ये बनारस का ज़िक्र है दोस्तों

-अनीता वर्मा

बचपन में एक फ़िल्म देखी थी “बनारसी बाबू “। बुरे भी हम भले भी हम, जैसी पंक्ति यूँ ही नहीं कही गई है। बनारस एक ऐसा शहर जहां के लोगों को कोई जल्दी नहीं। सब काम अपने अनुसार धीरे धीरे करते हैं। जहां के लोग मीठी मीठी बातें करते हैं और आप को कब चूना लगा देते हैं पता ही नहीं चलता। जहां बड़े आदर प्रेम से आपको पूरा शहर घुमाया जाता है और यही लोग चौराहे पर भीड़ से बिना गालियों के बात नहीं करते। बनारसी भौकाल और बनारसी ठग यूँ ही नहीं दुनिया में प्रसिद्ध हुए हैं। दूसरा नाम है काशी। कबीर के मन वाला काशी।  तुलसी की चौपाइयों का काशी। मानस के रचयिता का परम धाम वाला काशी। 

शिव की नगरी और काशी की भक्ति मन की हर स्थिति से इतर निर्वाण वाली स्थिति की तरफ़ ले जाती है। 

काशी धाम में जहाँ आस्था का संसार बसता है, जो शिव के त्रिशूल पर बसी है। जहां कण-कण में शिव का संसार जनमानस के सैलाब को अपनी जटाओं में बांधने की क्षमता रखता है। काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए लम्बी लाइन और मन में आस्था और श्रद्धा का भाव लिए जनमानस- अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए इंतज़ार करता हुआ। 

बहुत ही सुंदर व स्वच्छ मन्दिर परिसर व कॉरिडोर, सुगम दर्शन की आनलाइन बुकिंग के बाद बड़े आराम से दर्शन किए वो भी सोमवार को। 

मनोकामनाओं की पूर्ति के बाद  यहीं मृत्यु मणिकर्णिका घाट पर उत्सव मनाती है जहां मनुष्य वैराग्य से तपस्या की शक्ति को अनुभव करता है। 

दशाश्वमेध घाट पर भक्ति की शक्ति आपको बांध लेती है। तभी तो वो काशी है। 

पुराना बनारस यानि गीत, संगीत और स्वाद के रस। कचौड़ी, जलेबी, पूरी, रबड़ी का शहर। पुरानी हवेलियों का शहर। महफ़िलों और घरानों का शहर। संगीत की महफ़िलों का शहर। नर्तकियों व कोठों का शहर। शहनाई वादक का शहर। सब कुछ बिखरा हुआ सा फिर भी मन के भीतर सिमटता हुआ सा। 

तीसरा नाम वाराणसी यानि कि वरूण से अस्सी घाट, जल से जीवन का संगम। नेह से अभिषेक का सामीप्य । मन सिंचित तन वैविध्य में लीन। मन जैसे जल बिन मछली सा हो रहा था। एक पल था भी और नहीं भी। 

इन सब के बीच तीन दिन बिताए पर जैसे युग जी लिया। बहुत कुछ सीखा और जाना। ये भी जाना कि बनारस में अगर सुकून की तलाश में जा रहे हैं तो भीड़ से अलग किसी शान्त घाट पर जाएँ। 

जीभ रस की बात करें तो यूट्यूब पर इतनी वीडियो देखने के बाद जब कचौड़ी गली की कचौड़ी, टमाटर चाट, जलेबी खाई तो निराशा हाथ लगी। बनारसी पान व बनारस की साड़ियों की बात करें तो वहीं के एक बुनकर की कही बात कि बनारस में पान कलकत्ता से आता है और सिल्क बैंगलोर से, हम तो बस ताना बाना बुन कर अपने कलेवर में उसे ढालते हैं। 

बनारसी साड़ियों की बात करें तो पाँच पाँच मंज़िला शोरूम। वहाँ पर ढेरों नक़ली सिल्क की साड़ियों के बीच असली सिल्क की पहचान करना मुश्किल काम। 

वहाँ से सारनाथ जाना भी अलग तरह का अनुभव था। भीड़ से अलग बुद्धम् शरणम् गच्छामि भी मन को शांति के पलों में ले गया। बुद्ध की नगरी में जाकर मन प्रबुद्ध-सा हो गया। 

बहुत कुछ लिखना है पर लेख लम्बा हो गया है पर- 

बनारस का ज़िक्र है दोस्तों 
यह यूँ ही ख़त्म नहीं हो सकता 

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