चैतन्य मन
– पूजा अनिल
सामने वाली शुक्ला आंटी की बेटी को किसी अनजान लड़के के साथ देख कर मन किया कि उन्हें उनकी बेटी के इस छुपे हुए रिश्ते की सच्चाई बता दूँ लेकिन क्या ऐसा करना उचित होगा? हाँ, बिलकुल उचित ही होगा! उन्होंने भी तो कितने ही परिवारों को कई कई बार शर्मिंदा किया है। आज तो उनको उनके कर्मों का फल निश्चित ही मिलना ही चाहिए। कैसे कैसे लांछन लगाए हैं उन्होंने आस पड़ोस की बहु बेटियों पर, उफ़! सोच कर ही घबराहट होती है।
सब जानते हैं कि वे बहुत झगड़ालू किस्म की स्त्री हैं। न सिर्फ झगड़ालू बल्कि दूसरों के जीवन में ताँका झांकी करके उनके किसी भी पक्ष पर अनुचित टीका टिप्पणी करना तथा लोगों के विरुद्ध बुरा बोलना उनका विशेष पहलू है। पहले भी इसी मुद्दे को लेकर वे हमारी कॉलोनी की कई लड़कियों को चरित्रहीन घोषित कर चुकी थीं। जैसे कि उन लड़कियों ने अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार बस शुक्ला आंटी के पास ही रिज़र्व करा दिया हो! दूसरों के बच्चों पर वे गिद्ध जैसी पैनी नज़र रखती हैं, क्या उन्हें अपने बच्चों के बारे में कुछ पता नहीं होगा? आज तो उन्हें बता ही देना चाहिए कि एक बार वे स्वयं अपने गिरेबान में भी झांक कर देख लें!
सरिता के मन में यह सब विचार चलते चलते ही जैसे कसैलापन भी घुल गया। बेहद विचलित अनुभव करने लगी वह। अपने आप से मन में बात करते हुए अचानक शब्द अब उसके होठों पर आने लगे। ”यदि इस प्रकार के अनुचित व्यवहार के बारे में यह सब सोच कर ही मन में इतना विषाद भर आया है तो यदि यही विचार कर्म में ढल जाए तो कितना कष्टकारी होगा! मैं कदापि ऐसा कार्य नहीं करुँगी जो जीवन भर कष्ट देता रहे!”
मन में यह सब सोच विचार चल ही रहा था कि पीछे से एक गीत की पंक्ति सुनाई दी, “बैर हो ना किसी का किसी से, भावना मन में बदले की हो ना, हम चलें नेक रस्ते पे हमसे भूल कर भी कोई भूल हो ना….” और औचक यह गीत सुनते ही जैसे उसकी चेतना सम्पूर्ण तौर पर जागृत हो गई कि जो कुछ उन्होंने किया, वैसा ही हम भी करेंगे तो उनके और हमारे व्यवहार में क्या फ़र्क़ रह जायेगा?
”दीदी, किस से बातें कर रही हो? छोटी बहन ने उसे यूँ कुछ कुछ बुदबुदाते सुन लिया तो पूछ ही बैठी ।
”अपने चैतन्य मन से।” हर तरह के बुरे विचारों से परे हो चुकी सरिता मुस्कुराते हुए अपनी बहन के साथ अपना अनुभव बांटने लगी।
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