
सबके अपने अपने राम
(आल्हा छंद)
मुल्ला पंडित सिक्ख मसीहा, नाना पंथ अनेकों नाम।
सभी धर्म का मूल एक है, किंतु सभी के अपने राम॥
हर रजकण में राम व्याप्त हैं, राम नाम सुन्दर सुखधाम।
सदा विराजें अंतस् तल में, करते हैं मंगल अविराम॥
सृष्टि नियामक रघुपति राघव, पूज्यमान जो हैं हर ग्राम।
निशाचरों को मार गिराये, किये राम भीषण संग्राम॥
राम नाम की महिमा जग में, गाते हैं सब नित्य ललाम।
सुबह शाम सब नितदिन पूजें, नहीं जीभ पर दूजा नाम॥
सबके मन में राम समाया, रोम-रोम में प्रभु का नाम।
राम सकल ब्रह्मांड समाया, जड़ चेतन हर कण में राम॥
कौशल्या के नंदन रघुवर, जनकसुता के प्रियवर राम।
पवनपुत्र-सम भक्त नहीं है, सबरी के हैं रघुवर राम॥
कोई अल्ला को नित पूजे, कोई पूजे भगवन बुद्ध।
कोई मूसा ईसा पूजे, रहे भाव नित तन-मन शुद्ध॥
निर्गुण रूप कबीरा पूजे, सगुण रूप तुलसी के राम।
घट-घट में रैदासा पूजे, सूरदास के मोहन श्याम॥
रूप अनेकों तत्व एक है राम सृष्टि के रचनाकार।
राम नाम का वंदन कर लो, जीवन कर लो तुम साकार॥
जगत नियंता वह संचालक, राम जगत का सर्वाधार।
राम सकल ब्रह्मांड समाया, वही जगह का मूलाधार॥
भक्तजनों के सभी मनोरथ, पूरा करते सपने राम।
विविध रूप में ईश विराजें, सबके अपने अपने राम॥
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-डॉ० अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’