गुरुदेश ने जो सिखाया

-अतिला कोतलावल

बारिश का मौसम था। रात भर हुई मूसलाधार बारिश के बाद प्रकृति ने कुछ विश्राम का रूप धारण किया। सारा वातावरण ठंडक की चादर ओढ़े हुए था। हमेशा की तरह आज सुबह भी ब्रह्म मुहूर्त में 3.30 बजे बहुत सारी नई आशाओं और लक्ष्यों को मन में लिए मेरी आंखें खुल गयीं। ऐसा लग रहा था कि किसीने मुझे उठाया हो और मुझे पुकार रहा हो। मेरे रग-रग में ऊर्जा भर गयी। बहुत सारी नई उम्मीदों के साथ, प्रसन्नचित्त मन से मुझे उस पल में जो आनंद मिल रहा था, जो नयी स्फूर्ति मिल रही थी उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती। इस पूरे ब्रह्माण्ड में जो अपूर्व शक्ति छिपी हुई है, उसे अपनी अंतरात्मा में समाने के लिए कहीं न कहीं मेरा मन अत्यधिक व्याकुल हो रहा था। बच्चों-सी अधीरता के साथ मैं बिस्तर से उठी। धरती माँ को प्रणाम किया।  यह सच है कि जब सुबह उठते ही आप अपने हाथ में गुनगुने पानी का घड़ा पकड़ते हैं और प्राणमय जल पीते हैं, तो पूरे शरीर में बहुत ऊर्जा और जोश का संचार होता है। तो कुछ प्राणमय जल का पान करके मैं ऊर्जामय हो गयी।

जब जल्दी सुबह ठंडे पानी से नहाते हैं तो शरीर को जो ताजगी महसूस होती है, वह अद्वितीय  है। एक साफ़–सुथरा और सुंदर वसन पहने मैंने उस वसन पर थोड़ी-सी खुशबू लगाई और अपने बालों को ठीक किया, मैंने अपने-आपको आईने में देखा। एक सुखद मुस्कान के साथ अपने आपको धन्यवाद ज्ञापन किया। इन सब कार्यों से निबटकर मैं अपने प्यारे ब्रह्मांड के साथ एकजुट होने के लिए तैयार थी। ब्रह्म मुहूर्त, अमृत बेला, मनोहर पल जो भी कहें यह पल दिन का मेरा पसंदीदा पल है। प्रतिदिन मैं ब्रह्म मुहूर्त में जागती हूँ, ब्रह्मांड को धन्यवाद देने के लिए,  ब्रह्मांड से बात करने के लिए। मुझे ऐसा लगता है कि मैं इस पल में सदैव नई उम्मीदों के साथ दुबारा जनम लेती हूँ। यह वास्तव में मेरे दिन का सबसे अच्छा पल है। यह वह क्षण है जब ब्रह्मांड मुझे मेरे जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए,  मेरे सपनों को रंगने के लिए, पंख देता है, शक्ति और आशीर्वाद देता है।

जब मैंने कल रात बारिश से भीगी हुई जमीन पर पैर रखा तो मेरा पूरा शरीर काँपने लगा और कहीं से बहती हुई आई सुगन्धित पवन ने मुझे चूमा और अपने साथ लाई हुई सुगंध मेरे पास छोड़ कर आगे निकल गया। मुझे ऐसे महसूस होने लगा कि पूरा ब्रह्मांड प्यार से भरा हुआ है  जैसे कि उसने मुझे गले लगा लिया हो। साथ ही साथ समय-समय पर बिजली के देवता ने पूरे आकाश में मशालें जलाईं। मुझे लगा जैसे आतिशबाजी के साथ मेरा स्वागत किया जा रहा है। इसलिए मैं बहुत भाव विभोर हो गई थी और ब्रह्मांड ने मुझे अब तक जो कुछ भी दिया है उसके लिए मैंने पूरे हृदय से धन्यवाद दिया। दस दिशाओं में रहनेवाली सभी अद्भुत शक्तियों की, सूर्य देव और चंद्र देव की पूजा की। कुछ फूलों को उठाया जो बगीचे में ओस से नहाये हुए थे, और भगवान बुद्ध की पूजा करने के लिए घर के अंदर आयी। मैंने तेल, फूल, दीपक, धूप से बुद्ध की पूजा की और उसके उपरांत कुछ प्राणायाम और योगाभ्यास के बाद कुछ समय के लिए कुंडलिनी चिंतन कार्य में ध्यान लगाया।

उसी स्थान पर बैठे हुए ही आँखें मूंदे जब मैंने अपनी यादों की डोली पर सवार होकर उड़ान भरनी चाही तो मुझे अतीत के कुछ पलों की याद आने लगी। धीरे-धीरे उन सारी यादों की बारात मेरे मनःस्थल से बाहर निकलने लगी, जो हरिद्वार,ऋषिकेश की उन तमाम घाटियों से, गंगा नदी के जल से मित्रवत होती हुई बहनेवाली ठंडी हवाओं से सजकर मेरे मन को सुकून प्रदान कर रही थी।

जहाँ तक याद है वह सन् 2000 की बात है। सर्दियों को पुकारता हुआ नवंबर महीना था। उस समय मैं केंद्रीय हिंदी संस्थान में पढ़नेवाली विद्यार्थी थी। संस्थान द्वारा हमें ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन में तीन दिन की तीर्थ यात्रा पर ले जाने का कार्यक्रम बना। मुझे आज भी याद है हम वहाँ जल्दी सुबह पहुँचे। पहली नज़र में ही मुझे उस स्थान से प्यार हो गया। वह शांत, मनोहर, मन आकर्षित करने वाली प्रकृति ने मेरा मन मोह लिया। ऐसा लगा कि बरसों से जिनसे मिलने की मेरी अतृप्त अभिलाषा थी, उसकी पूर्ति हो गयी। पौ फटते ही जागना, गंगा नदी में ठंड से ठिठुरते हुए डुबकी लगाना, मन के अंतरात्मा तक सुख सन्देश पहुँचानेवाले भजन,  मधुर संगीत, धुन आदि सुनना, गंगा नदी किनारे बैठे भगवान् को याद करना, धन्यवाद देना, उस समय गंगा नदी से बहते हुए शीतल जल का कलकल नाद के साथ सर्दियों में हिमालय से बहती हुई ठंडी हवाओं की महक का मन को पुलकित कर देना… कितनी ही यादें एक–एक करके मेरे सम्मुख अपना नाच दिखने लगी। उस समय मेरे गुरु देश भारत के महान् ऋषि-मुनियों ने जो सिखाया वह आज भी मेरे जीवन में उतनी ही पवित्रता के साथ रम गया, बस गया। मैं आज भी उसी का पालन करती हूँ। ब्रह्म मुहूर्त में उठने की आदत इस तरह हुई। मेरे गुरु देश ने जो मुझे सिखाया उससे मुझे जीवन के अनेक चमत्कार देखने को मिले। आज भी आनेवाले हर दिन की समाप्ति के बाद मुझे लगता है कि उस अद्भुत पल में प्राप्त ऊर्जा इतनी मजबूत होती है कि मैं दिन भर काम को सफलतापूर्वक करने में सक्षम होती हूँ। मेरे गुरुदेश भारत को प्रणाम!

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