
अनुवादक : सुनीता पाहूजा
तमिल भाषी कवि पं. प्रेमलाल सुबरन द्वारा 1943 में रचित कविता ‘अंजले’ का हिंदी अनुवाद
अंजले
हाय! अफ़सोस! क्यों हमारे हृदय पिघल न जाएँ?
क्या महान भारत की संतानों के आंसू
बाढ़ के उफान की तरह बह नहीं जाने चाहिए?
हे, असहाय और मासूम नारी!
आज के बाद, यह चहुँ ओर घोषित किया जाएगा
कि तुमने उस भीड़ का सामना करते हुए
मौत को गले लगा लिया, जिसने,
तुम्हारे घर में घुसकर
तुम्हें इतना उत्पीड़ित किया
कि हे पुण्यात्मा! तुमने बेले व्यू में अपनी जान ही दे दी
ओह अंजले, सचमुच!
कितना महान है,
तुम्हारा आत्म-बलिदान!
वेद, आगम और अन्य विद्याओं का
ज्ञान न होते हुए भी,
अपना सारा जीवन,
अत्यंत गरीबी में बिताते हुए भी,
सोने जैसे दिल के साथ तुम आगे बढ़ती रहीं,
असहायों को निर्भयता का पाठ पढ़ातीं,
हमें यह सिखातीं, कि वास्तव में हमारा कर्तव्य क्या है –
यही, कि जब भी बुरे लोगों से हमारा सामना हो
तो हम उनका प्रतिरोध करें।
“हालांकि एक महिला होने के नाते,
मुझसे यह अपेक्षा होगी कि मैं घर पर ही रहूँ,
देश में जो कुछ भी हो रहा है
उसमें कोई हस्तक्षेप न करुँ
लेकिन, मेरे पास भी पुरुषों की तरह ही
एक अमर आत्मा है जिसमें योग्यता है
धर्म को कायम रखने की योग्यता।
तो फिर मैं डरूँ क्यों?” तुमने कहा था कि आगे बढ़ते हुए,
कभी अगर गिरना भी, तो अपने अनमोल जीवन को वेदी पर बलिदान करते हुए,
हिरन की तरह शिकारी के हाथों गिरना।
अहंकारी दुराचारियों से भरी
दुखों की इस दुनिया में
जहाँ गरीबों को भूखा मारा जाता है
और उनका खून चूसा जाता है
तुम्हें शांति से रहने के लिए कोई जगह नहीं मिली।
इसलिए तुम्हें अपनी जान देकर
लोगों के दिलों में रहना बेहतर लगा।
आख़िर ऐसा क्या गुनाह किया था तुमने
कि तुम्हें इस दुर्भाग्य का शिकार होना पड़ा?
जब सबने यह सुना कि
तुम पर गोलियाँ चलाकर तुम्हें मार डाला है
तो जहाँ इस संसार के लोग चिल्ला उठे थे,
“ओह, कितना जघन्य अपराध!”
वहीं स्वर्ग में बसे गौरवशाली वीर,
तुम्हें अपने बीच पाकर
तुम पर फूलों की वर्षा करते, जश्न मनाते,
सहर्ष यह जयघोष कर रहे थे
“अंजले की जय हो!”
“अंजले की जय हो!”
*****
हिंदी अनुवाद : सुनीता पाहूजा
Anjalay
Alas! Alas! Why should not our heart melt?
Should not the tears of great Bharat’s children
Like a flood overflow, Oh poor and innocent woman?
Henceforth, shall it everywhere be proclaimed
That you encountered death while facing the multitude
That came to our place to molest you. Oh virtuous woman.
Oh Anjalay, you did at Belle Vue your life give away
How sublime indeed is your self-sacrifice?
Though ignorant of Vedas, Agamas, and such lore
Although in abject poverty your life you spent
Possessing a heart of gold, forward did you step
To give to the helpless a lesson in fearlessness
To teach us what, in fact, our duty should be
To resist evil-doers whenever we confront them.
“Though as a woman, I would stay at home
Not meddling in this or that activity
Going on in the country, I have like men
An immortal soul that’s fit to uphold Dharma.
Why then should I fear?” you indicated while advancing….
Only to fall like a hind at the hunter’s hand
Sacrificing on the altar your most precious life.
In this miserable world full of arrogant miscreants
That starve the poor and suck their blood
You could find no place in Peace to live.
So, have you deemed it to be best
In the hearts of the noble to live.
What on earth was the wrong done by you
To be subjected to this horrible fate?
On hearing that you fell down struck by bullets
“What a heinous crime?” While people could exclaim
The glorious heroes who have to heaven ascended
Would you as one of them gladly acclaim
Celebrate your coming by showering flowers
All the while chanting: “Victory to ANJALAY!”
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(Written in late 1943 & translated from Tamil into English by Pyneesamy Padayachy)
(अंजले कूपेन एक मॉरीशस मजदूर थीं जिनकी 1943 में हत्या कर दी गई थी, और उनकी कहानी मानव अधिकारों के लिए मॉरीशस के श्रमिकों के संघर्ष का प्रतीक है :
• जीवन : अंजले का जन्म 1911 में रिवियेर डू रेम्पार्ट में हुआ था। वह बेले व्यू हारेल शुगर एस्टेट में गन्ने के खेतों में काम करती थीं और जब उनकी मृत्यु हुई तब वह गर्भवती थीं।
• मृत्यु : अंजले और दो अन्य मजदूर सितंबर 1943 में बेले व्यू हारेल हड़ताल और नरसंहार के दौरान मारे गए। उनकी मृत्यु 28 सितम्बर 1943 को पोर्ट लुईस के सिविल अस्पताल में दर्ज की गई।
• परंपरा : अंजले की कहानी और बलिदान ने कई मॉरीशसवासियों को प्रेरित किया और उन्हें 1930 और 1940 के दशक में मॉरीशस के श्रमिकों के संघर्ष का प्रतीक माना जाता है। 2003 में कॉटेज में एक स्मारक का अनावरण किया गया जहां अंजले और उनके साथियों का अंतिम संस्कार किया गया था, और 2007 में मॉरीशस के मानवाधिकार केंद्र में अंजले की एक प्रतिमा का अनावरण किया गया।)