श्री लंका में हिंदी की दशा और दिशा
-अतिला कोतलावल
हिंदी मात्र एक भाषा नहीं, बल्कि भारत की साझी विरासत और महान् संस्कृति को विश्व भर में जन-जन तक पहुँचानेवाली समर्थ संवाहिका भी है। हिंदी भाषा की संगीतात्मकता, मधुरता व रोचकता विदेशी लोगों को भी अपनी ओर आकर्षित करके रखने की कम क्षमता नहीं रखती। हिंदी भाषा वही है जो श्री लंका के लोगों के बीच आत्मीयता के मधुर संबंध स्थापित कर उन्हें भारतीय संस्कृति से जोड़े रखने की अहम भूमिका निभाती है।
पहले ऐतिहासिक परिदृश्य में देखा जाए तो श्री लंका वासियों का हिंदी भाषा के प्रति प्रेम कोई आज से नहीं है। श्री लंका में हिन्दी के अतीत को ढूँढना बहुत आसान काम भी नहीं है। उसका मुख्य कारण यह है कि श्री लंका एक अहिंदी देश है जहाँ सिंहली, तमिल तथा अंग्रेज़ी का बोलबाला है। ऐसे होते हुए भी भारत तथा श्री लंका के आपसी संबंधों को देखा जाए तो उनका एक लंबा अतीत है। प्राचीन काल से ही दोनों देश सामाजिक, सांस्कृतिक अथवा आर्थिक आदान प्रदान के कारण एक दूसरे से एक समीप संबंध रखते रहे हैं। इतना ही नहीं, जहाँ तक दोनों देशों की भाषाओं की बात आती है सिंहली और हिन्दी का भी काफ़ी लंबा अतीत है जो प्राचीन काल से चला आ रहा है। दोनों भाषाएँ आर्य भाषा परिवार की हैं। दोनों भाषाओं की लिपियों का स्रोत भी एक ही ब्राह्मी लिपि है। दोनों भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा है। अतः व्याकरणिक संरचना और शब्द–भंडार भी इन्हें संस्कृत भाषा से विरासत में मिला है। इसलिए दोनों भाषाओँ के शब्द, वाक्य रचना में काफी समानताएँ हैं। यही कारण है कि हिन्दी भाषा सिंहलियों को अक्सर आत्मीय लगती है और जहाँ तक दोनों देशों की संस्कृतियों की बात आती है तो श्री लंका की संस्कृति और भारत की संस्कृति में बहुत-सी समानताएँ हैं। इसलिए भारतीय संस्कृति यहाँ के लोगों को बहुत आत्मीय लगती है। इसलिए भारतीय संस्कृति और भाषा दोनों के प्रति असीम प्रेम भाव उनके मन में अक्सर विद्यमान है।
श्री लंका में हिंदी की लोकप्रियता के कई कारण हैं। अतीत से ही श्री लंका की जनता का हिन्दी के प्रति मुख्य आकर्षण हिन्दी फिल्में और हिन्दी गीत ही रहा है। यही कारण है कि श्रीलंका में हिन्दी भाषा बहुत लोकप्रिय बनी। रेडियो सीलोन (राष्ट्रीय रेडियो )यानी श्री लंका ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन द्वारा हिन्दी गाने बहुत पहले से प्रचुर मात्रा में प्रसारित होने लगे। हिन्दी भाषा के प्रति जनता में प्रेम जागृत करने में रेडियो सीलोन की बहुत बड़ी भूमिका है। हिन्दी गानों से ओतप्रोत होकर इनके अर्थ और भाव को समझने के लिए लोग हिन्दी सीखने की ओर प्रेरित होने लगे। हिन्दी फिल्मों और गीतों पर मोहित होकर यहाँ के कुछ बुद्धिजीवी भारत गये और हिन्दी पढ़कर श्री लंका वापस लौटे। उन्हीं के प्रयासों से हिन्दी भाषा की शिक्षा अनौपचारिक रूप से आरंभ हुई। जगह –जगह पर हिन्दी की कई संस्थाएँ खुलीं। उन संस्थाओं में यहाँ के हिन्दी फ़िल्मों के दीवाने बोलचाल की हिन्दी पढ़ने लगे और मधुर हिन्दी भाषा उनके लिए मनोरंजन का एक साधन बना। यही नहीं, श्री लंका के कुछ समाचार पत्रों में सिंहली में अर्थ सहित हिन्दी गाने और हिन्दी के पाठ भी सिलसिलेवार प्रकाशित होने लगे। इसके कारण पूरे देश के हिन्दी चाहनेवालों को अनौपचारिक रूप से हिन्दी पढ़ने का अवसर मिलने लगा। हिंदी फ़िल्मी गीत यहाँ इतने लोकप्रिय हैं कि चाहे पुराने हों या नये, सभी गायकों के गाने आज भी सब की जुबां पर हैं। युवा वर्ग का हिंदी के प्रति आकर्षण तथा सबसे बड़ी प्रेरणा सिनेमा के कारण ही है।आजकल बड़े पैमाने पर हिंदी धारावाहिक भी पसंद किये जा रहे हैं। उसके अतिरिक्त धार्मिक यात्रा के कारण बोध गया, बिहार, लखनऊ, साँची आदि स्थानों की यात्रा के प्रयोजन से भी हिंदी सीखी जाती है। मिडल ईस्ट में गये हुए लोग वहाँ पर भारतीय लोगों के साथ प्रचुर मात्रा में संपर्क बनाए रखने के कारण हिंदी सीख लेते हैं और वापस आने पर हिंदी सीखने की इच्छा प्रकट करते हैं। चिकित्सा के कारण और शास्त्रीय नृत्य संगीत के कारण भी हिंदी की लोकप्रियता यहाँ बरकरार है। हिंदी की लोकप्रियता में व्यापार, संवाद और पर्यटन भी प्रमुख है। आजकल योग भी हिंदी सीखने का एक मुख्य कारण बनता जा रहा है। श्री लंका के कई प्रदेशों में योग प्रशिक्षण संस्थाएँ खुल गयी हैं, जिसके कारण भारत के प्रति ही नहीं, हिंदी भाषा के प्रति भी लोगों का श्रद्धा भाव उमड़ता हुआ दिखाई देता है।
उपर्युक्त सभी तथ्यों की परिस्थितियों में भी हमारे पास औपचारिक हिंदी शिक्षण की बहुत ही सीमित व्यवस्था रही है। उनमें प्रमुख व्यवस्था प्रत्यक्ष शिक्षण व्यवस्था (Direct Teaching Method) की थी। आरंभिक काल में भारत में चेन्नई स्थित दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा एवं वर्धा स्थित राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा संचालित हिंदी परीक्षाओं में बैठने का अवसर विद्यार्थियों को मिला। बहुत लोग परीक्षाओं को देने मात्र के लिए हिंदी सीखते थे। इस कालावधि में विश्वविद्यालयों में, परिवेनों ( बौद्ध भिक्षु शिक्षण केंद्रों ) में, आयुर्वेदिक संस्थाओं में हिंदी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती थी। कक्षा शिक्षण (Class Room Teaching) के दौरान बहुत शिक्षकों ने इस प्रक्रिया को रोचक बनाने के लिए हिंदी फिल्मों का, फ़िल्मी संवादों का, फ़िल्मी गीतों का उपयोग अवश्य किया। परंतु पुस्तकें, शिक्षण सामग्रियों की कमी के कारण अक्सर शिक्षकों को चुनौतियों से जूझना पड़ता है।
20 वीं सदी तक आते-आते हिंदी शिक्षण क्षेत्र में एक नया परिदृश्य बदला। भाषा विज्ञान की दृष्टि से भी भाषा शिक्षण की बात तब आयी जब केंद्रीय हिंदी संस्थान के सहयोग से बने पाठ्यक्रम श्री लंका में लागू हुए। इन पाठ्यक्रमों के द्वारा कुछ नये आयाम आये और वैज्ञानिक ढंग से हिंदी भाषा का शिक्षण स्तरीय बन गया। इससे श्री लंकाई विद्यार्थियों की हिंदी सीखने के प्रति दिलचस्पी को बढ़ावा मिला। इन सबके दौरान जब कोरोना की समस्या आयी तब सब कुछ बदल गया। कई सालों तक प्रत्यक्ष शिक्षण या कक्षा शिक्षण संभव ही नहीं था। ऐसे समय में ऑनलाइन शिक्षण का विकल्प सामने आया। निश्चित रूप में सभी शिक्षकों को और विद्यार्थियों को इसके शुरूआती दौर में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। क्योंकि सीमित बुनियादी आवश्यकताओं के साथ और सीमित ऑनलाइन प्रशिक्षण के साथ ऑनलाइन शिक्षण आसान चुनौती नहीं थी। आरंभ में निस्संदेह शिक्षक अपने शिक्षण को रोचक नहीं बना पाते थे। इसलिए किसीको भी ऑनलाइन शिक्षण में कठिनाइयों के अलावा रोचकता भी नज़र नहीं आयी। पहले विद्यार्थी और गुरु के बीच में जो प्रत्यक्ष संपर्क सूत्र था, वह एक तरह से समाप्त -सा हो गया। यह ऑनलाइन शिक्षण में उत्पन्न सबसे बड़ा संकट था। इतनी विकट परिस्थितियों में भी भाषा शिक्षण को रोचक और सुगम बनाने का प्रयत्न जारी था। इस प्रकार परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने का प्रयत्न करते-करते प्रौद्योगिकी की क्रांति के साथ परिमार्जित होते हुए शिक्षण में पर्याप्त परिवर्तन अवश्य होता गया। परिणामस्वरूप ऑनलाइन द्वारा बहुत सामग्री सामने आयी और मल्टीमीडिया का खूब प्रयोग होने लगा। परिणामस्वरूप हिंदी शिक्षण को अधिकाधिक रोचक बनाने में शिक्षक सफल हुए।
इन सबके बाद अब जो युग आया है वह Hybrid Technology का है। आजकल श्री लंका की करीब सभी संस्थाओं में प्रत्यक्ष शिक्षण और ऑनलाइन शिक्षण को साथ मिलाकर चलने का प्रयास किया जाता है। आजकल शिक्षक अपनी कक्षा शिक्षण के दौरान प्रचुर मात्रा में अधुनातन डिजिटल प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हैं। ऑनलाइन द्वारा अनेक कार्यक्राम जैसे कवि सम्मेलनों का आयोजन, ऑनलाइन प्रतियोगिताओं का आयोजन ही नहीं, ऑनलाइन द्वारा परीक्षाओं को सम्पन्न करने का भी नया आयाम भी गत दो सालों के अंतर्गत हो गया। एक तरह से यह हिंदी शिक्षण के क्षेत्र में बहुत बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। अब एक तरह से सब कुछ वैश्वीकरण हो गया तो आसानी से शिक्षण सामग्री भी उपलब्ध है। इतना ही नहीं शिक्षक द्वारा Recorded सामग्री उपलब्ध कराने के कारण विद्यार्थी कभी भी, कहीं पर भी शिक्षण को ग्रहण कर सकता है, जितनी बार हो सके बार-बार सुनकर अपने ज्ञान का वृद्धि कर सकता है। यह भी इस युग कि बहुत बड़ी उपलब्धि है।
हिंदी शिक्षण के पाँच सालों से अधिक कालावधि में श्री लंका में हिन्दी भाषा की उन्नति तथा प्रचार-प्रसार के लिए हिन्दी केंद्रित कई शब्दकोश, भाषा विज्ञान और विविध व्याकरण विषयक लेखों एवं पुस्तकों की रचना की गयी। अनेक कहानियों का, उपन्यासों का अनुवाद प्रचुर मात्रा में हुआ है। प्रेमचंद जी जैसे महान् साहित्यकार के करीब-करीब सभी उपन्यास सिंहली में अनूदित हो चुके हैं।
वर्तमान में श्री लंका के कई विश्वविद्यालयों में हिन्दी शिक्षण का कार्य सुचारु रूप से चल रहा है। केलनीय विश्वविद्यालय में हिन्दी का एक स्वतंत्र विभाग है। यहाँ पर (सामान्य) बी.ए हिन्दी (विशेष) तथा यह एकमात्र विश्वविद्यालय है जहाँ एम.फ़िल. तथा पी.एच.डी की उपाधियों से संबंधित शोध कार्य हिन्दी में किये जा रहे हैं। अन्य कई विश्वविद्यालयों में भी (जयवर्धनपुर विश्वविद्यालय, सबरागमुवा विश्वविद्यालय, बौदध एवं पाली विश्वविद्यालय, सौंदर्य विश्वविद्यालय, मोरटुव विश्वविद्यालय, कटूबेद्द विश्वविद्यालय एवं कोलंबो विश्वविद्यालय आदि) हिन्दी अध्यापन का कार्य चल रहा है। इनके अलावा, श्री लंका के करीब 80 से अधिक सरकारी विद्यालयों में O level (+10) तथा A level (+12) में हिन्दी भाषा पढ़ाई की जाती है। इनके अलावा, कई स्वैच्छिक संस्थानों के द्वारा भी हिन्दी शिक्षण कार्य का योगदान कम महत्वपूर्ण नहीं है। यहाँ के कुछ स्वैच्छिक संस्थानों का हिन्दी शिक्षण का अतीत 20-30 सालों के आगे तक का है। ऐसे संस्थानों में हिन्दी समाज, हिन्दी निकेतन, हिन्दी संस्थान, शिल्पकला आश्रम, गुरुकुल केंद्र, पद्यांजलि हिन्दी निकेतन आदि प्रमुख हैं।
विशेषतः हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में भारतीय दूतावास का योगदान अग्रणी है। भारत का उच्चायोग हिन्दी के साथ अनेक विषयों की शिक्षा के लिए हर वर्ष ५०० से अधिक छात्रों को छात्रवृत्ति पर भारत भेजता है। छात्रवृत्ति पाने के लिए भी कुछ छात्र बचपन से ही हिन्दी सीख रहे हैं। उसके साथ-साथ भारतीय सांस्कृतिक केंद्र जो अब स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र के नाम से जाना जाता है और भारतीय सहायक उच्चायोग –केंडी के अधीन भारतीय कला केंद्र, हम्बंतोट केंद्र आदि की भूमिका बड़ा सराहनीय है। स्वामी विवेकनंद सांस्कृतिक केंद्र कोलंबो में भारतीय संस्कृति का प्रतिबिंब है तो भारतीय कला केंद्र कैंडी का। यहाँ पर हिन्दी शिक्षण के साथ-साथ भारतीय नृत्य, संगीत, योग और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियाँ चलती रहती हैं। सांस्कृतिक केंद्र में होली, दीपावली, नवरात्रि, राखी, बसंत पंचमी आदि त्योहारों को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इन पर्वों पर श्री लंका के लोगों की भीड़ देखते ही बनती है। इनके अलावा भारतीय खेल उत्सव, भारतीय भोजन उत्सव के अलावा विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी आयोजित की जाती हैं, जिनमें पूरे श्री लंका के समस्त हिन्दी प्रेमियों को आमंत्रित किया जाता है। हिन्दी कवि सम्मेलन, हिन्दी कार्यशालाएँ, हिन्दी सम्मेलन, हिन्दी प्रतियोगिताएँ विद्यार्थियों को हिन्दी के करीब लाने में सक्षम हैं। बड़े उत्साह से वे लोग इनमें भाग लेते हैं।
वर्तमान में हिन्दी के बहुत सारे विदवान् हिन्दी शिक्षण के क्षेत्र को कुछ नये आयामों से जोड़ने का प्रयास भी कर रहे हैं। उनमें एक उल्लेखनीय नाम सम्माननीय विजय कुमार मल्होत्रा जी का भी है, जिन्होंने बोलचाल की हिंदी पर बल देते हुए EDUTAINMENT नामक कार्यक्रम से श्री लंकेयों को परिचित कराया।
निष्कर्ष यह है कि आरंभ में हिंदी की दशा उतनी संतोषजनक नहीं थी। निस्संदेह उस समय हम अपने शिक्षण को रोचक नहीं बना पाते थे। दूसरे युग में भाषा शिक्षण के अधुनातन सिद्धांतों के आधार पर केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा निर्मित पाठ्यक्रमों को अपनाने से हिंदी शिक्षण को वैज्ञानिक रूप प्रदान करने में बल मिला। इसके बाद कोरोना के युग के साथ ही अधुनातन तकनीक का प्रयोग हिंदी शिक्षण में हुआ और बहुत बड़ी क्रांति के साथ शिक्षण के नए आयाम सामने आये और दिशा पूरी तरह से बदल गयी। अब ऐसा लग रहा है कि आने वाला युग हिंदी शिक्षण के क्षेत्र का सर्वोत्तम उज्ज्वल युग होगा। वैसे तो वैश्वीकरण के इस युग में श्री लंका में भी हिंदी की लोकप्रियता दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। यों कहा जाए तो हिंदी भाषा की लोकप्रियता यहाँ चरम शिखर पर है। लोग पूरी तरह से दीवाने हैं पुराने हिंदी गानों के, हिंदी फिल्मों के, शास्त्रीय नृत्य, संगीत के, भारतीय खान- पान के, भारतीय वेश-भूषा के, हिंदी साहित्य, पर्यटन, धर्म और संस्कृति के। निस्संदेह हिंदी भाषा को विश्व भाषा बनाने के अभियान में श्री लंका अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
*****