अनीता वर्मा की बाल कविताएँ

सूरज 

रवि गगन पर रौब जमाते
अपनी दुनिया में इठलाते
ललाट तेज पर खूब चमकता
दीप दीप्ति से अद्भुत दमकता

धरती को प्रकाश पहुँचाते
सुबह-सुबह आकाश में आते
पात-पात और वृक्ष घनेरे
ख़ुश हो जाते सुबह सवेरे

सूरज की किरणें जब चमकें
पूरी दुनिया तब-तब दमकें
रात को जाने कहाँ हैं जाते
लगता है ये भी सो जाते

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नदी

नदी किनारे बड़ा पेड़ है
देखो कैसे खड़ा पेड़ है
लहरें उसको छू कर जाती
हर टहनी जैसे मुसकाती

हरे पात नदिया में गिरते
ऊपर नीचे बहते डरते
मंद-मंद जब चले समीर
पात-पात हो जाएँ अधीर

हरा-भरा ये वृक्ष है रहता
सरिता से अपनी सब कहता
तुम मुझको जो रोज़ सींचती
ज़रा देर भी नहीं खीजतीं

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विमान 

बीच गगन में उड़ा विमान
देखो कैसा अद्भुत ये यान
कहीं रूई के सफ़ेद ये गोले
गुप चुप ,गुप-चुप क्या ये बोले

कभी खाता ये हिचकोले
पेटी बाँधों दीदी तब बोले
चाँद कहीं भी नजर ना आये
ना जाने ये क्यों छिप जाए

कितना ऊपर उड़े विमान
कितना मुश्किल इसका काम
खाना,पानी सब मिल जाता
ना जाने ये कौन बनाता

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तारों सी चमक

नदी बहती कल-कल करती
कही ना रूकती कभी ना डरती
अपने पथ पर चलते जाना
नानी का मुझसे है कहना

सागर गहरा कलश छिपाए
चंदा-सूरज छूने आएँ
दादी कहती बनो समुन्दर
गहरे, विशाल अद्भुत सुन्दर

नभ में टिम-टिम कितने तारे
मिलकर रहते देखो सारे
मम्मी मुझको है समझाती
तारों से चमको ये बतलाती

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गिल्लू गिलहरी

कभी इस डाल पर
कभी उस पात पर
तुरंत/फ़ुरंत चढ़ती गिल्लू

फुदक-फुदक कर
टुकर-टुकर तक
कभी नहीं थकती गिल्लू

हिल-हिल कर
है पूँछ हिलाती
कभी नहीं चिल्लाती गिल्लू

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-अनीता वर्मा

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