अंधेर है भाई

छः साल के बच्चे की किलकारियां हूँ जब सुनती
भोले भाली उनके चेहरे देख खिल हूँ मैं पड़ती
कुछ सीखने को मुझसे उत्सुकता भरी नजरों से देखते
मेरे मुख से निकला हर एक शब्द आंख मूँद कर विश्वास है करते
सुना था या कभी माना था बच्चे होते हैं मन के सच्चे
तो अब झूठ बोलकर क्यों परेशानियों से लगे हैं बचने
हे भगवान ही एक ऐसा योग है आया
सच जाना तो आंख भर आया
बड़े बुजुर्ग बच्चों को झूठ की राह पर हैं चलाते
अपनी घटिया परवरिश पर फिर भी इठलाते
एक झूठ से बंधेंगी अनेक झूठों की डोरियां
क्यों जला रहे हो अपनी जीते जी हस्तियां

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-शोभना लक्ष्मी देवी

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