुड़ी। उधर बच्चों का प्रेम, स्नेह और संस्कारों से पालन करने की चुनौती सँभाली। उन्होंने डॉ लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के प्रोत्साहन से ‘आक्रोश‘ कहानी संग्रह के माध्यम से प्रवासी लेखन की दुनिया में एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में प्रवेश किया। ‘आक्रोश‘ स्त्री विमर्श का प्रतिनिधि कहानी संग्रह था। इसे कमलेश्वर जी का भी आशीर्वाद मिला। फूल अब खिलने लगा था, सुगंध फैलने लगी थी। वर्ष 1999 में ब्रिटेन को विश्व के हिंदी पटल पर स्थापित करने में ब्रिटेन में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन की प्रमुख भूमिका रही। डॉ पद्मेश गुप्त, सुश्री तितिक्षा के साथ वे उस सम्मेलन की धुरी में रही। उनके अगले 10 वर्ष 2000-2010 उत्कृष्ट लेखन और ब्रिटेन में भारतीय संस्कृति और आयोजन के पर्याय के रूप में उभरने के हैं। वे प्रवासी लेखन के क्षेत्र में एक स्थापित नाम बनीं। उस समय संयोग से मैं भी ब्रिटेन में हाई कमीशन में पदस्थ था। टेम्स नदी के तट पर डॉ सत्येन्द्र श्री वास्तव, मोहन राणा, डॉ पद्मेश गुप्त, इस्माइल चुनारा और हम सब मिलते और आत्मीय कवि गोष्ठी करते थे। यहीं वातायन का विचार पनपा और उसका जन्म हुआ। उनके, पद्मेश जी, तितिक्षा जी, निखिल कौशिक के साथ मिलकर हम लोगों ने हिंदी साहित्य और शिक्षण का का खूब काम किया। उधर दिव्या जी की कलम भी गति पकड़ रही थी। एक के बाद एक सात कविता संग्रह – अंतःसलिला, रेत का लिखा, ख्याल तेरा, चंदन पानी, ग्यारह सितंबर, झूठ झूठ और झूठ और बाल कविता संग्रह – सिया सिया। उधर साहित्य की दुनिया में जगह बनाते उनके कहानी संग्रह भी प्रकाशित होते रहे: पंगा, मेड इन इंडिया, हिंदी इन स्वर्ग डाट.काम, 2050 इत्यादि। उनकी कहानियाँ उनकी पहचान बनीं। वे हिंदी की एक श्रेष्ठ कहानीकार के रूप में विश्व भर में पहचानी जाने लगी। ‘पंगा‘ कहानी संग्रह की असाधारण साहित्यिक ऊँचाई को चित्रा मुद्गल जैसी वरिष्ठ साहित्यकारों ने रेखांकित किया। यह नस्ली सद्भाव को चित्रित करती रोमांचक कहानी है। साहित्य में और ऊँचाई हासिल करती हुई ‘शाम भर बातें’, ‘बिन्नी बुआ का बिल्ला’ जैसे उपन्यासों को सामने लाती हैं। ‘शाम भर बातें‘ एक उल्लेखनीय कृति है। यह भारत के बाहर लिखा गया एकमात्र हिंदी व्यंग्य उपन्यास है। वक्रोक्ति वाली व्यंग्य भाषा, विभिन्न बोलियों का मनोरंजक उपयोग, प्रवासी मानसिकता, द्वंद्व और विडबंनाएं, नैतिक सवाल, हँसता-खिलखिलाता शानदार उपन्यास। बहुत चीजें समय से दबती नहीं उभरती हैं। आज ‘शाम भर बातें’ प्रवासी साहित्य की थाती बन गया है। अब उनका लेखन प्रतिमान बनता जा रहा है। दूसरी तरफ अपनी दृष्टि और सक्रियता के चलते वे ब्रिटेन में भारतीय संस्कृति की एक महत्वपूर्ण धुरी के रूप में मान्यता पाती हैं। अंग्रेज़ी और हिंदी भाषाओं पर विशेष अधिकार। फिर कुछ साल आते हैं शारिरिक और मानसिक भयंकर द्वंद्व, परेशानियाँ, सबसे गंभीर बीमारी ओरल-केंसर से थका हुआ शरीर। पर जिजीविषा भरे मन से गहन संघर्ष करती है। वे चुकती नहीं हैं; धीरे-धीरे उबरती हैं। बोल नहीं सकती किंतु बिस्तर पर लेटे लेटे वे बच्चों की कई पुस्तकों के काव्यानुवाद के साथ-साथ कहानी और कविताओं के संग्रहों का सम्पादन किए चलती हैं: आशा, औडिसी, नेटिव सेंटस, वतन की खुशबु, देसी गर्ल्स, इक सफ़र साथ साथ, इत्यादि।
आयु 70 साल हो चुकी है, स्वास्थय भी बहुत अच्छा नहीं, कोई सरकारी पद नहीं, बहुत संसाधन नहीं। पर भाषा और संस्कृति के प्रति दीवानगी का कोई क्या करे? जिस समय लोग सेवानिवृत्ति की तरफ़ चल देते हैं, वे सक्रियता का पर्याय बन गई। कोरोना में दुनिया अपने खोल में घुसी हुई है पर वे वातायन वाट्सएप समूह की स्थापना करती हैं। प्रत्येक शनिवार साहित्य की ऑनलाइन शानदार महफ़िल जमती है। वैश्विक हिंदी परिवार से भी आयोजन की ज़िम्मेदारी से जुड़, प्रति सप्ताह भाषा से जुड़े गुणात्मक आयोजन की ज़िम्मेवारी लेती हैं और दुनिया भर के हिंदी प्रेमियों के आदर और स्नेह का केंद्र बन जाती हैं । आम तौर पर वे किसी कार्यक्रम में केन्द्रीय स्थिति ग्रहण नहीं करती। मुख्य वक्तव्य की ज़िम्मेदारी नहीं लेती। उसका बैकग्राउंड संगीत बन जाती है। जो अपने होने का ढोल नहीं पिटता। उसमें घुल जाता है। पर उनकी उपस्थिति से वह आयोजन संगीतमय और आत्मीय बन जाता है। अब उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य जगत की थाती बनने लगती हैं। उनका उपन्यास ‘तिलिस्म’ साहित्य के तालाब में हिलोरें पैदा कर देता है। एक कथा जिसके तार कई देशों में है, एक कथा जो कई स्वतंत्र उपन्यासों का समुच्च्य है, एक कथा जो पुरूष की भी है और शारिरिक पृवत्तियों और भावनाओं से अलग प्रकार के विशिष्ट व्यक्तियों की भी। जिसमें आज़ादी के बाद से गाँव से क़स्बा और क़स्बे से शहर बनती दिल्ली भी है, और प्रवासियों का शहर लंदन भी। अंध विश्वासों पर पलते लोग भी हैं, स्त्री विमर्श भी और धर्म और जाति से परे की दुनिया भी। जहाँ ड्रग्स का अंधेरा भी और मनुष्य के मनुष्य होने के अस्तित्व संबंधी और मानवता की दिशा पर गहरे सवाल हैं। यह पंगडंडी, मोड़ों, पेचीदा घुमावों, ग्लेशियर, मृत्यु के ख़तरों से होती हुई शिखर तक की यात्रा थी। उनकी अनथक, प्रेरणादायी यात्रा कहीं सराहना, सम्मान और अभिनंदन पा रही थी-
मेरे कविता के उद्धरण को यूँ पढ़ें ।
समय भी क्या चीज़ होता है
दूघ का दूध, पानी का पानी कर देता है
एक आलोचक समय से बड़ा होता है, जवानी में सोचा करते थे गब्बर सिंह (हिंदी साहित्य के गब्बर सिंह – नींद कहाँ है ‘काव्य संग्रह से)

पहले राष्ट्रपति द्वारा पद्मभूषण मोटरी सत्यनारायण सम्मान, दिल्ली, मारिशस में विंश्व रंग के माध्यम से वहाँ के प्रधानमंत्री से सम्मान, और अब डॉ संध्या सिंह के संयोजन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय दक्षिण पूर्व एशिया हिंदी क्षेत्रीय सम्मेलन में मिला सिंगापुर के भारतीय उच्चायुक्त द्वारा अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मान। मैं भाग्यशाली हूँ की इस यात्रा में मुझे भी निकटता से उनकी उपलब्धियों का साक्षी और भागीदार होने का अवसर मिला। उनके साहित्य को समझने और उसकी ख़ुशबू से पूरे वातावरण को सुगंधित और ऊर्जावान होते देखने का, एक बेहद आत्मीय इंसान की आत्मीयता से सरोबार होने का। सिंगापुर के दक्षिण पूर्व एशियाई सम्मेलन में शिखर सम्मान के लिए दिव्या जी का बहुत-बहुत अभिनंदन। उनके स्वस्थ, दीर्घ और प्रसन्न जीवन की बहुत शुभकामनाएँ।
नमस्कार
पचहत्तर वसंत पर मैडम दिव्या जी की दीर्घकालिक साधना स्तुत्य है।अभिनंदन।
अनिल जी का लेख दिव्या जी के बारे मे
बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुती है.आश्चर्य
कई बात है ,वे कभी भी मंच पर नहीं होती
हैं, पर्दे के पीछे से अपनी खुशबु पहला देती है.
शारिरीक और मानसिक चुनौतियों को सहन कर इतने आगे निकलना गौरव का
विषय है.बहुत बहुत बधाई
दिव्या मैम के बारे में जितना कुछ लिखा जाए कम ही लगता है। मैं पिछले पाँच सालों से उनसे जुड़ी हूँ। मैं जब भी उनसे मिलती हूँ हर बार कुछ नया सीखने को मिलता है। दिव्या जी का किसी भी कार्यक्रम में उपस्थित रहना उसकी सफ़लता को बढ़ा देता है। दिव्या मैम बहुत ही शालीन, सकारात्मक और ऊर्जावान है। उनका मेरा आस-पास होना मुझे बहुत ऊर्जावान बनाता है। वे मेरी प्रेरणा स्रोत है। अनिल सर द्वारा दिव्या मैम के बारे में लिखा गया यह लेख बहुत ही सटीक, सुंदर और मार्मिक है। बहुत बहुत बधाई वैश्विक हिंदी परिवार के सदस्यों को🌷🌷