ओ पथिक

दूर तक निगाह में जब न कोई दरख़्त हो
चिलचिलाती राह में धूप बड़ी सख़्त हो
ये मान आगे मिलेंगे गुलिस्ताँ
न रुक पथिक, न पाँव तेरे सुस्त हों

कभी धुँधले दिखें जो अक्स
समझना रोशनी क़रीब है
गुज़र गया जो राह में
फ़क़त बुरा अतीत है
तुझ में जो जलती है, जलती रहे
न हार, न कोई शिकस्त हो

आएँगे अभी और इम्तेहान
चलेंगी और आँधियाँ
जीवन के इस महायज्ञ में
माँगेंगे तुझसे आहुतियाँ
न मंद करना अपनी गति
न आँसू आँख से गिरा
निखरा है कुंदन तभी
धधकती आँच में जब तपा

थामे रखना विश्वास को
जाएँ कभी क़दम जो लड़खड़ा
हर ख़्वाब है मुट्ठी में क़ैद
जो ठान ले, इम्तेहान नहीं कोई बड़ा

चलें जो तेज़, आँधियाँ
कुछ सोच मत, क़दम बढ़ा
पंख ख़ुद-ब-ख़ुद उग जायेंगे
हिम्मत का जब परिंदा उड़ा

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-अम्बिका शर्मा

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