थाईलैंड में भारतीय संस्कृति का प्रभाव

शिखा रस्तोगी

भाषा, संस्कृति प्राण देश के,
इनके रहते राष्ट्र रहेगा।
भारतीय संस्कृति का जयघोष गुंजाकर,
भारत मां का मान बढ़ेगा।।

प्रत्येक राष्ट्र की पहचान उसकी सांस्कृतिक धरोहर,सामाजिक मूल्यों से होती संस्कृति हमारे आंतरिक गुणों का समूह है जिससे हम अपने समाजिक व्यवहार निश्चित करते हैं जैसे हमारा रहन-सहन, आचार-विचार, संस्कार, रीति-रिवाज, मान्यताएं, खान-पान- रहन-सहन, पर्व-त्योहार, धर्म और भाषा। संस्कृति देश तथा समाज का दर्पण होती है। किसी भी समाज की संस्कृति ही उसके भूत एवं वर्तमान क्रियाकलाप को दर्शाती है। वैश्वीकरण के इस युग में सांस्कृतिक आदान-प्रदान की प्रक्रिया अति सहज स्वाभाविक आवश्यक और महत्वपूर्ण हो गई है।

‘संस्कृति’ शब्द मनुष्य की सहज प्रवृत्ति नैसर्गिक शक्तियों उनके परिष्कार का द्योतक। संस्कृति जीवन की विधि है। अपनी भाषा, रहन-सहन, खानपान की विधियों, रीति रिवाज, आदर्श संस्कार धर्म से विकसित होती है। जिससे उनकी आस्था जुड़ी है जो उन्हें पहचान प्रदान करते हैं।भारतीय संस्कृति का जयघोष केवल भारत तक ही सीमित नहीं है वह सात समुद्र पार विश्व के अनेक देशों में अपना परचम फहरा रहा है। संस्कृति राष्ट्र का आईना है। भारतीय संस्कृति की जड़े दक्षिण पूर्वी एशिया की मुसकान की भूमि- थाईलैंड जिसकी पूर्वी सीमा पर लाओस और कंबोडिया, दक्षिणी सीमा पर मलेशिया और पश्चिमी सीमा पर मयमार है। अत्यंत गहरी है।भारत और थाईलैंड का रिश्ता हज़ारों वर्षों से अधिक समय से रहा है, और इससे थाई पर्यावरण में हिंदू संस्कृति का रूपांतर देखने को मिलता है। भारतीय संस्कृति ने धर्म, समारोह, भाषा, साहित्य, त्योहार, वेशभूषा, नृत्य और भोजन समेत थाईलैंड के कई पहलुओं को प्रभावित किया है। थाईलैंड दक्षिण पूर्व एशिया का महत्वपूर्ण सत्तात्मक प्रजातांत्रिक एवं भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत बौद्ध धर्मावलंबी देश है। जिसे सन 1932 के पूर्व श्याम देश कहा जाता था। यह देश कभी किसी देश का उपनिवेश नहीं रहा इसलिए इसका नाम थाईलैंड पड़ा। थाई का अर्थ स्वतंत्र होता है यानी स्वतंत्रता की भूमि। थाईलैंड का प्राचीन नाम श्याम देश है। धर्म और राष्ट्र स्थाई संस्कृति के दो स्तंभ यहाँ की दैनिक जिंदगी का हिस्सा हैं। बौद्ध धर्म यहां का मुख्य धर्म है। गेरुआ वस्त्र पहने भिक्षु, सोने, संगमरमर, पत्थर से बने बुद्ध यहां देखे जा सकते हैं। मंदिर में जाने से पूर्व कपड़ों का विशेष ध्यान रखा जाता है। प्राचीन समय में हिंदू संस्कृति से पूर्ण देश था। आज भी भारतीय संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।

थाईलैंड बौद्ध धर्मावलंबी देश है किंतु इनके रोम-रोम में भारतीय संस्कृति तथा हिंदुत्व रचा बसा है। थाईलैंड में रामराज्य है। राजपरिवार मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अनुवर्ती माना जाता है इसलिए थाईलैंड के महाराजधिराज को आज भी राम कहा जाता है। यहाँ चक्री वंश है जो भगवान  विष्णु के चक्र से लिया है। वर्तमान राजा चक्री राजवंश के दसवें उत्तराधिकारी हैं इसलिए उन्हें राम दशम कहा जाता है। माना जाता है कि राजा भगवान विष्णु के अवतार हैं। थाईलैंड का राष्ट्रीय चिन्ह गरूड़ है। वर्तमान राजा चक्री वंश के 10वें राम हैं। “चक्र” राम या विष्णु के शस्त्र चक्र से लिया गया नाम है। यही कारण है कि थाई लोगों के लिए राजशाही का विशेष महत्व है। राजा उनकी सभ्यता का संरक्षक और धारक होता है। जब तक भगवान राम का अस्तित्व है, तब तक थाई सभ्यता की ज्योति अयुत्थाया भी है, “थाई” वास्तव में एक जातीय समूह नहीं है, यह एक सांस्कृतिक पहचान है। राजा इस पहचान और एकजुटता के आध्यात्मिक पहलू का प्रतिनिधित्व करता है।

थाई के साहित्य और नाटक भारतीय कला और किंवदंतीयों से अत्‍यंत प्रभावित हैं। जैसे, हिंदु महाकाव्य रामायण थाईलैंड में भी उतनी ही लोकप्रिय है, जितनी यह भारत में है। थाईलैंड में प्रसिद्ध ‘रामाकिएन’ यहाँ का राष्ट्रीय ग्रंथ है। भारत में रामायण धर्म ग्रंथ है वही थाईलैंड के लिए उसकी संस्कृति का प्रतिनिधि महाग्रंथ है। इतना ही नहीं थाईलैंड की पुरानी राजधानी अयुथ्या का नाम भी भारतीय आदर्श प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या के आधार पर ही रखा गया था। अयुथ्या की स्थापना राजा यूथोंग द्वारा 1351 में की गयी थी। ऐसा माना जाता है कि राजा यूथोंग (Uthong) लोगों को चेचक के प्रकोप से बचाने के लिए लोपबुरी (Lop Buri) गए थे, और तब उन्होंने अयुथ्या को अपने राज्य की राजधानी घोषित कर दिया था।

यहां की नृत्य शैलियां नाटक से जुड़ी है। जिसमें रामायण का प्रमुख स्थान है। कई थाई पेंटिंग्स में रामायण के रंग दिखाई देते हैं। पेटिंग में हनुमान को लंका के ऊपर उड़ते दिखाया गया। थाई लोगों ने भारतीय रामायण को अपने राष्ट्रीय महाकाव्य के रूप में अपनाया है। थाईलैंड के बैंकॉक में स्थित शाही मंदिर में रामायण के आकर्षक चित्रण शामिल हैं। साथ ही वहाँ पर दशहरा का त्यौहार भी काफी हर्षोल्‍लास के साथ मनाया जाता है। हिंदुओं की तरह थाई में भी विष्णु या नारायण (फ्रा नाराय Phra Nara, और महादेव या शिव में विश्वास रखते हैं और असुरों (असुंस (asuns) को देवों का दुश्‍मन मानकर नापसंद करते है। अयुथ्या में एक भव्य राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। 8 अगस्त 2018 में भूमि पूजन करने के बाद अयुथ्या में राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत कर दी गई। मंदिर का निर्माण चाओ फ्रया (Chao Phraya) नदी के किनारे हो रहा है, जो नदी बैंकॉक के बिल्कुल बीच से होकर गुज़रती है।

1767 में बर्मीज आक्रमणकारियों ने अयुत्थाया को तबाह कर दिया था। इसके बाद थाईलैंड के लोगों ने नई अयुत्थाया की स्थापना की। थाईलैंड की राजधानी को अंग्रेजी में बैंगकॉक (Bangkok) कहते हैं क्योंकि इसका सरकारी नाम इतना बड़ा है कि इसे विश्व का सबसे बडा नाम माना जाता है। बैंकॉक का असली नाम संस्कृत शब्दों से मिल कर बना है।  

क्रुंग देवमहानगर अमररत्नकोसिन्द्र महिन्द्रायुध्या महातिलकभव नवरत्नराजधानी

पुरीरम्य उत्तमराजनिवेशन महास्थान अमरविमान अवतारस्थित्य शक्रदत्तिय विष्णुकर्मप्रसिद्धि” है।

यह किसी भी शहर का सबसे बड़ा नाम है थाई भाषा में इस पूरे नाम में कुल 163 अक्षरों का प्रयोग किया गया हैl इस नाम की एक और विशेषता है इसे बोला नहीं बल्कि गाकर कहा जाता हैl कुछ लोग आसानी के लिए इसे ‘महेंद्र अयोध्या’ भी कहते है अर्थात इंद्र द्वारा निर्मित महान अयोध्याl थाईलैंड के जितने भी राम (राजा) हुए हैं सभी इसी अयोध्या में रहते आये हैंl

असली रामराज्य थाईलैंड में है- बौद्ध होने के बावजूद थाईलैंड के लोग अपने राजा को राम का वंशज होने से विष्णु का अवतार मानते हैं इसलिए थाईलैंड में एक तरह से राम राज्य हैl वहाँ के राजा को भगवान श्रीराम का वंशज माना जाता है। थाईलैंड में संवैधानिक लोकतंत्र की स्थापना 1932 में हुई। भगवान राम के वंशजों की यह स्थिति है कि उन्हें निजी अथवा सार्वजनिक तौर पर कभी भी विवाद या आलोचना के घेरे में नहीं लाया जा सकता है वे पूजनीय हैं। थाई शाही परिवार के सदस्यों के सम्मुख थाई जनता उनके सम्मानार्थ सीधे खड़ी नहीं हो सकती है बल्कि उन्हें झुककर खडे़ होना पड़ता है। थाईलैंड का राष्ट्रीय ग्रन्थ रामायण हैl जिसे थाई भाषा में ‘रामाकियन’ कहते हैंl जिसका अर्थ राम-कीर्ति होता है। स्कूलों के पाठ्यक्रम में रामायण पढ़ाई जाती है थाईलैंड में ‘रामाकियन’ जो आज चलन में है उसको अलग-अलग समय में तेरहवी सदी से पंद्रहवी सदी में लिखा गया था  परन्तु थाईलैंड की लोक कथाओं में और कला में इसका मंचन चौदहवी सदी से शुरू हुआ था। इस ग्रन्थ की मूल प्रति सन 1767 में बैकॉक के राजप्रसाद में लगी आग में नष्ट हो गयी थी। थाई लैंड में ‘‘रामाकियन’’ पर आधारित नाटक और कठपुतलियों का प्रदर्शन देखना धार्मिक कार्य माना जाता हैl रामिकिन्ने के मुख्य पात्रों के नाम इस प्रकार हैं- राम (राम), सीदा (सीता), लक (लक्ष्मण),  पाली (बाली),थोत्स्रोत (दशरथ), सुक्रीप (सुग्रीव), ओन्कोट (अंगद), खोम्पून (जाम्बवन्त), बिपेक (विभीषण), तोसाकन्थ (दशकण्ठ) रावण, सदायु (जटायु), सुपन मच्छा (शूर्पणखा), मारित (मारीच), इन्द्रचित (इंद्रजीत) मेघनाद, फ्र पाई (वायुदेव), फरयु नदी, थाई लोक नाम (सरयू) सभी नाम भारतीय नामो से मिलते हुए हैं। थाईलैंड में हिन्दू देवी-देवता थाईलैंड में बौद्ध बहुसंख्यक और हिन्दू अल्प संख्यक हैंl थाईलैंड में बौद्ध भी जिन हिन्दू देवताओं की पूजा करते है।

उनके नाम इस प्रकार हैं-
1. ईसुअन (ईश्वन) ईश्वर शिव,  2. नाराइ (नारायण) विष्णु,  3. फ्रॉम (ब्रह्म) ब्रह्मा, 4.  इन (इंद्र), 5. आथित (आदित्य) सूर्य,  6. पाय (पवन) वायु

ईस्वी 1285 में लिखा एक शिलालेख मिला है जो आज भी बैंकाक के राष्ट्रीय संग्राहलय में प्रदर्शित किया हुआ है। थाईलैंड में लोक किद्वंतियों के अनुसार राम जिसे वो Phra Ram लिखते है राम के भाई लक्ष्मण का जिक्र मिलता है। इनकी कथा में दो अन्य भाइयों का जिक्र नहीं है। पंद्रहवी सदी के रिकॉर्ड के मुताबिक़ राजा राम ने १२८३ ईस्वी में ही लोंग्का यानि लंका के राजा बोर्रोम तराई लोखंत का अंत कर अयोध्या पे कब्ज़ा किया था। लोंग्का या लंग्कसुम के साम्राज्य का विस्तार काफी बड़ा था।इनकी अयोध्या के साथ लड़ाई होने के आलेख मिलते है।थाई आलेख में इसे दानवों का राज्य बताया गया था। जिसके राजा थ्र्म्न यानि रावण थे। थर्मन ने ही राजा राम के पिता थोत्स्रोत यानि बोले तो दसरथ को हराया था। हारने के बाद थोत्सरोत सुखोध्या छोड़ कर विष्णुलोक चले गए और वहां वो एक मंदिर में पुजारी बन कर रहे थे।जब थोत्सरोत का पता थर्मन को लगा तो उसने विष्णुलोक के राजा को सन्देश भिजवाया जिसके बाद वो अपने परिवार सहित किष्किन्धा की तरफ चले गए।जहाँ से राजा राम ने ही १२८३ में राज्य को जीता और अयोध्या की स्थापना की थी।

थाईलैंड का राष्ट्रीय चिन्ह गरुड़, यहां तक कि थाई संसद के सामने गरुड़ बना हुआ है। गणेश यहां घर-घर में पूजे जाते हैं और थाईलैंड के फाइनेंस डिपार्टमेंट में भगवान गणेश की फोटो है। यहां जगह-जगह ब्रह्मा जी के मंदिर प्राप्त होते हैं। थाईलैंड में लक्ष्मी को धन की देवी, सरस्वती को शिक्षा की देवी के रूप में भी पूजा जाता है। यहां के राजा आदिकाल से स्वयं को भगवान राम और विष्णु का भक्त मानते आए हैं इसलिए थाईलैंड में भगवान विष्णु की प्रतिमा भी स्थानों पर दिखाई देती है। यहां के मंदिरों में विष्णु, ब्रह्मा, रुद्र, इंद्रदेव की मूर्ति होना बहुत ही आम बात है। यहां घर-घर में रामायण पढ़ी जाती है। थाईलैंड की रामलीला जगत भर में प्रसिद्ध है। आधुनिक समय में थाईलैंड बौद्ध देश है लेकिन ऐसे कई मंदिर हैं जहां बौद्ध और हिंदू धर्म से जुड़े देवी-देवताओं की मूर्ति एक साथ रखी मिल जाएगी जैसे गणेश, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, दुर्गा, लक्ष्मी आदि। यहाँ ऐसे देवता भी मिलेगे जो भारत के सामाजिक धार्मिक परिदृश्य पर पूजे नहीं जाते जैसे इंद्र और ब्रह्मा की पूजा थाईलैंड में होती है। ब्रह्मा के मंदिर हर कार्यालय के बाहर देखे जा सकते हैं।

सुवर्णभूमि हवाई अड्डा-थाईलैंड की राजधानी के हवाई अड्डे का नाम सुवर्णभूमि हैl यह आकार के मुताबिक दुनिया का दूसरे नंबर का एयर पोर्ट है। इसका क्षेत्रफल 563,000 स्क्वेअर मीटर है। इसके स्वागत हाल के अंदर समुद्र मंथन का दृश्य बना हुआ हैl पौराणिक कथा के अनुसार देवोँ और असुरों ने अमृत निकालने के लिए समुद्र का मंथन किया था। इसके लिए रस्सी के लिए वासुकि नाग, मथानी के लिए मेरु पर्वत का प्रयोग किया थाl नाग के फन की तरफ असुर और पूँछ की तरफ देवता थेl मथानी को स्थिर रखने के लिए कच्छप के रूप में विष्णु थेl जो भी व्यक्ति इस ऐयर पोर्ट के हॉल जाता है, वह यह दृश्य देख कर मन्त्र मुग्ध हो जाता है। थाईलैंड में भारतीय संस्कृति को सुवासित करती है जो उसे विशेष बनाती है, वो ये कि मंदिरों में आने वाले 95% श्रद्धालु वास्तव में थाई मूल के बौद्ध होते हैं। वे हिंदू देवी देवताओं के प्रति उसी तरह का समर्पण दिखाते हैं जैसा अन्य हिंदू भक्त दिखाते हैं। उनकी पूजा भी हिंदुओं जैसी ही होती है- जैसे अगरबत्ती, दीपक जलाना और देवताओं को माला चढ़ाना। थाईलैंड के ज्यादातर लोग हिंदू धर्म को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा मानते हैं। कई थाई लोग पुजारियों से उनके लिए हिंदू रीति रिवाजों के साथ पूजा करने को कहते हैं।

मरिंमन मंदिर, बैंकॉक में दक्षिण भारतीय वास्तुकला से बनाया गया पहला मंदिर है वा।  इसे 1879 में तमिल हिंदू आप्रवासी वैथी पदयाची ने बनवाया था। विश्व की सबसे ऊंची भगवान गणेश की प्रतिमा थाईलैंड में है।विष्णु मंदिर,देव मंदिर शिव मंदिर,गणेश पार्क, गीता आश्रम आदि मंदिरों में थाई लोग भारतीय त्योहरो, पूजा पाठ में बढचढकर हिस्सा लेते है।दुर्गा पूजा, गणेश चतुर्थी, महाशिवरात्रि, दशहरा और दीवाली मुख्य है।थाईलैंड में हिंदू धर्म अल्पसंख्यक धर्म है, जिसके बाद इसकी आबादी का 0।03% है। ]बौद्ध बहुल राष्ट्र होने के बावजूद, थाईलैंड में बहुत मजबूत हिंदू प्रभाव है। लोकप्रिय थाई महाकाव्य रामकियन बौद्ध दशरथ जातक पर आधारित है, जो हिंदू महाकाव्य रामायण का थाई संस्करण है।  थाईलैंड यानी पहले के स्याम देश में 95 प्रतिशत जनसंख्या बौद्ध धर्मावलंबियों की है परंतु रीति-रिवाज आज भी हिंदू धर्म जैसे है।

पर्व और त्योहार-थाईलैंड देखने में बौद्ध दिखाई देता है परंतु यदि जन-जन के हृदय की गहराइयों में जाए तो अनुभव में यह भारतीय वैदिक हिंदू दिखाई देगा इसलिए जब हम भारतीय संस्कृति या दर्शन की बात करते हैं तो वह ब्राह्मण संस्कृति या दर्शन राष्ट्रीय स्तर पर कही जाती है। भारतीय संस्कृति एवं दर्शन की गहनता यहां सर्वत्र सामान्य थाई के स्वभाव में देखने को मिलती है जैसे वर्षा के आगमन से पूर्व खेतों में धान की बुवाई से ठीक पहले ग्रैंड पैलेस के समीप सनम लुआंग ग्राउंड में थाई ब्राह्मण द्वारा मुहूर्त निकलवा कर हल चलाने का रंगारंग पारंपरिक उत्सव मनाया जाता है।  जिसमें थाई नरेश भी सम्मिलित होते हैं। इस महोत्सव के बाद ही थाईलैंड में कृषि कार्य प्रारंभ किया जाता है।

 थाईलैंड में नया साल सॉन्गकरन बारिश के मौसम से ठीक पहले 13 से 15 अप्रैल को मनाया जाता है। थाई बौद्ध नववर्ष जिसे संक्रांति कहा जाता है। सोंगकरान संस्कृत के शब्द संक्रांति से आता है जिसका अर्थ ज्योतिषीय मार्ग से होता है नया साल उसी समय होता है जब भारत समेत कई देशों में नए साल का जश्न मनाया जाता है पानी से स्नान करना और त्वचा पर टेलकम लगाना इसकी जड़े प्राचीन भारत से मिलती हैं। यह एक मौसम से दूसरे मौसम में संक्रमण का जश्न मनाने बारिश के मौसम को गरमी के मौसम से मिलना है। इसे सामान्य सामूहिक उत्सव में मनाते हैं। तैयारी पहले से शुरू हो जाती है विशेष बोध के अनुसार बहुत सारे भोजन तैयार किए जाते हैं जिनमें से कुछ मंदिर में दीक्षा को दिया जाता है। घरों और अपार्टमेंट में उस सबसे पहले सफाई करते हैं पुरानी प्रचलित चीजों को फेंक देते हैं। यह हमारी होली जैसा त्योहार है।समारोह 13 अप्रैल से शुरू होता है। लोग प्रार्थना करते हैं। अनुष्ठान करते हैं। अपने प्रिय जनों के स्वास्थ्य, सुख, समृद्धि के लिए शक्तियां मांगते हैं। लोग सड़कों पर समूह में इकट्ठा होते हैं पानी, बरफ, मुलतानी मिट्टी से सराबोर कर देते हैं। टेलकम पाउडर भी लगाते हैं। समारोह आयोजित किए जाते हैं। हर जगह उत्साह और मस्ती की भावना होती है। अप्रैल के मध्य में थाईलैंड में गर्मी होती है इसलिए स्थानीय लोग पानी में बर्फ डालते हैं लोगों का मानना है कि ये त्योहार सभी गंदगी और नकारात्मकता दूर करता है बुरीआत्मा से बचाता है। यह शरीर की शुद्धि और आत्मा के पुनरुत्थान का त्योहार है ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति जितना अधिक मुलतानी मिट्टी पाउडर से सना होता है उसकी सफाई उतनी ही अच्छी होती है जिसका अर्थ है वह नए साल में सफल होगा उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी उसकी सभी योजनाएं पूरी हो जाएगी और पूरे साल अच्छी किस्मत आएगी। थाई कई अन्य अनुष्ठान करते हैं और परंपराओं को सख्ती से पालन करते हैं परिवारों को इकट्ठा करते हैं जिसे प्रेम और श्रद्धा का अवकाश माना जाता है पहला दिन -जब हर कोई पुराने साल को अलविदा कहता है। पुरानी चीजों को फेंकने और जलाने से संबंधित है ऐसा माना जाता है कि घर से सारी नकारात्मकता चली जाती है अनुष्ठान किए जाते हैं मंदिरों में जाते हैं प्रतियोगिताएं होती हैं मंदिर के बाद घर लौटते हुए बुद्ध की मूर्ति पर पानी चढ़ाते हैं एक यह एक प्रतीक है जो बुरी आत्माओं से बचाता है पक्षियों, कछुआ, मछली को छोड़ा जाता है यह जो विस्तार का संकेत माना जाता है छुट्टी का आखरी दिन अपने पुराने रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं

लोई क्रथोंग पर्व  थाईलैंड के राज्य भर में और निकटवर्ती दक्षिण-पश्चिमी ताई संस्कृतियों के द्वारा प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला एक त्योहार है। पर्व के नाम का अनुवाद “एक टोकरी तैरने के लिए” के रूप में किया जा सकता है, जो की क्रथोंग बनाने की परंपरा से आती है। कई थाई क्रथोंग का उपयोग गंगा नदी को धन्यवाद देने के लिए करते हैं। लोई क्रथॉन्ग पारंपरिक थाई चंद्र कैलेंडर में 12 वें महीने की पूर्णिमा की शाम को होती है, इस प्रकार हर साल त्योहार की तारीख बदल जाती है। पश्चिमी कैलेंडर में यह आमतौर पर नवंबर के महीने में मनाया जाता है। थाईलैंड में इस त्योहार को “लोई क्रथोंग” के रूप में जाना जाता है। मोमबत्ती प्रकाश के साथ बुदध की वंदना करते है। क्रथोग अशुद्धियों को दूर करने का प्रतीक है। इसमें नाखून और बाल रखते हैं। माना जाता है कि यह हमारे नकारात्मक विचार को दूर करने का प्रतीक है। थाई लोग पानी की देवी हिंदू देवी गंगा। फ्रॉ माई को धन्यवाद देने के लिए क्रथोंग का उपयोग करते हैं।

भाषा- भाषा मनुष्य के संपूर्ण व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली साधन है।मानव के संप्रेषण एवं अभिव्यक्ति का प्रमुख आधार भाषा ही है।जो भाषा जितनी खुली होती है उतनी ही विकसित होती है।स्वच्छ सी आकाश रूपी विश्व में चांद रूपी हिंदी आती है तो उसके विकसित होने का आभास स्वत ही हो जाता है हमारी मातृभाषा हमारी और हमारे देश की पहचान आन बान शान है। हिंदी के बढ़ते हुए अंतरराष्ट्रीय वर्चस्व को देखते हुए हम कह सकते हैं कि विश्व फलक पर हिंदी अपनी सुगंध चहुँ ओर फैला रही है।सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की सशक्त माध्यम भाषा है सांस्कृतिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में भाषा की भूमिका सर्वदा सार्थक और सकारात्मक रही है  थाई के लोगों में भारतीय संस्कृति के प्रति जिज्ञासा और आकर्षण अत्यधिक है। वर्तमान में डिजिटल क्रांति के कारण अपने देश में रहते हुए भी यहां के निवासी भारतीय संस्कृति के सुंदर व गरिमा में पहलुओं को देखते हैं जिससे भारत दर्शन कि उनकी लालसा और प्रबल हो जाती है हिंदी भाषा दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंध को प्रगाढ़ बनाने और पर्यटन को बढ़ावा देने की दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण है संस्कृति की संवाहिका हिंदी भाषा महत्वपूर्ण है।मेरे लिए गौरव की बात है कि हिंदी भाषा का प्रसार थाईलैंड में हो रहा है और भारत में सांस्कृतिक समानताएं हैं कि जिस वजह से हिंदी भाषा को सीखने की ललक युवाओं में अधिक है। थाईलैंड में हिंदी समृद्ध है युवाओं के लिए रोजगार का माध्यम है। पर्यटन के लिहाज से प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में पर्यटक में भारत से आते हैं इस दौरान एक दूसरे से संवाद बनाने और संस्कृति को समझने के लिए हिंदी भाषा एवं भूमिका निभाती है समाजिक कार्यों से जुड़ा होने की वजह से लोगों को भी इस भाषा को स्वीकार करने की अलग जगह दी है।

आज के चेन्नई से अगर थाईलैंड के दक्षिणी हिस्से में स्थित इसकी राजधानी बैंकॉक का समुद्री रास्ता देखें तो ये एक सीधी रेखा मालूम होती है। जाहिर है कारोबारियों ने दक्षिण पूर्व एशिया का रुख किया और फिर पल्लव स्क्रिप्ट ने ही बालीनीज, बेबेइन, जावानीज, कावी, खमेर, लान्ना, लाओ, मोन और बर्मीज भाषा को भी जन्म दिया।थाई लिपि और कई दूसरी दक्षिण एशियाई लिपियां पुरानी तमिल पल्लव लिपि की ही शाखा से निकली भाषाएं है।इसीलिए आज भी थाई और पुरानी तमिल लिपियों के बीच समानताएं मिलती हैं।खमेर स्क्रिप्ट (कम्बोडियन स्क्रिप्ट) पुरानी तमिल पल्लव स्क्रिप्ट से निकली है और थाई स्क्रिप्ट, खमेर स्क्रिप्ट से निकली है।थाई भाषा दक्षिण भारतीय पल्लव वर्णमाला से ली गई लिपि में लिखी गई है।

तमिल ब्राह्मी स्क्रिप्ट> तमिल पल्लव स्क्रिप्ट> खमेर स्क्रिप्ट> थाई स्क्रिप्ट

थाईलैंड के लोगों के लिए संस्कृत एक पवित्र भाषा है। दरअसल, पल्लव स्क्रिप्ट (Pallav Script) का इस्तेमाल संस्कृत के ग्रंथों, तांबे की प्लेटों और हिंदू मंदिरों और मठों के पत्थरों पर शिलालेख लिखने के लिए किया गया था और इसी वजह से संस्कृत से भी इसका जुड़ाव हो गया। थाई राजाओं ने हमेशा संस्कृत नाम या पदवी को अपनाया है। जैसे महात्मार्चा, रमातीबोधी, रामरचातीरथ। 1782 से रामा पदवी चली आ रही है। पिछले 80 सालों में सामान्य थाई लोगों ने भी संस्कृत से लगने वाले नामों को अपना लिया है। थाईलैंड के निवासी पहले ये समझते थे कि संस्कृत नाम केवल राजशाही के लिए होने चाहिए। भाषा का जुड़ाव होता है संस्कृति से और संस्कृति जुड़ी होती है धर्म से। भाषा की इसी डोर ने छाप छोड़ी थाईलैंड सहित दक्षिण पूर्व एशिया पर और भाषा के रास्ते ही आगमन हुआ भारतीय संस्कृति का। रामायण और राम थाईलैंड की संस्कृति में रच बस गए है। राम और रामायण थाईलैंड में दशरथ जातक कथा (बौद्ध रामायण) के जरिए पहुंचा। रामायण के बौद्ध संस्करण को दशरथ जातक के रूप में जाना जाता है।

भारतीय प्रथाएं मिलती हैं जैसे थाईलैंड के राजा को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, कठपुतली के खेल, रंगमंच पर रामायण- महाभारत की कथाओं का नियमित मंचन होता है। समुंद्र मंथन का दृश्य, थाईलैंड की राजधानी का नाम आदि थाई लोग हिंदुओं की तरह पूर्व जन्म में विश्वास करते है। विवाह में पारंपरिक हिंदू विवाह की तरह कुंडली का मिलान होता है। मृत्यु के बाद शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है। राख का एक हिस्सा नदी में विसर्जित कर दिया जाता है शेष एक स्तूप में रखा जाता है।हर भूखंड पर भूमि देवता का मंदिर होता है। आत्मा पर विश्वास करते हैं। पितृ पर विश्वास करते हैं। छिपकली का बोलना अशुभ मानते है। मधुमक्खी छत्ता बना शुभ मानते हैं। पूरब की ओर सिर करके सोते हैं। बच्चों का मुंडन शिक्षा तथा वैवाहिक संस्कार भी भारतीय परंपरा की तरह होते हैं।  संयुक्त परिवार प्रथा है। पेड़-पोधो की पूजा करते हैं जैसे-पीपल थाईलैंड में थाई लोगो ने भारतीय संस्कृति एवं धर्म को आत्मसात कर उनके साथ गहरा तादात्मय स्थापित कर लिया है। थाईलैंड में भारतीय संस्कृति इस तरह घुल मिल गई है कि विभाजक रेखा खींचना संभव नहीं है।

शब्द- थाईलैंड बैंकॉक शहर के हवाई अड्डे पर उतरते हैं तो आपको उसका नाम जानकर आश्चर्य होगा नाम है स्वर्ण भूमि, शहर में आते है तो आपको अशोक, श्रीराम स्ट्रीट,चान, सीदा,साधु स्ट्रीट जैसे साइन बोर्ड मिलेंगे देवी देवता के नाम जैसे नारायण, विघ्नेश, एरावन, उमा, आदि बहुत सारे शब्द हमारे हिंदी भाषा से मिलते हैं जैसे विथ्यालय, रितु, विद्युत, नगर, नमस्कान, मीत्त, नायोक सप्ताह के नाम वान चान, वान अंगान, वान पुत, महीनों के नाम राशियों पर जैसे मकराकोम, कुफापान, मीनाकोम, मेसायोन आदि। विश्वविद्यालय नाम चूडालकरन, धमाखास्त्र, कसासात, राजमंगला, पोडित आदि। बैंक-को तनाखान, अस्पताल-रोंग फया वान, स्टेशन-स्थानी लोट फाय आदि। विदयालयो के पाठ्यक्रम में रामायण पढ़ाई जाती है। भारतीय संस्कृति के सूचक है।

थाईलैंड में दो थाई ब्राह्मण समुदाय हैं- ब्रह्म लुआंग (रॉयल ब्राह्मण) और ब्रह्म चाओ बान (लोक ब्राह्मण)। सभी थाई ब्राह्मण धर्मों से बौद्ध हैं, लेकिन ये हिंदू देवताओं की पूजा करते हैं। ब्रह्म लुआंग (रॉयल ब्राह्मण) मुख्य रूप से थाई राजा के शाही समारोह करते हैं। जिसमें राजा का राज्याभिषेक भी शामिल होता है। इनकी जड़ें भारत के तमिलनाडु से जुड़ती हैं। वहीं, ब्रह्म चाओ बान वे ब्राह्मण समुदाय हैं, जो पूजा पाठ नहीं करते हैं। रामायण के पात्रों का अपना विशेष रंग होता है जैसे राम का हरा, लक्ष्मण का  सुनहरा  आदि रामायण का प्रभाव ललित कला में देख सकते हैं। राज मंदिर की दीवारो पर रामायण की कथा के चित्र हैं। रामलीला को खोन नृत्य द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। मुखौटे नृत्य की प्रस्तुति बहुत सुंदर होती है।यह भरतनाटयम से कुछ मिलता है। थाई परिधान भारतीय परिधान से मिलता है। महिला की साडी तीन भाग में  बंटी होती है और पुरूष की धोती भारतीय जैसी है। जो सिली होती है। अभिवादन हाथ जोडकर किया जाता है।

भगवान बुद्ध सेतु हैं। जिन्होंने थाईलैंड को भारतीय संस्कृति से जोड़ दिया है। जिसके मूल में भारतीय दर्शन है, व्यवहार में बुद्ध हैं और संस्कृति भी काफी हद तक भारत जैसी है। थाई लोग भारत की तरह झुकते हैं, नमन करते हैं और सामने वाले व्यक्ति को अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। थाईलैंड में सेतु का काम कुछ हिंदू देवी-देवता भी करते हैं। जैसे हमारे यहां हाथी को भगवान गणेश से जोड़कर देखते हैं, थाईलैंड की भी परंपरा कुछ ऐसी है। आधुनिक बाजारीकरण, सिनेमा, रोजगार, बढता पर्यटन व्यवसाय, अनुवाद की जिज्ञासा, योग और भारत की प्राकृतिक चिकित्सा, भारतीय त्योहार, भारतीय वेशभूषा, भारतीय भोजन मुख्य रोटी, भारत की प्राचीन वास्तुकला, भारत की विविधता में एकता, अतिथि देवो भव थाईलैंड को भारतीय संस्कृति से जोडते हैं।

थाईलैड में भारतीय संस्कृति सुस्पष्ट दिखाई देती है। थाईलोगो ने भारतीय संस्कृति को आत्मसात कर गहरा तादात्मय स्थापित कर लिया है। थाईलैंड में भारतीय संस्कृति का प्रभाव बहुआयामी है। धर्म, कला, साहित्य, संगीत, नृत्य, भाषा और भोजन में भारतीय संस्कृति की गहरी छाप है। भारतीय संस्कृति और थाईलैंड की स्थानीय संस्कृति के बीच यह सांस्कृतिक संवाद दोनों देशों के बीच सदियों से चले आ रहे मजबूत संबंधों का प्रतीक है। थाईलैंड में भारतीय संस्कृति का यह प्रसार इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति विश्व के विभिन्न कोनों में अपनी विशेष पहचान बनाए रखती है और स्थानीय संस्कृतियों के साथ मिलकर एक नई सांस्कृतिक धरोहर का निर्माण करती है।

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